Saturday, 25 August 2012

जन लोकपाल, राईट टू रिजेक्ट, ग्रामसभा को अधिकार , जनता की सनद ऐसे कानून लाने की चाबी जनता के हाथ में है। इसलिए चारित्र्यशील लोगोंको संसद में भेजना पड़ेगा।




16 अगस्त 2011 को रामलीला मैदान में जन लोकपाल की मांग को ले कर मेरा अनशन हुआ था। उस वक्त देश की जनता करोडों की तादाद में जन लोकपाल की मांग को ले कर रस्ते पर उतर आई थी। अनशन के 13दिन के दौरान दिल्ली के साथ साथ देश के कई राज्यों में बारह दिन तक यह आन्दोलन चलता रहा। विदेशों में भी जहाँ भारतीय नागरिक हैं ऐसे कई देशों में भी अपने देश और देश की जनता के भलाई के खातिर आन्दोलन चला। लेकिन इस निर्दयी सरकार ने 12दिन तक जनता के उस आन्दोलन के बारे में कुछ भी  नहीं सोचा। अंग्रेजों की तानाशाही और आज की सरकार की नीति में क्या फरक है?

वास्तव में जनता ने हर सांसद को अपने सेवक के नाते संसद में भेजा है। इस लिए भेजा है कि सरकारी तिजोरी का पैसा जनता का पैसा  है। आप हमारे सेवक बन कर जाइये और हमारी तिजोरी के पैसों का समाज और देश की उन्नति के लिए सही नियोजन कीजिये ता कि देश के विभिन्न क्षेत्रों का सही विकास हो ।

संविधान के मुताबिक यह देश कानून के आधार पर चलने वाल़ा देश है ।  समाज और देश की उन्नति के लिए अच्छे अच्छे सशक्त कानून बनवाइए। संविधान के मुताबिक कानून बनाना सरकार का कर्त्तव्य है।कानून संसद में ही बनते हैं, इसमें दो राय होनेका कारण नहीं है, लेकिन लोकशाही में कानून बनाते समय जनता का सहभाग ले कर उस कानून का मसौदा बना कर वह मसौदा संसद में रखना जरूरी  है । जन लोकपाल कानून बनवाने  के लिए सरकार अपने इस कर्त्तव्य को भूल गई। कानून का मसौदा सरकारने बनवाया , जन सहभाग नहीं लिया इस कारन सरकारी लोकपाल कमजोर हुआ है।देश की जनता ने आन्दोलन के माध्यम से सरकार को  जन लोकपाल कानून बनाने के लिए बार बार  याद दिलाने का प्रयास किया लेकिन सत्ता और पैसे की नशा  कैसी होती हैं उसका उदाहरण इस सरकार ने न सिर्फ देश के सामने बल्कि दुनिया के सामने रखा है। दुनिया के कई लोगों ने  इस आन्दोलन को देखा है।  देश की जनता रस्ते पर उतर कर बार बार जन लोकपाल की मांग कर रही थी लेकिन सरकार ने जनता की मांग को ठुकरा दिया। लोकशाही वादी देश के लिए यह दुर्भाग्य की बात है।

भारत में हुए इस अहिंसावादी आन्दोलन की चर्चा दुनिया के कई देशों में चलती रही, आज भी चल रही है, कि देश के करोडॉ लोग जन लोकपाल की मांग को ले कर रास्ते पर उतर गए और 13 दिन आन्दोलन चलता रहा लेकिन किसी नागरिक ने  एक पत्थर तक नहीं उठाया, कई देशों को  भारत  के इस अहिंसा वादी आन्दोलन का आश्चर्य लगा, हमारे सरकार ने जनता के उस करोडो लोगों ने किये  हुए आन्दोलन की कदर नहीं की। इससे स्पष्ट होता है कि सत्ता और पैसे की नशा सरकार चलाने वाले लोगों को कितना बेहोश करती है इसका एक उत्तम उदाहरण इस सरकार ने देश के जनता के प्रति दिखाया गया अनादर, अनास्था के रूप में हमारे देश के और दुनिया के  सामने रखा है।

भारत की जनता के संयम की इतिहास में नोंद  हो सकती है। आन्दोलन करने वाले  लोग दो दिन, चार दिन  संयम रख सकते हैं, लेकिन 13 दिन सरकार द्वारा जनता पर अन्याय करने पर भी एक भी नागरिक के दिल में गुस्सा पैदा नहीं हुआ। अगर गुस्सा आया भी होगा लेकिन उन्होंने गुस्से  में प्रकट नहीं किया।  विशेष तौर पर 20 से 30 साल की उम्र वाले युवकों का खून अन्याय, अत्याचार से गरम हो जाता है। ऐसी स्थिति में  आन्दोलन में क्या क्या नहीं होता? हम कई बार कई  देशों में मार पीट, राष्ट्रीय और निजी संपत्ति की तोड़फोड़ -जला कर हानि करना  आदि उदाहरण  टी वी पर देखते हैं। महात्मा गांधीजी को चल बसे  64 साल बीत गए लेकिन अभी उनके अहिंसा वादी विचारों का प्रभाव हमारे देश के जवान कार्यकर्ताओंके जीवन पर बरकरार है। इस कारण अपना गुस्से को पीते हुए किसी ने एक पत्थर तक नहीं उठाया। ना ही कोई तोड़ फोड़  की। हो सकता है,  हमारे देश में चली आ रही ऋषि मुनियों की संस्कारात्मक संस्कृति का भी परिणाम  हुआ हो।

सरकार जन लोकपाल कानून बनाने के लिए खुद तैयार नहीं है,कारण भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण हो, यह  इस सरकार की मंशा नहीं है, इच्छाशक्ति नहीं है, और उनकी नीयत साफ नहीं है। अगर सरकार की नीयत साफ होती तो 44 साल में 8 बार लोकपाल का बिल संसद में आ कर भी 40 साल सत्ता में होते हुए लोकपाल बिल पास नहीं किया, अभी जनता डेढ़ साल से कह रही हैं जन लोकपाल का बिल संसद में लाओ। लेकिन सरकार लोगों की माँग की अनसुनी कर देश को अपने पक्ष और पार्टी की  सत्ता मान कर अंग्रेजों  की तानाशाही का रवैया अपना रही है। आज राष्ट्र से अधिक महत्व पक्ष को दिया जा रहा  है और पक्ष से भी बढ कर पक्ष की व्यक्ति को अधिक महत्व प्राप्त हो गया है यह लोकशाही के लिए बड़ा खतरा बना है, उसमें भी परिवार वाद - घराना शाही का खतरा बहुत बड़ा है। अगर जनता ने घराना शाही को देश में से समाप्त नहीं किया तो फिर से राजा,महाराजाओं जैसी हुकूमत आएगी। वह लोकशाही के लिए ज्यादा खतरनाक होगी । घराना शाही को समाप्त करना मतदाताओं के हाथ में है। मतदाताओं ने अगर तय किया तो मतदाता घराना शाही को रोक सकते हैं।

इस सरकार ने कई पक्ष और पार्टियों के विरोध के बावजूद राष्ट्रपति चुनाव के लिए बहुमत प्राप्त किया है। परमाणु शक्ति के लिए पक्ष और पार्टियों का इतना बड़ा विरोध होते हुए भी सरकार बहुमत प्राप्त कर सकती है, तो जन लोकपाल के लिए बहुमत प्राप्त क्यों नहीं कर सकती? लेकिन सरकार की मंशा नहीं है, इच्छाशक्ति नहीं है, नीयत साफ नहीं है । जन लोकपाल नहीं लाना पड़े इस लिए सरकार ने बार बार टीम अण्णा पर झूठे आरोप लगाये, मुझे कोई बिना किसी कारण से  तिहाड़ जेल में डाल दिया, बार बार झूट बाते रखकर, पलटी खा कर जनता से धोखा धडी की। जन लोकपाल बिल लाने के लिए सहयोगी पक्षों को मनाने का प्रयास करने के बजाय जन लोकपाल कानून ना बने इस बात को ले कर विविध पक्षों को संगठित किया और संसद में जन लोकपाल नहीं लाना  इसलिए प्रयास किये। मैं रामलीला मैदान के 13दिन के अनशन के बाद तबीयत ख़राब होने के कारण जब अस्पताल में भर्ती हुआ  था तब लालू प्रसाद जी  ने संसद में मेरी खिल्ली उड़ाने के लिए कहा कि  अण्णा के स्वास्थ्य के लिएखतरा है, हमें संसद में एक स्वास्थ्य कमिटी बनवानी चाहिए और लालू प्रसादजी के इस वक्तव्य पर कभी हास्यवदन नहीं दिखाई देने वाली श्रीमती  सोनिया गांधी बड़ी प्रसन्नता से हंस पड़ी। इस सरकार की नीयत साफ ना होने के कारण आज इनके कोयला घोटाला, 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कामनवेल्थ खेल घोटाला जैसे बड़े बड़े घोटाले बाहर आ रहे हैं, कई मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा, 15 मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।ऐसे घोटालो को रोक  थाम लग जाती तो घोटालों का करोडों रूपया विकास कार्य पर लगता और  हमारा देश तरक्की करता, गरीब अमीर का फासला नहीं बढ़ता। देश का सर्वांगीण विकास होता।

संसद में अपनी तनखा बढ़ाना और अपनी सुविधावों को बढ़ाना  और जन लोकपाल नहीं लाना इन बातों पर संसद में अधिकांश सांसदों की सम्मति बन सकती है। लेकिन जन लोकपाल पर सर्वसम्मति नहीं बनती यह बात देश के लिए दुर्भाग्य की है। अब एक बात स्पष्ट हो गई है कि आज संसद में बैठे हुए सांसद जन लोकपाल बिल नहीं लायेंगे। अब सिर्फ जन लोकपाल  कानून नहीं तो देश में संपूर्ण परिवर्तन लाने के लिए जनता ने सोचना है, संपूर्ण परिवर्तन की चाभी मतदारों के हाथ में है। सन 2014 में मतदान करते समय हर मतदाताओं ने  पक्ष-पार्टी को ना देखते हुए,चारित्र्यशील उम्मीदवारों को वोट दो। ऐसे चारित्र्य शील उम्मीदवार अगर संसद में गए तो जन लोकपाल तो आ ही जायेगा लेकिन साथ साथ गुंडा, भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी, दहशत गर्द उम्मीदवार भविष्य में संसद में न जा पाएं  इस लिए राईट टू रिजेक्ट जैसा क्रान्तिकारी कानून भी बन सकता है। सत्ता का विकेंद्रीकरण होकर जनता के हाथ में सत्ता हो इस लिए ग्रामसभा जैसे कानून बन सकते हैं।

आज पूरी सत्ता सरकार ने अपने हाथ में रख रखी है। आजादी के 65 साल में भ्रष्टाचार को रोकने वाला एक भी कानून इस सरकारने नहीं बनाया। सूचना का अधिकार कानून के बनाने लिए जनता को 10 साल आन्दोलन करना पड़ा,तब सरकार ने  सूचना का अधिकार कानून बनाया। भ्रष्टाचार को रोकने वाला सख्त कानून ना  बनाने के  कारण भ्रष्टाचार बढ़ता ही गया है। लोकशाही अथवा जनतंत्र में सत्ता जनता के हाथ में होनी चाहिए क्यों कि जनता इस देश की मालिक है। 26 जनवरी 1950में देश प्रजासत्ताक हो गया है।  जनता ने अपने सेवक के नाते चुनकर भेजे हुए राजनेता जनता के सेवक हैं। राष्ट्रपतिजी ने जिन सनदी   अधिकारियों को गवर्नमेंट सर्वंट  (जनता के सेवक) के नाते नियुक्त  किया वे  भी जनता के सेवक हैं, जनता ने चुन कर दिए हुए राजकीय नेता गण और सभी अधिकारी हैं तो जनता के सेवक, लेकिन आज सेवक बन गए मालिक और जो जनता मालिक हैं उनको बनाया सेवक।  इस चित्र को बदल कर सत्ता का विकेंद्रीकरण करना होगा। जनता के हाथ में सत्ता होनी चाहिए, ग्रामसभा को पूरे अधिकार देने वाला कानून बनवाना जरूरी हैं।इसलिए अब जनता ने सन 2014 के चुनाव में जिन्होंने संसद में जन लोकपाल का विरोध किया है ऐसे सभी पक्ष और पार्टी के सांसदों को को दुबारा संसद में जाने से रोकना है, जनता के लिए यह  असंभव नहीं है । कारण  मतदार ही इस देश का असली राजा है और राजा ही यह कर सकता है। सिर्फ सोच समझ कर मतदान करना है। पक्ष और पार्टी को मतदान ना करते हुए चारित्र्यशील उम्मीदवार को ही मतदान करना है।

जय हिंद।

(कि. बा. उपनाम अण्णा हजारे )