"भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण के लिये
गांवस्तर तक जन संघटन होना जरुरी है"
भ्रष्टाचार संपूर्ण रुख जायेगा ऐसे कहना अतिशोक्ती होगी, लेकीन कूछ हद तक भ्रष्टाचार को रोख सकते है, इसमे दो राह होनेका कारण नही है। मै बीस (20) सालोंसे भ्रष्टाचार के विरोध में लड़ाई लढ़ रहा हूँ। जबतक व्यवस्था परिवर्तन नहीं होगा, तबतक भ्रष्टाचार को रोकथाम नहीं लगेगा। इसलिए देशमे व्यवस्था परिवर्तन करनेका प्रयास करना है। महाराष्ट्रमे जनशक्ति का दबाव निर्माण करने से सरकारने सुचना का अधिकार, ग्रामसभा को जादा अधिकार, दफ्तर दिरंगाई जैसे सात महत्वपूर्ण कानून बनवाये। ऐसे कानून बननेसे व्यवस्थामे परिवर्तन आ गया है और भ्रष्टाचार को कुछ हद तक रोकथाम लग गई।व्यवस्था परिवर्तन करके देश का भ्रष्टाचार कुछ हदतक कम हो जाए इसलिए सरकारने जनलोकपाल कानून बनाना चाहिए इसलिए दिल्लीमे कही बार आयएसी के माध्यमसे उपोषण आन्दोलन करना पड़ा। आज़ादीके 65 सालके बाद पहली बार इस आंदोलनसे देश जाग गया। देशका युवक जाग गया। फिरभी रामलीला मैदान और जंतर मंतर के आन्दोलनसे जन लोकपाल कानून नहीं बना। क्योंकी सरकारकी नियत साफ नहीं थी। भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण की सरकारकी मंशा नहीं है। लेकिन देशका भ्रष्टाचार रोखनेके लिए जनता में जो जागृती आयी, करोडो रूपया खर्च करके भी जो जागृती नहीं आनी थी। वह जागृती 16 अगस्त 2011 के आंदोलन से पुरे देशमे आयी है।
अब ऐसा विश्वास हो रहा है की 2014 से पहले सरकार को कानून बनवाना ही पड़ेगा। कारण 16 अगस्त 2011 के वक्त कोई भी चुनाव नहीं था। अब 2014 में लोकसभा का चुनाव होनेवाला है। इस कारन सरकारको कानून बनवानाही पड़ेगा। लेकिन दुर्दैवसे कानून बननेसे पहलेही हमारे आंदोलन के दो हिस्से बन गए। एक चुनाव के रास्तेसे जानेवाला हिस्सा और दूसरा आंदोलन के रास्तेसे जानेवाला हिस्सा। सरकारके कही लोग चाहते थे की टिम अन्नाको कैसे तोड़े? सरकारने लगातार दो साल प्रयास करनेके बावजूद भी टिम नहीं टूटी थी।
लेकिन इस वक्त सरकार की कोशिश ऩा रहते हुए भी सिर्फ राजनीती का रास्ता अपनानेसे टिम टूट गयी। यह इस देश की जनता के लिए दुर्भाग्य की बात है। शायद टिम टूटने के कारन सरकारके कही लोगोने ख़ुशी मनाई होगी। राजनीती के रास्तेसे जानेवाला ग्रुप बार बार ये कहते रहा था की अन्ना कहे तो हम पक्ष और पार्टी नहीं बनायेंगे। लेकिन पार्टी नहीं बनानेके मेरे निर्णय के बावजूद पार्टी बनानेका फैसला लिया गया। कभी कभी मेरा नाम लेकर यह भी कहा गया की अन्ना के कहनेसे ही हमने पार्टी बनाने का निर्णय लिया है, यह बात ठीक नहीं है।
जनताको विकल्प देनाही पड़ेगा, लेकिन चुनावके लिए पैसा कहाँ से आएगा? पार्टी में आनेवाले लोग चरित्र्यशील होंगे इसलिए उनके चयन का तरीका क्या होगा? आज स्वार्थ के कारन दस लोग इकठ्ठा नहीं रह सकते, पुरे देशके कार्यकर्ताओंको इकठ्ठा कैसे रखेंगे? चुनावके बाद बुद्धिका पालट होता है, यह खुर्ची का गुणधर्म बन गया है। ऐसे स्थितिमे पर्याय क्या होगा ऐसे प्रश्नोंके जबाब मिलनेसे विकल्पकी बात सोच सकते है। लेकिन जबाब ही नहीं मिला।
4 अगस्त 2012 को जंतर मंतर पर मैंने स्पष्ट किया था की मै कोई पक्ष पार्टी नहीं बनाऊंगा। मै बीस साल से आंदोलन के रास्ते पर चलते आया हूँ। और आगे भी आंदोलन के रास्तेपरही चलते रहूँगा। हमारे रास्ते अलग अलग हो गए है, लेकिन मंजिल एकही है। और वो है भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण। एक बात अच्छी हुई की देशके जम्मू-कश्मीर से लेके कन्याकुमारी तक हजारो कार्यकर्ता इस आन्दोलन से जुड़ने के लिए आगे आये है। विशेष तौरपर कही राज्योंसे निवृत्त डायरेक्टर जनरल ओफ पुलिस के सात सदस्य आंदोलन से जुड़ रहे है। आयएएस के नौ सदस्य, फौज के ब्रिगेडीअर, कर्नल, जनरल इस पदोंसे पचास सदस्य और अलग अलग स्वयंसेवी संस्थांके अच्छे लोग आगे आये है। और आंदोलन के साथ जुड़ रहे है। भ्रष्टाचार मुक्त भारत के आन्दोलन के लिए यह एक आशादायी चित्र है। आज हमारे पास कोई पैसा नहीं है। कारन जीवनमे कही बैंक बलेंस नहीं रखा। दिल्लीमें जनता के समन्वय के लिए आंदोलन का दफ्तर होना जरुरी है। लेकिन पैसे के कारन दफ्तर नहीं बनवा पाए। जंतर मंतर और रामलीला मैदान में जनताने जो आर्थिक मदद की थी उनमेसे मैंने पाँच रुपया भी अपने लिए नहीं रखा। सभी पैसा इंडिया अगेंस्ट करप्शन के पास रखा। कारन वह आन्दोलन के लियेही खर्च हो। लेकिन मुजे विश्वास हो रहा है की जनताने 5 रुपया, 10 रुपया दिया तो भी पैसोकी कमी नहीं पड़ेगी। 20 साल से आंदोलन में मैंने यही रास्ता अपनाया है। कोई उद्योगपती या विदेशका पैसा नहीं लिया गया। और आगेभी मै नहीं लेना चाहता। जनता ने दिया हुआ 5 रुपया, 10 रुपया मुजे महत्वपूर्ण लगता है। जल्द ही आंदोलन का दफ्तर दिल्लीमे शुरू करनेका मनोदय है। ताकि आंदोलन से देशके विभिन्न भागोंसे जुडनेवाले कार्यकर्ताओंका समन्वय के लिए आसान रहेगा। आगे आनेवाले कुछ दिनोमे कार्यकर्ताओंकी मद्तसे देश के हर राज्योमे और राज्योंके हर गाँव तक यह आंदोलन पहोंचाने का प्रयास करना है। टेक्नोलोजी बहुत विकसित हुई है। इस कारण ये असंभव नहीं है। जन संघटन के माध्यमसे सामाजिक दबाव बढ़ गया तो ना कहनेवाली सरकारको हां कहना पड़ेगा। अथवा सत्तासे जाना पड़ेगा। गाँव से दिल्ली तक जनशक्ति का संघटन बन गया तो आज संसद में दागी लोग जाने के कारन जन लोकपाल, राइट टू रिजेक्ट, ग्रामसभा को जादा अधिकार, दफ्तर दिरंगाई, जनता की सनद ऐसे कानून नहीं बन रहे है, उस संसद में जनताने अपना चरित्र्यशील उम्मीदवार चुनकर भेजना है। उम्मीदवार सही है या गलत है इस बात को आंदोलन के लोग देखेंगे।
देश के 6 लाख गाँव तक संघटन बन गया तो ये असंभव नहीं है। संसद लोकशाही का पवित्र मंदिर है। ऐसे पवित्र मंदिरमे जनताने पवित्र लोगोंको भेजना है। ये लोकशिक्षा और लोक जागृती काम आन्दोलन करेगा, बाकी सबकुछ जनताने करना है। जनतंत्र में जनता का तंत्र होना चाहिए। देश में जन संघटन बन गया तो भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए कही कानून बनवाने के साथ साथ किसानोंके प्रश्न है, मजदुरोंके प्रश्न है, शिक्षा क्षेत्र में जो अनागोंदी हो रही है उसमे सुधार लाना है। ऐसे परिवर्तन का काम आंदोलन के माध्यमसे हो सकते है। परिवर्तन की प्रक्रिया जल्दबाजी में नहीं होगी। आंदोलन के माध्यमसे प्रदीर्घ निरंतर चलनेवाली ये प्रक्रिया है। संविधान और कानून का आधार लेकर हमें बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी होगी। लेकिन जन लोकपाल कानून 2014 तक बन सकता है, ऐसा हमें विश्वास हो गया है। अक्तूबर-नवम्बर में देशकी यात्रा शुरू करनी है। बिहार में जेपीने जहासे आंदोलन शुरू किया था वही गाँधी मैदानसे इस यात्राका प्रारंभ करने का मनोदय है। लोकशिक्षा और लोक जगृतिके लिए देश के हर राज्योमे यह यात्रा चलेगी। आंदोलन के दो हिस्से बन गए यह देश का दुर्भाग्य है। अभी भी कही लोग इस आंदोलन को तोड़फोड़ करनेकी कोशिश कर रहे है।
मुझे कही पक्ष, पार्टी, सांप्रदायिक संघटन के साथ जोडनेका प्रयास करते है। मेरे जीवन में मै किसी पक्ष-पार्टी या संघटन के साथ जुड़ने का प्रयास किया नही। और शरीर में प्राण है तब तक किसी पक्ष, पार्टी या सांप्रदायिक संघटन के साथ नहीं जाऊंगा। मैंने व्रत लिया है की जीवनमे सिर्फ देश और जनता की सेवा करनी है। और वह सेवा निष्काम भावसे करनी है। ऐसी सेवाही मेरी इश्वर की पूजा है। जनता से मेरी नम्र प्रार्थना है की राजनीती के कारन आंदोलन के दो हिस्से बन गए। अब जो आंदोलन बचा है उस आंदोलन को तोड़ने के लिए उलट पुलट बाते आती है। तो जनताने ऐसी बातोंपर विश्वास नहीं करना है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जायेगा, वैसेही कही पक्ष-पार्टी वोट मिलने के लिए मेरे नाम का दुरूपयोग करने की कोशिश करेंगे। मुझे किसी पक्ष-पार्टी के साथ जोड़ेंगे। आंदोलन का नाम लेकर दुरूपयोग होगा। लेकिन उसपर किसीने विश्वास नहीं करना है। आंदोलन सिर्फ आंदोलन ही रहेगा। क्यों की आंदोलन एक पवित्र व्यवस्था है। पावित्र्य संभालते हुए आंदोलन चलाना है। देश की जनता गाँव से लेकर दिल्ली तक जितनी संघटित होगी उतनी ही भ्रष्टाचार को रोकनेमे सफलता मिलेगी।
कि. बा. तथा अन्ना हजारे. |
राळेगणसिद्धी
दि. 28 सप्टेंबर 2012