किसान विरोधी भूमी अधिग्रहण बील सरकार ने वापस लेने के लिए
लाखो किसान
संघटीत हो कर आंदोलन करें।
नरेंद्र
मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को ला कर देश के किसानों पर घोर अन्याय किया
है। इस कारण देश में चारों तरफ से आवाज़ें उठीं, इल्ज़ाम लग गये कि सरकार किसान विरोधी है। जगह-जगह किसान
सडक पर उतरने लगे। शायद उसी वजह से नरेंद्र मोदी जी को कहना पडा कि, ‘यदिइस बिल के कारण किसानों
पर सरकार की तरफ से अन्याय होता है तो हमें किसानों की भलाई के सुझाव दिये जाएं, हम जरूर विचार करेंगे।’ सरकार की भूमिका का स्वागत करते हुए आंदोलन की तरफ से कुछ मुद्दे सरकार के
विचारार्थ प्रस्तुत करते हैं..
1) सरकार यदि किसानों की भलाई की सोच रखती है तो, आज़ादी के बाद देश में ज़मीन का सर्वे
(लैण्ड-मॅपींग) होना ज़रूरी है। ज़मीन के क्लास 1/2/3/4/5/6
ग्रेड बनाकर क्लास 1/2/3 ग्रेड की ज़मीनें जो उपजाऊ हैं,
ऐसी ज़मीन औद्योगिक क्षेत्र के लिए संपादित नहीं की जायेगी, ऐसा कानून बनाना ज़रूरी है। लेकिन ऐसा कानून नहीं बना। बिल में कहा गया है
कि, जहॉं साल में दो-तीन फसल उगती हैं ऐसी ज़मीन का भी
अधिग्रहण किया जायेगा। यह तो उन किसानों के प्रति सर-असर ना-इन्सा़फी है। पानी मिल
जाने के कारण जिस ज़मीन में अनाज की पैदावार बढ रही है, ऐसी
ज़मीन का भू-संपादन नहीं होना चाहिए।
2) आज़ादी के 68 साल के बाद भी किसानों को आत्महत्या करनी पड रही हैं, क्यों कि खेती की पैदावार में लागत ज़्यादा आती है और उपज के दाम कम मिलते
हैं। हर फसल पर लागत खर्च के आधार पर मूल्य निर्धारण होना ज़रूरी है। इसमें मुश्किल
क्या है? देश की कोई भी यूनीवर्सिटी इस काम को करने में
सक्षम है। खेती की पैदावार में आमदनी कम और खर्चा ज़्यादा होने के कारण बार बार
कर्ज़ लेने को किसान को बाध्य होना पडता है। कर्ज़ गिरफ्त में से छुटकारा पाने की
कोई सम्भावना नहीं दिखती है। आख़िर कार नैराश्य भावना से ग्रस्त हो कर किसान
आत्महत्या करने पर मजबूर होता है।
3) केंद्र सरकार और हर राज्य की सरकार कृषि आयोग स्थापित
करें। ये आयोग किसानों की भलाई और उन्नति के लिए व कृषि उत्पादन बढाने हेतु काम
करें।
4) नदी किनारे की ज़मीन अत्यन्त उपजाऊ होती है। उसमें से
अच्छी मात्रा में कृषि उपज मिलती है। ऐसी ज़मीन का अधिग्रहण कर उसे उद्यम क्षेत्र
के लिए उपलब्ध कराना ठीक नहीं है। ऐसा करने से उपजाऊ क्षेत्र का, पवित्र नदियों के पानी को प्रदूषित करने
वाले क्षेत्र में परिवर्तन हो जाता है। एक तरफ गंगा सफाई का कार्य शुरु किया है।
दुसरी तरफ नदीयों का पानी गंदा करना ठिक नही है।
5) भू-संपादन करने के बजाए ग्रामसभा को विश्वास में ले कर
किसानों की ज़मीन को सरकार ने लीज़ पर लेनी चाहिए। जिन किसानों की ज़मीन लीज़ पर ली
जाएगी, उन किसानों को उस प्रकल्प में साझेदारी
मिले ता कि किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो, उन्हें
आत्महत्या करने की नौबत ना आये।
6) न्यायिक व्यवस्था में बदलाव लाना ज़रूरी है। आज सालो-साल
निकल जाते हैं पर इन्सा़फ नहीं मिलता है। ऐसे में सरकार कहती है कि किसान को
अन्याय के विरोध में न्यायालय में जाना हो तो सरकार की अनुमति लेनी पडेगी। भूमि
अधिग्रहण बिल में किसानों के न्यायालय में गुहार लगाने पर पाबंदी लायी गई है। यह
क़दम जनतंत्र के विरोधी है।
7) देश में बेरोजगारी की समस्या के समाधान में विदेश की
कंपनियों को यहॉं बुला कर सिर्फ औद्योगिक क्षेत्र का विकास करना, यही एक मात्र पर्याय बचा नहीं है। हर
गांव को एक इकाई मान कर कृषि पैदावार को बढावा दें तथा कृषि आधारित उद्योगों की
योजनाओं को प्राथमिकता दी जाएं, ता कि गांव के गांव में ही
हर हाथ को काम मिले, गांव के युवकों को शहर की ओर ना जाना
पडे।
8) आज हमारे देश में औद्योगिक क्षेत्र तेज़ी से बढ रहा है, विदेशी कंपनियां आ रही हैं। पेट्रोल,
डीज़ल, रॉकेल, कोयला जैसे
इंधन जलाए जा रहे हैं। उनके जलने के साथ देश में प्रदूषण भी बढता जा रहा है। उसके
कारण प्रकृति में अघटित घटनाएं घट रही हैं। लोगों की बीमारियां बढ रही हैं।
अस्पताल जितने भी बने, कम ही पडते जा रहे हैं। इसी लिए
महात्मा गांधीजी कहते थे ‘विकास ऐसा करो कि प्रकृति और मानवता का शोषण ना हो।’ शोषण के बल पर हुआ विकास शाश्वत विकास नहीं हो सकता। ऐसे विकास सेकभी
ना कभी विनाश ही होगा। इंधन जलाने के कारण प्रदूषण बढने के साथ-साथ तापमान भी बढ
रहा है। यह बहुत बडा खतरा है।
9) आदरणीय
नरेंद्र मोदी जी ने गुजरात में जन्म लिया, गुजरात
मेंेंं छोटे से बडे हुए। चाय बेचने वाले से प्रधान मंत्री तक का सफर तय किया। फिर
ये समझ नहीं आता कि गांधी जी की इन बातों को वे क्यों नहीं समझ पा रहे?
कृषि
पैदावार के बढने से युवाओं को और जनता को गांव के गांव में रोज़गार मिल सकता है।
प्रदूषण की रोकथाम हो कर प्रकृति का सन्तुलन बनाये रखने में मदद होगी। हम ऐसा केवल
बोलते ही नहीं हैं, हम लोगों ने इसे कर भी
दिखाया है।
10) महात्मा
गांधीजी कहते थे कि स्मार्ट- स्वयंपूर्ण विलेज बनाओ और सरकार कहती है स्मार्ट सिटी
बनानी है। स्मार्ट विलेज बनायेंगे तो प्रकृति और मानवता का शोषण नहीं होगा।
महात्मा गांधीजी के विचारों के मुताबिक गाव को
मुख्य प्रशासनिक इकाई मानकर ग्रामसभा को विधायिका का अधिकार देना ज़रूरी है। क्यों
कि ग्रामसभा तो स्वयंभू और सार्वभौम है। ग्रामसभा लोकसभा और विधानसभा को हर पांच
साल में बदलती रहती है। लेकिन ग्रामसभा खुदकभी
बदलती नहीं। हर व्यक्ति 18 साल की उमर होने पर ग्रामसभा सदस्य बनता है,
और
ताउम्र ग्रामसभा का सदस्य बना रहता है। ग्रामसभा को चुना नहीं जाता,
वह
स्वयंभू है। इस लिए गांव की जल, जंगल,
जमीन,
पानी
जो भी, जितनी भी साधनसंपत्ति है उसका
मालिक तो गांव ही है। इसलिए भारत सरकार या राज्य सरकार को गांव की कोई भी
साधनसंपत्ति यदि लेनी हो तो उसमें ग्रामसभा की संमति होना ज़रूरी है। ऐसा कानून
बनना चाहिये। इसी से सही लोकतंत्र संस्थापित होगा। मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण बील
ला कर ग्रामसभा के अधिकार को ही खत्म कर दिया है। यह लोकतंत्र के विरोधी है।
कृषिप्रधान भारत देश में किसानों की भलाई की
सोच रखने के बजाए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को ला कर सरकार किसानों पर अन्याय कर रही
है। और पुंजी पतीयों की भलाई सोच रही है। लोगों का लोगोें ने लोक सहभाग से चलाया
हुआ तंत्र होता है लोकतंत्र। भूमि अधिग्रहण बिल लोगों का अधिकार छीनकर लोकतंत्र का
गला घोंटने वाला बिल है।
किसी भी नीजी कंपनी हो या नीजी संस्था हो उनके
लिए किसानों की जमीन अधिग्रहण करनी है तो, लोकतंत्र
के मुताबीक जब तक किसानो की सम्मती नही है तब तक जमीन अधिग्रहण नही होना चाहिए।
भूमि अधिग्रहण का सन् 1894 का अंग्रेज़ों का
बनाया कानून अन्याय मूलक था। इस लिए सन् 2013 में संसद की सभी पार्टियोंे की
सहमति से सर्वसम्मत कानून बनाया गया था। भाजपा उस वक्त विपक्ष नेता की भूमिका निभा
रही थी। उस वक्त किसी ने भी उसका विरोध नहीं किया था। अब नरेंद्र मोदी सरकार को
किस बात की जल्द बाज़ी आन पडी कि अध्यादेश निकालना ज़रूरी हो गया
? अध्यादेश का रूपांतरण बिल में किया गया और बिल से कानून बनाने की
जल्दबाजी हो रही है। लोकपाल, लोकआयुक्त जैसे जनता के भलाई का, भ्रष्टाचार को रोकनेवाला कानून उस पर
अंमल करना जरुरी नही लगता जीतना भूमी अधिग्रहण बील की जल्दी हो रही है।
कानून में बदलाव लाना ज़रूरी था तो
फिर से संसद में बहस कर के सर्व सम्मति से बदलाव ले आते। विगत कई सालों में कई
राज्यों में कई सारे प्रकल्प बने हैं। उनके लिए किसानों की लाखों हेक्टर ज़मीन
अधिग्रहण की गई है। लेकिन उनमें की कई ज़मीनों पर ना तो उद्योग शुरु हुआ है, ना ही वह ज़मीन किसानों को लौटाई गई।
देश में लाखों हेक्टर ज़मीन यूं ही बेकार पडी है। देश भर की ऐसी सभी ज़मीनों की जांच
कर जिन ज़मीनों पर ज़मीन लेने के पांच साल बाद तक प्रकल्प शुरु नहीं हुआ हो ऐसी
ज़मीनें किसानों को लौटा देनी चाहिए।
कई जगहों पर ऐसा भी हुआ है कि
किसी प्रकल्प के लिए किसानों की ज़मीन तो अधिग्रहण की गई है लेकिन 25/30/35 साल से किसानों को पुरा मुआवजा
तक नहीं मिला और ना ही उनका पुनर्वास भी तो हुआ है। इस बात की अनदेखी सरकार क्यों
कर रही है? कई किसान ऐसे हैं कि जिनकी ज़मीन अधिग्रहण हुई, मकान चले गए लेकिन मुआवजा और पुनर्वास
नहीं हुआ है। उन किसानों के दर्द को सरकार ने समझना ज़रूरी है। इन 68 वर्षों में सरकारों की संवेदन शीलता
ही खत्म हुई जा रही है। यह बात मानवता के लिए कलंक है।
भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में तो
पारित हो गया, अब देखना है कि राज्य सभा में क्या होने जा रहा है। राज्य सभा में भी
यदि वह पारित हो जाता है तो देश की जनता को सोचना पडेगा और दिखाना पडेगा कि सबसे
ऊंचा स्थान जनसंसद का है। आझादी की दुसरी लढाई समझकर अहिंसा मार्ग से देश में
आंदोलन करना होगा।
भवदीय,
कि. बा. तथा अण्णा हजारे
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