Friday 27 March 2015

भूमि अधिग्रहण के बारे में मा. नितीन गडकरी जी को चिठ्ठी...

प्रति,
मा. नितीन गडकरी जी,
सडक परिवहन राजमार्ग एवं पोत परिवहन मंत्री,
भारत सरकार, नई दिल्ली

महोदय,
आपका दि. 19 मार्च 2015 का पत्र मिला।
      मैने दि. 13 मार्च 2015 को ग्राम विकास मंत्री श्री. बिरेन्द्र सिंह चौधरी जी को पत्र लिखा था लेकिन, उन कि तरफ से अभी तक कोई जवाब नही आया है। पत्र को संलग्न भेज रहा हूँ।
      आपने अपने पत्र मे लिखा है की, नरेंद्र मोदी सरकार गावं, गरिब किसान और मजदुरों के हित मे काम करनेवाली सरकार है।
1 1) प्रश्न उपस्थित होता है की, सरकार किसान गावं, मजदुरों के हित मे काम करती है तो, भूमी अधिग्रहण बील कानून मे देश कि संपूर्ण भूमी का सर्वे किया जाएगा, उसमें क्लास 1/2/3/4/5/6 ग्रेड बनाए जाऐंगे। और क्लास 1/2/3/4 जमीन जो उपजाऊ है वह अधिग्रहण नही किया जाऐगा। एैसा कानून बनता तो किसानो कि उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण नही होता था। आज देश का किसान और सरकार मे जो मतभेद हुए है वह मतभेद नही होना था। एैसा कानून बनवाने में सरकार को क्या दिक्कत है? एैसा ना करने के कारण किसानों पर अन्याय करनेवाला बील बनाया गया। आपने पत्र मे लिखा है की, पुरे कानून में कोई भी ऐसी बात नही है जो किसानों के विरोध मे हो। नीचे लिखी कई बातें देखने से पता चलेगा की, इस कानून में कितनी बातें किसानों के विरोध में है।
  2)  2013 को संसद मे पारित हुआ कानून मे यह प्रावधान था की, गांव कि जमीन अधिग्रहित करने से पहले निजी प्रोजेक्ट के लिए 80 फिसदी किसानों की सहमती और सार्वजनिक निजी (पीपीपी) के लिए 70 फिसदी लोगों की सहमती अनिवार्य थी। लेकिन आपकी सरकार ने उसको हटाया है और कहा है की, सहमती कि जरुरत नही। क्या यह किसानों पर अन्याय नही है? लोकतंत्र मे जीनकी जमीन लेनी है, वह मालिक है। उनकी सम्मती के बिना उनकी जमीन जबरन लेना इस से अंग्रेजों की हुकुमशाही और इस सरकार मे फरक क्या रहा है ? यह किसानों पर अन्याय है।
26 जनवरी 1950 मे प्रजासत्ताक आ गया है। प्रजा इस देश कि मालिक बन गई है। सरकार चलाने वाले सभी जनता के सेवक है। जब जनता देश कि मालिक है और सरकार चलाने वाले जनता के सेवक है तो यह अन्याय नही है? सेवक मालिक कि जमिन उनकी बिना अनुमती से कैसे ले सकता है? अगर एैसा हुआ तो हमारा संविधान जो कह रहा है हम भारत के लोग भारत को एक सार्वभौम, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकशाही गणराज्य निर्माण करने का सपना पुरा करना है वह कैसे पूरा होगा? भूमी अधिग्रहण कानून में जिनकी जमीन है उनकी सम्मती के बिना जमिन लेना यह किसानों पर अन्याय है। और यह लोकतंत्र के विरोध में है। आपने अपने पत्र मे लिखा है की, कानून में कोई भी एैसी बात नही है जो, किसानों के विरोध मे हो। आपका वक्तव्य यह जनता की दिशाभूल करनेवाला महसुस हो रहा है।
3) 2013 के कानून में सामाजिक परिणाम मुल्यांकन अनिवार्य किया था। अब उसको शिथील किया है। 
4) प्रकल्प के लिए अधिग्रहित जमीन, पांच साल तक प्रस्तावित प्रकल्प के लिए उपयोग मे न लाई जाने पर अथवा विकसित ना होने पर, उस जमीन उसके मूल मालिक को लौटाने का प्रावधान 2013 के कानून मे रखा गया था। लेकिन आपकी सरकारने उसको हटा दिया है। अब यह जमीन मूल मालिक को वापीस नही दी जाएगी। यह किसानों पर अन्याय करनेवाला निर्णय है। अब एैसी तरतुद कि है की, 5 साल शब्द को हटाकर उस जगह पर प्रकल्प पुरा करने के लिए जो कालावधी विहित किया है वह अथवा पांच साल इसमे जो अधिक होगा वह कालावधी ऐसे निर्णय् से जमिन हमेशा उद्योग पतियोंके कब्जे मे रह सकती है ऐसा हुआ तो किसानों पर अन्याय होगा।
5) 2013 के कानून में यह लिखा है की, देश मे बढती हुई आबादी को देखते हुए देश मे पर्याप्त अनाज उत्पादन हो। यह हमेशा हमारी मुलभूत राष्ट्रीय प्राथमिकता रही है। इसी कारण जीस खेती मे किसान दो या तिन फसले उगाता है ऐसी जमीने उद्यम क्षेत्र के लिए अधिग्रहित नही कि जाऐगी। एैसे प्रावधान 2013 के कानून में था। इस प्रावधान को नरेंद्र मोदी सरकारने हटाया गया है। अब सिंचित क्षेत्र कि उपजाऊ जमीन भी उद्यम क्षेत्र के लिए दी जाऐगी। यह किसानों पर अन्याय है। बहुफसली जमीन जो राष्ट्रीय पैदावारी बढाती है उसका अधिग्रहण नही करना चाहिए।
6) 2013 के कानून मे धारा 87 के अनुसार जमीन अधिग्रहण मे किसानों के साथ नाइन्साफी हुई तो अपराध मे लिप्त ऑफिसर या पदासिन व्यक्तिंयो पर कानून कार्यवाही का प्रावधान था। अब मोदी सरकारने उसको हटाकर ऑफिसरों के विरोध मे शिकायत या कानूनी कार्यवाही करनी है तो सरकार कि इजाजत लेनी पडेगी। सरकारने किसानो कि न्याय हक कि रक्षा करनी है लेकिन सरकार किसानों के न्याय हक के लिए रोकती है। तो लोकतंत्र हि खतरे मे आऐगा। यह किसानों पर अन्याय है।
महात्मा गांधीजी के विचारों के मुताबिक गांव को प्रशासनिक इकाई मानकर ग्रामसभा को विधायिका का अधिकार देना जरुरी है। गांव मे जल, जंगल, जमीन जैसी जो भी साधन संपत्ती है उसका गांव मालिक है। भारत सरकार हो या राज्य सरकार हो किसी भी गांव कि संपत्ती लेनी है तो, ग्रामसभा कि अनुमती लेना जरुरी है। ऐसे प्रावधान कानून में होना जरुरी था। लेकिन भूमी अधिग्रहण बील कानून ने ग्रामसभा के अधिकार को ही खतम कर दिया है। यह लोकतंत्र विरोधी निर्णय् है। गांव, गरिब किसान के हित की सरकार कैसे हो सकती है?
      2013 के कानून में सभी जगह निजी कम्पनी शब्दों को निजी संस्था शब्दों से बदला जायेगा। निजी संस्था की परिभाषा अध्यादेश में नया प्रावधान जोडकर इस प्रकार दी गई है कि, सरकारी संस्था या सरकारी उपक्रम के अलावा कोई भी संस्था जो कि प्रोपराईटरशिप, साझा कम्पनी, निगम, लाभारहित संस्था या किसी भी कानून के द्वारा बनायी गयी कोई संस्था हो।
      इसका तात्पर्य यह हुआ कि, पहले निजी कम्पनी जो की कम्पनी कानून 2013 के तहत परिभाषित एवमं बाध्य थी कि, जगह अब किसी भी प्रकार की निजी संस्था अध्यादेश के विभिन प्रावधानो के द्वारा भूमी अधिग्रहण कर सकेगी।
      2013 कानून के प्रावधान 24 जो की इस अध्यादेश के लागू होने से पहले भूमी अधिग्रहण के मुआवजे से सम्बंधित प्रावधान है। एवमं कहता है कि, अगर इस अध्यादेश के 5 साल पहले अधिग्रहित भूमी पर कब्जा नही लिया गया है या मुआवजा नही दिया गया है तो, उसमें वापस शुरु से 2013 के कानून के अंतर्गत कार्यवाही की जायेगी।
      उपरोक्त प्रावधान में यह जोडा गया है कि, अगर कोई मुआवजा या भूमी का कब्जा कानूनी कार्यवाही के कारण नही हो पाया है तो कानूूनी कार्यवाही के कारण देरी की अवधी 5 साल की अवधी में शामिल नही की जायेगी। यह किसानों पर अन्याय है।
भूमी अधिग्रहण करने के बाद किसान के एक आदमी को नौकरी दी जाऐगा। ऐैसा आश्वासन दिया जाता है। उसकी  गॅरंटी क्या है ? पहले भी एैसे आश्वासन दिए गऐ थे। लेकिन आज तक जिनकी भूमी अधिग्रहित कि उनको 25-30 साल के बाद भी नौकरी नही मिली। आश्वासन यह आश्वासन ही रह गया है।
      इलेक्शन के समय मोदी सरकारने कहा था हम सत्ता में आने के बाद 100 दिन मे कालाधन लाऐंगे। हर आदमी के बँक अकाऊंट में 15 लाख रुपया जमा करेंगे। लेकिन 10 महिनों में 15 रुपया भी जमा नही हुआ। आश्वासन तो दिए थे लेकिन उनका पालन नही किया है।
      भ्रष्टाचार के विरोध कि लडाई को प्राथमिकता देंगे। लोकपाल लोकायुक्त कानून बना है लेकिन उसकी अंमलबजावणी नही हो रही है। घोषणा बहुत होती है, कार्यवाही नही होती।
      आपने खुली बहस कि चर्चा का आवाहन किया था। खुली बहस कि चर्चा को हम स्विकारते है। लेकिन आपसे बहस होकर ठोस निर्णय होने की संभावना बहुत कम है। श्री. नरेंद्र मोदीजी बहस में आते है और हम चार-पांच आंदोलनकारियों से चर्चा होती है तो कुछ निर्णय होने की संभावना है। हम अपेक्षा करते है कि, नरेंद्र मोदीजी ने इस खुली बहस के लिए दिन, समय, स्थल बतायें।

भवदीय,

कि. बा. तथा अण्णा हजारे


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