Wednesday 5 June 2013

पक्ष और पार्टीयो द्वारा जनतंत्र पर अतिक्रमण



पक्ष और पार्टिया ने समुह के आधार पर चुनाव लडना गैर संविधानिक है।

यह जनतंत्र पर पक्ष और पार्टिया द्वारा अतिक्रमण है।


सन् 1857 से ले कर 1947 के कालखण्ड में ज़ुल्मी, लुटेरे, अन्यायी, अत्याचारी अंग्रेज़ों को इस देश से खदेडने के लिए और देश में लोकतन्त्र (लोगों ने लोगों के लिए लोक सहभागिता से चलाया हुआ तन्त्र) क़ायम करने के लिए लाखों लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान किया, जेल में कारावास भुगता, भूमिगत रह कर अनगिनत बाधाएं-कष्ट सहे तब जा कर हमारा देश सन् 1947 में आज़ाद हुआ।
सन् 1949 में अपने देश का संविधान बना। 26 जनवरी 1950 को हम सब जनता ने मिल कर बडी धूम धाम से, ‘गणतन्त्र दिवसमनाया। गणतन्त्र, लोकशाही, जनतन्त्र, लोकतन्त्र के माने है लोगों ने, लोगों के लिए, लोक सहभागिता से चलाया हुआ तन्त्र। संविधान में कहीं पर भी पक्ष-पार्टियाँ बना कर चुनाव लडने का ज़िक्र नहीं है, बल्कि हमारा संविधान लोकतान्त्रिक गणराज्य की सोच रखता है। हर भारत वासी चुनाव के क़ाबिल है। उन्हीं में से चरित्रवान् व्यक्ति को चुन कर संसद में भेजा जाए पक्ष, पार्टी या अन्य समूह का हमारे संविधान में कहीं पर भी ज़िक्र नहीं किया गया।
26 जनवरी 1950 को देश में जनतंत्र या लोकतंत्र आ गया, देश प्रजासत्ताक बना, देश में जनता की सत्ता आ गई और जनता देश की मालिक बन गई। ऐसे में जब संविधान में कहीं पर भी पक्ष-पार्टी के ज़रिये चुनाव लडने का संकेत होने के कारण सभी पक्ष-पार्टियों को बर्ख़ास्त कराना ज़रूरी था। लेकिन 1952 के पहले चुनाव में गैरसंवैधानिक मार्ग से संविधान को ताक पर रख कर कुछेक पक्ष-पार्टियों ने चुनाव लडा और लोकतन्त्र पर अतिक्रमण किया। नतीजा यह हुआ कि अंग्रेज़ों ो देश से निकालने के लिए लाखो लोगों ने कुर्बानी दी और अंग्रेजों को देश से निकाल दिया। उसके बाद अंग्रेजों का स्थान पक्ष-पार्टियों ने ले लिया। सच्चा लोकतन्त्र इस देश में आने ही नहीं दिया। और स्वाधीनता के अगले 66 वर्षों में उस लोकशाही को, उस लोकतन्त्र को पक्ष-पार्टी के तन्त्र ने नेस्तनाबूद कर डाला। आज देश में लोकतंत्र लोगों ने लोगों के लिए लोग सहभाग से चलाया तंत्ररहा नहीं। पक्ष और पार्टी तंत्र चला रहे हैं।
अब सवाल यह उठता है कि, सन् 1857 से ले कर 1947 तक के नब्बे सालों के काल में इस देश में लोकशाही-गणराज्य-लोकतन्त्र को क़ायम करने के लिए जिन लाखों शहीदों ने क़ुर्बानियाँ दीं, क्या वे फज़ूल गईं, निरर्थक रहीं? सन् 1952 से ले कर इस देश में पक्ष-पार्टियों के माध्यम से ग़ैरसंवैधानिक तरीके से चुनाव होते रहे। उस के परिणाम स्वरूप सत्ता में जा कर धन बटोरने का और धन की ताक़त से सत्ता क़ायम करने का दुष्चक्र शुरु हुआ। येनकेनप्रकारेण सत्ता हासिल करने का ही उद्देश्य होने के कारण भले ही व्यक्ति गुण्ड, भ्रष्ट, व्यभिचारी, लुटेरा हो, यदि वह वोट बटोरने की क्षमता रखता हो तो उसे चुनावी टिकट देने की प्रवृत्ति होने लगी। केवल ऐसे लोगों को टिकट ही दिया गया बल्कि पक्ष-पार्टियों ने सामूहिक तौर पर प्रचार कर उन्हें ग़ैरसंवैधानिक तरीके से चुनाव जिता कर संसद तक भी पहुंचाया। और इस तरह लोकतन्त्र के पावन-पवित्र मन्दिर में कुछ भ्रष्ट, गुण्डे, लुटेरे जा बैठे। आज संसद में 113 लोग दागी हैं।
हालाँ कि पक्ष-पार्टियों ने जिन्हें नहीं देना चाहिए ऐसे दागी उम्मीदवारों को भले ही टिकट दे दिया हो, लेकिन मतदाताओं ने भी तो कुछ सोचना चाहिये था। एक तो ग़ैरसंवैधानिक तरीके से चुनाव लडा यह पहला दोष। दूसरा दोष है पक्ष और पार्टिया ने गुण्डे, भ्रष्ट, लुटेरों को टिकट देना। ऐसे स्थिती में मतदाताओं ने सोचना ज़रूरी था कि ऐसे उम्मीदवार को मत देना समाज और देश की भलाई में नहीं है। इस लिए उन्हें मत देने के बजाय चरित्रवान् उम्मीदवार का चयन करें जैसा कि संविधान में बताया गया है। या तो जनता ऐसा चरित्रवान उम्मीदवार तय कर सकती है या पक्ष-पार्टी के परे जो चरित्रवान् उम्मीदवार हो उसे ही अपना वोट दें। कई वोटर शराब की बोतल मिल जाए तो अपना वोट दे देता है तो कोई पाँच सौ-हजार की नोट मिल जाए तो दे देता है। और बदले में विधानसभा – लोकसभा जैसे पवित्र मन्दिरों में इन अपवित्र लोगों को जा बैठने का मार्ग हम कुछ मतदाताओं ने खुला कर दिया। यही लोग वहाँ जा कर जनता के धन की लूट करते है। भ्रष्टाचार करते हैं। इसी में से गुण्डा-गर्दी और आतंकवाद पनपता है। और इसके जिम्मेदार हम ही है, यही बात लोग भूल चुके हैं। जब ऐसे लोग संसद में जाएंगे तो कैसे इन प्रवृत्तियों के खिलाफ कारगर-सख्त कानून बनेंगे और कैसे उन पर अमल होगा? इसी वजह से भ्रष्टाचार बढता ही जा रहा हैं।
अब समय आ गया है की हर (वोटर) मतदाता ने भारत माता की सौगन्ध खा कर, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे लाखों अमर शहीदों के बलिदान की क़सम खा कर हम प्रतिज्ञा करें कि भविष्य में किसी भी लालच के वशीभूत होते हुए कोई गुण्डे, भ्रष्ट, लुटेरे, व्यभिचारी लोगों को अपना वोट नहीं देंगे। इस देश का मालिक-राजा वास्तव में मतदाता है। सभी जनप्रतिनिधि जनता के सेवक हैं। मालिक ही सेवक से घूस लेने लगा तो कहाँ से देश के उज्वल भविष्य की उम्मीद रखी जाएं?
सन् 1952 में पक्ष और पार्टिया ग़ैरसंवैधानिक तरीके से चुनाव लडे। यह देश की जनता के साथ पहले पहल धोखाधडी हुई। दूसरी तब हुई जब कानून में संशोधन कर एक पक्ष से दूसरे पक्ष में प्रवेश करने पर रोक लगाने का प्रावधान 1985 में बनाया गया। जब संविधान में ही पक्ष-पार्टियों ो चुनाव का ज़िक्र नहीं है, वास्तव में इस संशोधन का सवाल ही नहीं उठता था। लेकिन सत्ता के दुरुपयोग की यह एक अच्छी मिसाल है। आज 66 साल के बाद पक्ष पार्टीयों ने लोकतंन्त्र पर अतिक्रमण कर के लोकतंत्र को नेस्तनाबूद कर डाला है और उसके स्थान पर पक्ष-पार्टी तन्त्र को स्थापित कर दिया है। अगर जनता ठान लें तो पक्ष-पार्टि तंत्र को ख़ारिज कर सही गणराज्य, लोकतन्त्र जो कि लोगों ने, लोगों के लिए, लोक सहभागिता से चलाया हुआ तन्त्र है, उसे जनता क़ायम कर सकती है।
अब वक्त आया है कि मतदाता ठान लें कि संविधान के मुताबिक, या तो जनता ने चयन किए हुए चरित्रवान उम्मीदवार को अथवा चुनाव मैदान में जो उतरे है, जो पक्ष-पार्टी का उम्मीदवार नहीं है, उनमें से किसी चरित्रवान उम्मीदवार को ही अपना वोट देंगे। अगर ऐसे चरित्रवान प्रतिनिधी संसद में जा पहुंचते तो ही जनलोकपाल, राईट टू रिजेक्ट, राईट टू रिकाल जैसे भ्रष्टाचार की रोकथाम करनेवाले कानून संसद में बन पाएंगे और गैर संवैधानिक पक्ष-पार्टी तन्त्र नेस्तनाबूत हो कर गणराज्य प्रस्थापित होगा। किसान मजदूरों की समस्याएं, शिक्षा क्षेत्र में पनम रही धान्धली आदि सभी अनाचारों पर लगाम कसेगी।
अंग्रेज़ों के बनाये गये कालबाह्य निरर्थक ज़ुल्मी कानूनों को ख़ारिज कर लोकतन्त्र के अनुकूल नये कानून बनेंगे तभी तो उन लाखों करोडों शहीदों का सपना कुछ हद तक पूरा होगा, जिन्होंने लोकतन्त्र-गणराज्य को लाने के लिए अनगिनत क़ुर्बानियाँ दी हैं। पक्ष-पार्टी को वोट देने की 66 वर्षों की आदतों के जाने में कुछ समय लग भी सकता है। कई परिवारों में ऐसी स्थिति है कि सगे भाई अलग अलग पार्टियों में हैं। यह काम मुश्किल ज़रूर है। पर समय की पुकार है कि अब मतदाता गम्भीरता पूर्वक सोचें। इसी को स्वाधीनता का दूसरा संग्राम समझ कर अगर मतदाता ठान लें तो यक़ीनन देश में पक्ष-पार्टी तंत्र खतम कर के गणतन्त्र-लोकतन्त्र अवश्य स्थापित हो पाएगा। किसी पक्ष और पार्टी को अपना वोट ना देते हुए सिर्फ चरित्रवान व्यक्ति को ही अपना वोट देने से पक्ष और पार्टिया अपने आप बरखास्त हो जाएगी। ऐसा बदलाव लाने की चाबी देश के मतदाताओं के हाथ में है। देश के मतदाताओं ने यह चाबी लगाई तो देश में बदलाव आ कर पक्ष और पार्टिया बरखास्त हो कर लोकतंत्र आएगा।
नोट : कानून की जानकारी रखनेवालें मान्यवर व्यक्ति से निवेदन है कि वे कृपया बारीक़ी से संविधान का अध्ययन करें। देखें कि संविधान में कहीं पर भी पक्ष-पार्टी के चुनाव लडने का प्रावधान है? आप खुद ही जान पाएंगे कि पक्ष-पार्टियों का चुनाव लडना ग़ैर संवैधानिक है।


कि. बा. तथा अण्णा हजारे
राळेगणसिद्धि, ता. 5 जून 2013

1 comment:

  1. Anna Ji
    JaiHind
    Yeh desh gulam hi rahega. Yehan ki janata British period ke baad jyada gula in netaon ki ho gayi hai. 65 saal bad bhi hum gulaam hain. yeh kesa bharat hum bana rahen hain Anna. Ameer Our ameer hota ja raha hai our gareeb ki position aaj tak vaisi hi hai jaise 30 saal pele ab jyada badtar ho gayi hai.
    Yeh ganatantra hai ya Tanashahi. ya Jantantra me chippi Tanashai gundagiri yeh neta to party systm ki chader lapetkar desh se gaban kar rahen hain
    Anna Jitne aap dukhi ho utnne hajaron deshvashi bhi hain our Main bhi .
    Aap ralleel maindan mein satygrah per baithe the aap ke tab ke saathi us andolan main bhi apni opportunity dundh rahe the chahe wo KB, Kejri ho
    aaj wo saub aap ko khain ka bhool kar age nikal gaye. KB to ab Congress Join kene ki rah per hai.
    Anna is desh main Gandhi ki koi kadra nahin hai
    unke sujhai marg per chel kar bhi koi phida nahin kyon ki inke pass hi sub takat hai.
    Sabse badi baat to aise hai ki " Dusman Koun hai Pechanna Mushkil Ho gaya hai" aap ke leye dua karenge or piche marne ki Dwa karenge.

    Aap ho to hum jase desh premiyon ki dhandas bandhi hai jee sakete aap ki shakti ke sahare warn desh bohut khrab ho gaya hai .
    It is difficult you read this and understand my pain . But i am happy today and wish you to live for 1000 Years.
    Jai Hind
    09821504257
    Aata tumahal parat charn shparsh and ek daparat pranam karto

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