Tuesday 7 April 2015

भूमी अधिग्रहण बील आंदोलन किसी पक्ष, पार्टी के विरोध में नही। यह आंदोलन व्यवस्था परिवर्तन और किसानों के भलाई के लिए आंदोलन है।


 महात्मा गांधीजी कहते थे कि, देश को बदलना है तो गांव को बदलना होगा, जब तक गाव का सर्वांगिण विकास नही होगा, तब तक देश का सही विकास नही होगा।
      प्रकृती और मानवता का दोहन (शोषण) कर के किया विकास यह शाश्वत विकास नही होगा। एैसे विकास से कभी ना कभी विनाश होगा।
      विकास के नाम पर आज हम देश मे हर दिन लाखो टन कोयला, पेट्रोल, डिझल, रॉकेल जला रहे है। जीतना इंधन जला रहे है उतना ही देश में प्रदुषण बढ रहा है। जितना प्रदुषण बढ रहा है उतनी ही जनता की अलग-अलग बिमारियां बढ रही है।
      बढते हुए बिमारियों के कारण देश में दिन-ब-दिन शेकडो नए-ऩए हॉस्पीटल खुल रहे है। वह अधुरे पड रहे है। बढते प्रदुषण के कारण पर्यावरण का समतोल बिघड रहा है।
      2014 के मई महिने का दिल्ली का तपमान 47.7 डिग्री पर चला गया था और फुटपाथ पर सोनेवाले कुछ गरीब लोग मर गए थे।
      बढते हुए तपमान के कारण समुद्र के पानी का स्तर बढ रहा है। यह दुनिया के लिए खतरा बन रहा है। 
एैसे स्थिती में आप की सरकार भूमी अधिग्रहण बील कानून बना कर किसानों की जमीन बडे पैमाने पर लेकर उस पर उद्योग लगाने की सोच रही है।
      एैसा समझ मे आया है कि, 63974 किलोमीटर रेल्वे लाईन के दोनो तरफ की एक-एक किलोमीटर की जमीन, 92851 कि.मी. राष्ट्रीय महामार्ग की दोनो तरफ की एक-एक किलोमीटर जमीन, राज्य महामार्ग की 1,31,899 किलोमीटर की जमीन अधिग्रहीत कर के उस पर औद्योगिक कॉरिडोर लगाने की सोच हो रही है। इसी प्रकार और भी जमीन औद्योगिक क्षेत्र के लिए अधिग्रहण होनेवाली है।
      इन औद्योगिक कंपनीयों को जमीन के साथ साथ पानी, बिजली, रास्ते इन को भी प्राथमिकता देनेवाली है।
      एक तरफ आज कई सालों से किसान को अपनी खेती की पैदावारी बढाने के लिए बिजली पंप को बिजली नही मिल रही है। दुसरी तरफ औद्योगिक क्षेत्र के लिए प्राथमिकता दे रहे है। यह बात कृषीप्रधान कहनेवाले भारत के लिए ठिक नही है।
      आप के सामने प्रश्न होगा दिन-ब-दिन बेरोजगारी बढ रही है, औद्योगिक क्षेत्र नही बढाया तो देश के युवकों को रोजगार कैसे मिलेगा?
      आजादी के बाद हमारे देश के विकास के कदम ही गलत पडते गये। महात्मा गांधी कहते थे गांव को इकाई मानकर गांव की जमीन और प्रकृती ने दिया हुआ बारिश का पानी का सही नियोजन करते और गांव गांव में खेती की पैदावारी बढाकर खेती पैदावारी पर कृषी उद्योग बढाते तो गांव के युवकों को गांव मे ही अपने खेती पर हाथ के लिए काम मिलता था और पेट के लिए रोटी मिलती थी ता कि, वो शहर की तरफ नही जाता। लेकिन आजादी के बाद गांव को इकाई मानने के बजाए हम शहरो को इकाई मानकर उन शहरों में विदेशी कंपनियों को बुलाया इस कारण गांव के लोग शहरों की तरफ आकर्षित होते गए। समुद्र में आए भरती के मुताबीक शहरे फुलते गए और आज शहरों की समस्यांये दिखाई दे रही है।
      यह सिर्फ संकल्पना नही है। आप अपनी सरकार के जानकार व्यक्ती को भेज कर अभ्यास कर सकते है। 2500 आबादी के गांव मे तीस साल पहले हाथ के लिए काम नही, पेट के लिए रोटी नही इसलिए लोग गांव से मजदुरी के लिए स्थलांतर करते थे। आज उसी गांव में कोई पेट्रोल, डिझल, रॉकेल, कोयला जैसे इंधन का उपयोग ना करते हुए सिर्फ गिरनेवाला बारिश का पानी को गांव मे रोका। उस के लिए अलग अलग उपचार पद्धती किया। भूगर्भ मे भूजल स्तर बढने के कारण जमीन मे पानी रिचार्ज किया और भूजल स्तर को बढाया। जमीन और पानी का सही नियोजन किया।
      जिस गांव मे बारिश का पानी गांव से बहकर बाहर जाने के कारण गर्मी में पिने का पानी नही मिलता था, 400 एकड जमीन मे एक फसल के लिए पानी नही मिलता था उस गांव में 1200 एकड जमीन में दो फसले किसान लेने लगे। जिस गांव में 80 प्रतिशत लोग आधे पेट से रहते थे उस गांव से 200/250 ट्रक पॅज और तरकारी बिक्री के लिए बाहर जा रहा है। हर साल करोड रुपया गांव में आने लगा है।
      गांव के लोगो को हाथ के लिए काम अपने ही गांव मे, अपने ही खेती पर मिलने लगा है।
जिस गांव से बिस साल पहले 400 लिटर दुध बाहर नही जाता था उसी गांव से आज जमीन और पानी का नियोजन करने के कारण हर दिन पांच हजार लिटर दुध बाहर जा रहा है। हर दिन एक लाख से सव्वा लाख रुपया गांव में दुध का आ रहा है। नव युवक दुग्ध व्यवसाय मे जुट गया है।
      पशु-पालन व्यवसाय बढने के कारण खाद मे वृद्धी हो गई इस कारण जमीन की प्रतवारी सुधारणे में मदत मिल गई है। गांव में जलग्रहण क्षेत्र विकास के कारण कृषी का विकास होने के कारण गांव की अर्थनिती बदल गई। उस कारण लोगों में आर्थिक शक्ती बढने के कारण गांव में लोगों ने अपने ही श्रमदान और अपनी हिम्मत से करोड रुपयों के अलग अलग विकास के काम खडे किए है।
      कभी कभी सरकार के लोगों को एैसा लगता है कि, ग्रॅन्ट, अनुदान, डोनेशन के आधार पर आदर्श गाव बना पायेंगे। लेकिन सिर्फ पैसों के आधार पर गांव आदर्श नही बनते है। हमारा यह दावा नही है की एक जगह पर जो काम हुआ उसकी नकल देश में हर जगह पर करना चाहिए। देश की भौगोलिक स्थिती, सामाजिक स्थिती अलग अलग है उसको देखते हुए विकास करना पडेगा। लेकिन जहा जहा संभव है वहा ऐसे कार्य करने में क्या हर्ज है।
      आदर्श गांव निमिर्ती के लिए शुद्ध आचार, शुद्ध विचार, निष्कलंक जीवन, त्याग, अपमान पीने की शक्ती ऐसे गुण संपन्न स्थानिक लिडरशीप होना जरुरी है। सिर्फ भाषण देकर अथवा अनुदान देकर आदर्श गांव नही होगा।  शब्द और कृती को जोडने वाली लिडरशीप जरुरी है। आज देश में हर गांव मे लिडरशीप का अभाव निर्माण हो गया है। आज पक्ष और पार्टीयों के लिडरशीप के कारण गांव मे मतभेद निर्माण होने के कारण राजनिती के गट-तट निर्माण हो गए। राजनिती के गट-तट के कारण हर एक गांव का विकास रुक गया है।
      देश में समर्पित भाव से कार्य करनेवाले कई युवक हमारे देश में आज भी है। उन की खोज कर के उन को तिन से पांच महिने का लीडरशीप प्रशिक्षण देकर एक एक गांव के साथ उनको जोडा तो देश में बदलाव आएगा। प्रशिक्षण सुबह 11 से 5 बजे तक नही बल्की सबेरे 5 से रात 10 बजे तक होनी है। एैसे सेवाभावी युवकों को चरितार्थ चलाने के लिए कुछ मोबदला देना जरुरी है।
      सरकारने देश में औद्योगिक क्षेत्र को बढाना नही ऐसे हम नही मानते। लेकिन औद्योगिक क्षेत्र बढाने से ही देश का सही विकास होगा यह सोच ठिक नही है।
      औद्योगिक क्षेत्र और कृषीक्षेत्र दोनों का समतोल (बॅलन्स) रखना चाहिए। जितना खर्चा औद्योगिक क्षेत्र पर करते है उतना ही कृषी पर भी ध्यान देना आवश्यक है।
      आजादी के 68 साल में माल खाए मदारी और नाच करें बंदर एैसी किसानों की स्थिती है। किसान खेती की पैदावारी बढाने के लिए खेती पर जितना पैसा खर्च करता है उतने दाम खेती पैदावारी से उसको ना मिलने के कारण देश के कई राज्यों मे किसान आत्महत्या कर रहे है। इस बारे मेंे सरकार संवेदनाशिल होना चाहिए। आज सरकारे संवेदनशील नही है। आज किसान अपने अनुभव के आधार पर कृषी पैदावारी बढा रहै है लेकिन, उस खेती पैदावारी पर प्रक्रिया कर के विदेशों में भेजने की प्रक्रिया नही हो रही है।
      सरकार ने संशोधन किया तो यह स्पष्ट होगा की एक गांव पर तिन यां चार साल में सिर्फ चार करोड रुपया खर्चा करने से उस गांव के 1500 लोगों के हाथ के लिए हमेशा के लिए अपने खेती पर काम निर्माण हो सकता है। इस प्रकार की रोजगार निर्मिती के लिए प्रकृती का दोहन करने की जरुरत नही, उस कारण प्रदुषण नही बढेगा।
      1500 लोगों के हाथ मे काम देने के लिए कंपनी स्थापीत करने के लिए कृषी से कई गुना जादा खर्चा आता है और प्रकृती का दोहन भी होता है। उस कारण प्रदुषण भी बढता है। सिर्फ औद्योगिकरण बढाकर देश का भविष्य बदल जायेगा यह सोच आप की सरकार करती है वह सोच उतनी सच नही होगी।
      आज नही लेकिन, 50/75/100/200 साल के बाद बढते औद्योगिकरण से समस्या बढते ही जायेगी और उन समस्याओंका सामना 100/200 साल के बाद आनेवाली हमारी संतान होगी उनको भुगतना पडेगा। इसलिए सरकारने सिर्फ पांच साल की सोच नही तो पांच सौ साल की सोच कर के औद्योगिक क्षेत्र और कृषी क्षेत्र के विकास की सोच करनी चाहिए ऐसे हमे लगता है। आजादी के 68 साल में हमारे देश में जितना औद्योगिक क्षेत्र बढ गया उतनाही बेरोजगारी का प्रश्न छुटते गया है। ऐसे सरकार दावा करती है लेकिन औद्योगिकरण से जो पर्यावरणीय र्‍हास हो रहा है। उसकी किमत कौन और कैसे करेंगा?
      आजादी के बाद औद्योगिक क्षेत्र में जो लागत लगाई उतनी लागत कृषी पैदावारी मे लगाई जाती और कृषी पैदावारी बढाकर कृषी पर आधारित उद्योग लगाते और विदेश के मार्केट मिलाने का प्रयास करते तो बेरोजगारी को अपने गांव मे रोजगार मिल जाना था और औद्योगिक क्षेत्र से उनको रोजगार से आज जो पैसा मिलता उस से जादा पैसा किसान को मिलना था।
      बढते हुए औद्योगिकरण के कारण आज रोजगार मिल गया लेकिन बढते आबादी के कारण शहरों की समस्या भी बढ गई है। साथ साथ देश की अर्थव्यवस्था जितनी बदलनी चाहिए थी उतनी नही बदली है। औद्योगिकिकरण के कारण हमारी नदीयां जिनको हम पवित्र मानते थे उन हर नदीयों में औद्योगिकरण का गंदा पानी जाने के कारण पानी प्रदुषीत हुआ है। एैसे नदियों पर बडे बांध बनाकर बडे शहरो को पीने का पानी का उपयोग करते थे आज दिन-ब-दिन वह पानी पीने के लिए ठिक नही रहा है। कई शहरों मे इस पानी से बिमारियां बढने लगी है। दुषीत पानी से खेती की फसले बाधीत हो रही है। सरकार नया औद्योगिकरण की सोच करती है। वह हजारो हेक्टर के औद्योगिकिकरण का गंदा पानी इन पवित्र नदीयों मे ही जानेवाला है। नदीयों का पानी दिनबदिन प्रदुषीत होते जायेगा। सौ साल के बाद क्या होगा?
      आज नदीयों में जलचर प्राणी दिखाई नही दे रहे है। औद्योगिकरण का जहरिला पानी नदीयों में जाने से नदीयों के जलचर प्राणी मरते जा रहे है। आहिस्ते-आहिस्ते कई सालों के बाद जलचर प्राणी दिखाई नही देंगे। वास्तव में नदीयों मे और बडे डॅम मे जो जलचर प्राणी होते है वह पानी स्वच्छ करने को मदत करते है। लेकिन वह प्राणी भी औद्योगिकिकरण का केमिकल के जहरिले पानी से आहिस्ते आहिस्ते मरते जायेंगे। बढते हुए औद्योगिकरण से उनका जीने का हक हम छीन रहे है।
      देश मे सिंचाई के लिए बडे बडे बांध बनाने की सोच, आपकी सरकार कर रही है। अच्छी सोच है। लेकिन अभी तक जो बडे-बडे बांध बने है उन में बारिश के पानी के साथ साथ हर साल हजारो टन मिट्टी आकर बांध मिट्टी से भरते जा रहे है। जिस प्रकार हर इंसान को मृत्यू पसंद नही लेकिन 90/95/100 साल के बाद मृत्यू आता है, वह अटल है। उसी प्रकार 100/200/300/400 साल के बाद बडे-बडे बांध भी मिट्टी से भरनेवाले है। इस की भी सोच होना जरुरी है। वह मिट्टी नही टॉप सॉईल है। हर गांव की बहकर आयी हुई वह संपत्ती है। हर साल गांव की टॉप सॉईल बहकर जाने के कारण कृषी पैदावारी घट रही है। यह बांध मिट्टी से भरने के बाद क्या होगा कृषी सिंचाई का? क्या होगा बिजली निर्माण का? क्या होगा बडे बडे शहरों को मिलनेवाले पीने के पानी का? क्या होगा आज के औद्योगिक क्षेत्र का? यह सभी प्रश्न खडे है। क्यों कि, मिट्टी से भरे बांध की मिट्टी ना सरकार निकाल पायेगी ना जनता निकाल पायेगी। दुसरे बांध बनाने के लिए साईट नही होगी। इस कारण डॅम के आधार से खडे किए बडे बडे प्रकल्प खतरे में आने की संभावना है।
      इसलिए हमें गांव को इकाई मानकर हर गांव मे गिरनेवाला बारिश का पानी और पानी के साथ बहकर जानेवाली गांव की मिट्टी को गांव में ही रोकना जरुरी है। गांव का बारिश का पुरा पानी हम नही रोक सकते है लेकिन बहकर जानेवाली मिट्टी को हम गांव में रोक सकते है। तब हरित क्रांती या धवल क्रांती हो सकती है। मै कोई शास्त्रज्ञ नही हूँ। लेकिन ग्रामिण क्षेत्र में चालीस साल से काम करते आया हूँ इस कारण अनुभव बढ गया है। अनुभव के आधार से बोल रहा हूँ।
      श्रीमान नरेद्र मोदीजी ने चार क्रांती के बारें में जो कहा वह अच्छा लगा। दुध के लिए धवल क्रांती, अनाज के लिए हरित क्रांती, उर्जा के लिए सौर क्रांती, सागर के लिए निलक्रांती इन चार क्रांती के लिए कहने में दस महिना का प्रदीर्घ समय लगना ठिक नही लगा। सत्ता में आने के बाद इन क्रातीयों की शुरुवात होती तो आज कुछ परिणाम दिखाई देने थे। भाषण बहुत होते है लेकिन कृती नही होती। संत कबीर कहते है कथनी मिठी खांडसी करनी विष की लोय कथनी छोड करनी करे तो विष का अमृत होय।
      नई सरकार सत्ता में आते ही इन क्रांती की शुरुवात होती तो भूमी अधिग्रहण बील का सरकार पर आज जो बुरा असर हो रहा वह नही होना था। देश के किसानों को विश्वास निर्माण हो जाता था। देश के सामने इतने महत्वपूर्ण प्रश्न खडे होते हुए क्रॉंग्रेस और भाजपा एक-दुसरे पर आरोप प्रत्योरोप करने में समय बिता रहे है यह बात ठिक नही लगती है। इस से ज्ञात होता है कि, देश का नव निर्माण से जादा चिंता है सत्ता की। इसलिए एैसा होता है।
      हमारे उपर भी कई बार आरोप प्रत्यारोप होते है कि, हमारा आंदोलन सरकार के विरोध मे, पक्ष-पार्टी के विरोध में है। पहले भी कई बार हमने कहा है कि, किसी भी पक्ष, पार्टी, व्यक्ती के विरोध में यह आंदोलन नही करते है। व्यवस्था परिवर्तन का आंदोलन है। कृषी प्रधान भारत देश मे किसानों पर जो अन्याय हो रहा है इस लिए आंदोलन है। किसानों के भलाई के लिए आंदोलन है। गलत निर्णय से देश उद्योगपती के तरफ ना जाए इस लिए आंदोलन है। मुझे किसी से कभी वोट नही मांगना, ना किसी से कुछ लेना है। जीवन में सिर्फ सेवा करनी है। आज तक करते आया हूँ। शरिर में प्राण है तब तक करते रहूँगा।

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2 comments:

  1. I support anna stand about sustainable and inclusive growth of the country. Land acquisition ordnance is misleading for the over all growth of the society.
    Col Pramod Sharma

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  2. Anonymous7 April 2015 at 07:15

    I support anna stand about sustainable and inclusive growth of the country. Land acquisition ordnance is misleading for the over all growth of the society. The Government must provide Right to go court if kisan not get right price
    of the land.


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