Wednesday, 30 September 2015

निर्वाचन आयोग का लोकतांत्रिक और संवैधानिक फैसला

1 मई 2015 के बाद कराए जानेवाले सभी चुनाओं में बॅलेटींग युनिट पर प्रदर्शित किए जानेवाले मतपत्र/ ई.व्ही.एम. में अभ्यार्थीयों के (उम्मीदवारोंके) फोटो भी मुद्रीत होंगे। यह निर्वाचन आयोग का लोकतांत्रिक और संवैधानिक फैसला है।

·          जुलमी अंग्रेजों का अन्याय, अत्याचार सहन करने की क्षमता खत्म होने के कारण देश की जनताने1857 में आजादी की लढाई शुरु की।
·          1857 से 1947 इन नब्बे साल में शहीद भगतसिंग, सुखदेव, राजगुरु जैसे लाखो शहीदोने अपनी कुर्बानी दी।
·          1947 में देश आजाद हुआ। अंग्रेज हमारे देश से चला गया।
·          जिन लाखो शहीदो ने कुर्बानी दी उनका सपना था अंग्रेजों को देश से निकालना और देश मे लोकतंत्र को लाना । जो लोगोंका, लोगोने, लोकसहभाग से चलाया हुवा तंत्र वह लोकतंत्र ।
·          1947 में अंग्रेज हमारे देश से चला गया लेकिन देश मे जो लोकतंत्र आना था वह लोकतंत्र नहीं आया क्योंकि पक्ष और पार्टीतंत्र ने उसे आने ही नहीं दिया ।
·          1947 मे देश को आजादी मिली 1949 में भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरजी ने हमारा सुंदर संविधान बनाया । उस संविधान में पक्ष और पार्टी का नाम कही पर भी नही है ।
·          हमारा संविधान अनुच्छेद 84 के (क) और (ख) यह कहता है कि, भारत में रहनेवाला कोई भी भारतीय नागरिक उसकी उम्र 25 साल की हुई है ऐसे वैयक्तिक व्यक्ति लोकसभा का चुनाव लड सकता है ।
·          भारत में रहने वाला कोई भी व्यक्ति जिनकी उम्र 30 साल की हुई है वह कोई भी व्यक्ति राज्यसभा का चुनाव लड सकता है । संविधान पक्ष और पार्टी के समुह को चुनाव लडने की अनुमती नही देता है ।
·          26 जनवरी 1950 को हमारे देश में प्रजासत्ताक मनाया गया । जनता देश की मालिक बन गई। अब पक्ष और पार्टीयाँ बरखास्त होनी चाहिए थी क्योंकि संविधान में पक्ष और पार्टी का नाम ही नही है । इसलिए महात्मा गांधीजीने काँग्रेसवालोंको कहा था, जनता मालिक होने के कारण काँग्रेस पार्टी बरखास्त करो अब पार्टी का काम नही ।
·          1952 में देश में पहला चुनाव होनेवाला था उस  वक्त पक्ष और पार्टीयाँ बरखास्त तो हुई नहीं उलटा काँग्रेस पार्टी और बाकी पार्टीयों ने संविधान में पक्ष और पार्टी को चुनाव लडने की अनुमती ना होते हुए घटनाबाह्य चुनाव लडने का निर्णय लिया गया ।
·          यह चुनाव पक्ष और पार्टी का चुनाव संविधान विरोधी होने के कारण तत्कालिन चुनाव आयोगने इस पर आपत्ती उठाना जरुरी था लेकिन चुनाव आयोग ने आपत्ती ना उठाने के कारण 1952 से आज तक घटनाबाह्य चुनाव हो रहे है ।
·          घटनाबाह्य चुनाव के कारण पक्ष और पार्टीयों मे सत्ता स्पर्धा शुरु हो गई । हर पार्टी सोचने लगी येन-केन प्रकार से चुनकर आना है और सत्ता काबीज करनी है ।
·          चुनाव में सत्ता स्पर्धा के कारण कई पार्टीयाँ अपने पार्टी का उम्मीदवार गुंडा है, भ्रष्टाचारी है, लुटारु है, व्यभिचारी है यह पार्टी के लोग जानते है फिर भी ऐसे दागी उम्मीदवार को कई पक्ष-पार्टी ने चुनाव का तिकीट देना शुरु हो गया क्योंकि उनके पिछे मतोंका गठ्ठा है ।
·          इस कारण लोकसभा जैसे लोकशाही के पवित्र मंदिर में भ्रष्टाचारी, गुंडा, लुटारु उम्मीदवार चुनकर गए । लोकशाही के पवित्र मंदिर में आज 170 लोग दागी बैठे हुए है ।
·          पक्ष और पार्टी के समुह ने घटनाबाह्य चुनाव लडने के कारण संसद में पार्टीयोंका समुह बन गया और बाहर  समाज में भी पक्ष और पार्टीयों का समुह बन गया ।
·          पक्ष और पार्टीयों के समुह के कारण देश में भ्रष्टाचार बढते गया । समुह के कारण गुंडागर्दी बढ गई। दहशदवाद बढ गया। समुह के कारण लुट बढ गई। संविधान के मुताबीक जनताने चुना हुआ चारित्र्यशिल वैयक्तिक उम्मीदवार संसद में चुनकर जाता तो भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, दहशदवाद, लुट नही बढनी थी ।
·          हमारे देश में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, हेलिकॉप्टर घोटाला, कोयला घोटाला, व्यापम घोटाला जैसे करोडो रुपयों के घोटाले हुए है । यह पक्ष और पार्टीयों के समुह के कारण हुए है।
·          महात्मा गांधीजी कहते थे देश को बदलाना है तो पहले गावं को बदलना होगा । जबतक गावं नही बदलेंगे तब तक देश नही बदलेगा । आज देश के अधिकांश गावं में पक्ष और पार्टीयों के समुह ने गावं के लोगो में अपने -अपने पक्ष के ग्रृप बनाकर आपस में झगडे लगाए है । उस कारण अधिकांश गाव का विकास रुक गया ।
·          हमारे देश की लोकसभा यह लोगों की सभा होनी चाहिये ।  लोगोंकी सभा तब बननी थी जब संविधान के मुताबीक जनता का वैयक्तिक चारित्र्यशिल उम्मेदवार चुनकर जाता  तो वह लोगों की सभा बननी थी । लेकिन आज घटनाबाह्य पक्ष और पार्टी के लोग संसद में जाने के कारण वह लोगों की सभा ना बनते हुए पक्ष और पार्टी की सभा बन गई है ।
·          युवा शक्ती एक राष्ट्रशक्ती है । युवाशक्ती को जगाकर विधायक कार्य़ मे बढाते तो समाज, देश का उज्वल भविष्य दूर नही है । लेकिन पक्ष और पार्टीयों के समुह ने महाविद्यालयीन विद्यार्थीयों में अपने-अपने पक्ष-पार्टी के ग्रुप बनाने के कारण जो युवा शक्ती समाज और राष्ट्र विकास में लगनी थी वह य़ुवाशक्ती आपस में झगडे-तंटो में लगा दी है ।
·          आज उच्च शिक्षा में मेडिकल, इंजिनीयरींग, लॉ जैसे कही कॉलेज निकाले गए । अधिकांश कॉलेज पक्ष और पार्टीयों ने आपस में बटवारा कर के पैसों केलिए दुकानें लगाकर बैठे है । इस लिए सामान्य परिवार के छात्र उच्च-शिक्षा नही ले पाते ।
·          आझादी के 68 साल बित गये फिर भी हमें लोकतंत्र में सही सफलता नही मिली। उसका कारण है कई पक्ष और पार्टी के समुह अपने-अपने पक्ष-पार्टी की चिंता ज्यादा करते है । समाज और देश की चिंता करनी चाहिए वह नहीं होती है ।
·          पक्ष और पार्टी के इन समुह ने इकठ्ठा आ कर निर्णय लिया है कि पक्ष और पार्टी के चुनाव के लिए पैसा लगता है इसलिए पक्ष-पार्टी को (20,000/-) बीस हजार रुपयों का डोनेशन मिलता है तो उसका हिसाब जनता को नही देना है। कई पक्ष और पार्टीयाँ बडे-बडे उद्योगपतीयों से लाखो-करोड रुपयों का डोनेशन लेती है। उनके बीस हजार रुपयों के तुकडे बनाते है। उन तुकडो को बोगस नाम देते है और हमारे देश का कालाधन कई पक्ष-पार्टीयों के माध्यम से सफेद होता है। यह इस देश को बडा खतरा है ।
·          घटनाबाह्य चुनाव लडकर पक्ष और पार्टी के उम्मीदवार संसद में जनता के सेवक बनकर गए है । आज रहने के लिये बंगला, गाडी, टेलीफोन, बिजली, पाणी, एअर फेर, क्लास वन रेल, ए.सी. जैसे कई रियायत लेते है । उसके अलावा हर महा पचास हजार रुपया तनखा भी लेते है। फिर भी आज संसद में बैठे हुये पक्ष-पार्टी के कई लोग इकठ्ठा आ कर हमे पचास हजार रुपया तनखा पुरा नही होता है, एक लाख रुपये तनखा मिलने की मांग कर रहे है । जनता मालिक होने के कारण और जनप्रतिनिधी जनता के सेवक होने के कारण अपनी तनखा बढानी है तो जनता की राय लेना आवश्यक है। फिर भी अपनी मर्जी से जनता का पैसा आपस में बटवारा कर लेते है । यह बात लोकतंत्र के लिए  ठीक नही है।
·          जिस स्थिती में यह देश जा रहा है उस स्थीती में देश को उज्वल भविष्य मिलना संभव नही है । अगर देश को उज्वल भविष्य देना है तो उस की चाबी देश के जनता के हाथ में है ।
·          आने वाले दिनो में हर मतदार भारत माता की कसम ले कर प्रतिज्ञा करेगा की में कोई भी पक्ष और पार्टी का गुंडा, भ्रष्टाचारी, लुटारु, दहशतवादी उम्मीदवार जो घटनाबाह्य है ऐसे उम्मीदवार को मेरा वोट नही दूँगा। मैं सिर्फ जनता का वैयक्तिक चारित्र्यशिल उम्मीदवार है ऐसे उम्मीदवार को ही मेरा वोट दूँगा । सिर्फ पक्ष-पार्टी की सत्ता बदलकर देश में बदलाव नहीं आएगा। यह आजादी के 68 साल हम जनता ने अनुभव किया है। जब तक व्यवस्था परिवर्तन नहीं होगा तब तक देश को उज्वल भविष्य नही मिलेगा । पक्ष-पार्टी व्यवस्था परिवर्तन नही कर सकती यह आजादी के 68 साल से हम अनुभव कर रहै है। इसलिए जनता  के चारित्र्यशिल उम्मीदवार चुनकर गए तो व्यवस्था परिवर्तन कर पायेंगे ऐसा विश्वास होता है। कई लोग कहते है, संसद में पक्ष और पार्टी के उमेदवार नही होने से देश कैसा चलेगा? हमारा संविधान इतना अच्छा है कि जनता के उम्मीदवार को संविधान मार्गदर्शन करेगा । प्रधानमंत्री कैसे चुनना है? सभापती कैसे चुनना है? संसद मे स्टॅंडींग, ज्वाइंट कमीटी जैसी कमिटीया कैसी बनानी है? इन सभी बातों की जानकारी संविधान में दी गई है। उसके आधार से जनता के उम्मीदवार संसद को चला सकते है ।
·          अब आजादी की दुसरी लडाई देश के जनता को लडनी होगी। इस लडाई में जनता ने पक्ष और पार्टी के चुनाव चिन्ह जो घटनाबाह्य है उसको हटाना है और चारित्र्यशिल उम्मीदवार के फोटो के सामने का बटन दबाकर अपना वोट देना है। हर मतदाताने सिर्फ इतना करने से यह लडाई सफल हो जाएगी। इसलिए देश में समविचारी लोगों का संगठन बनाकर देश में आंदोलन खडा करना होगा।
पहले लडाई में जनता को नब्बे साल लडना पडा था क्योंकी अंग्रेज पराया था। उनको देश से निकालना कठीण था । इसलिये कई लोगों को शस्त्र से हिंसा भी करनी पडी थी । अब इस लडाई को इतना समय नही लगेगा। फिर भी 8, 10, 12 साल का समय लग सकता है। जनता कितने समय में कितनी संगठित होती है उस पर निर्भर है। पहले लडाई में लाखो लोगों ने बलिदान किया था। अब हमे बलिदान करने की जरुरत नही पडेगी क्योंकि हमारे देश के हमारे ही भाईयों के साथ अहिंसा के मार्ग से यह लढाई लडनी है । इस लडाई में अहिंसा के मार्ग से किसीसे भी झगडे-तंटे ना करते हुए सिर्फ अपने अमुल्य मत से मतपेटीयां और ई.व्ही.एम. से मतदार बदलाव ला सकेंगे । सिर्फ हर मतदारों ने भारत माँ की कसम ले कर प्रतिज्ञा करनी है कि मै किसी भी पक्ष-पार्टी के गुंडा, भ्रष्टाचारी, लुटारु, व्यभिचारी उम्मीदवार को मेरा अमुल्य मत नही दूँगा । मै संविधान के मुताबीक सिर्फ जनता का पक्ष-पार्टी विरहीत जो चारित्र्यशिल उम्मीदवार होगा ऐसे चारीत्र्यशिल उम्मेदवार को ही मेरा मत दूँगा । आनेवाले दस-बारा साल देश में गावं-गावं तक जागृती हो गई तो एक दिन ऐसा आयेगा की देश में लोगोंका, लोगोने, लोकसहभाग से चलाया हुआ जनतंत्र (लोकतंत्र) आयेगा । देश में हर राज्य में गाव स्तर पर लोकशिक्षण, लोकजागृती के कार्य करनेवाले कार्यकर्ताओं का संगठन करने का प्रयास होना जरुरी है। ऐसा प्रयास करनेवाले कार्यकर्ता आगे आ कर संगठित होकर प्रयास करना होगा ।
निर्वाचन आयोग द्वारा एक अच्छा निर्णय लिया गया है, एक मई 2015 के बाद कराये जानेवाले सभी निर्वाचनों में इव्हीएम के बॅलेट युनिट पर प्रदर्शित किए जानेवाले मतपत्र तथा डाक मतपत्र में विद्यमान निर्देश के अनुसार विवरों के अतिरिक्त इस पर उम्मीदवारों के फोटो भी मुद्रित होंगे। उम्मीदवारों के नाम तथा प्रतीक (आकृति) के मध्य में नाम के दाहिने ओर मत प्राथमिकता चिन्हित करने के कॉलम होंगे। ऐसा चुनाव आयोग ने 1 मई 2015 को निर्णय लिया है।  
अब हम देश की जनता इकठ्ठा हो कर चुनाव आयोग से बिनती करनी है की, आप ने मतपत्र में इव्हिएम पर प्रत्योशियों के फोटो लगाना सुनिश्चित किया है। यह लोकतांत्रिक और संविधानिक फैसला है। लेकिन अब किसी फोटो के साथ प्रतीक (चुनाव चिन्ह) की जरुरत नहीं रह जाती है। ऐसा चिन्ह रखना घटनाबाह्य होगा। हम सभी जनता ने मतपत्र/इव्हिएम पर से चुनाव चिन्ह को हटाने का आग्रह करना होगा। क्यों की ऐसा चिन्ह घटनाबाह्य है। अगर चुनाव चिन्ह हट जाए तो देश में लोकतंत्र आना आसान होगा। चलो, चुनाव चिन्ह हटाने के लिए हम आजादी की दुसरी लडाई के लिए संघटित होते है।

भारत माता की जय। वंदे मातरम्।

भवदीय,


कि. बा. तथा अन्ना हजारे

Wednesday, 23 September 2015

आजादी की दुसरी लडाई की आवश्यकता...

लाखो लोगों के बलिदान के बावजूद देश में सही आजादी ना आने के कारण
आजादी की दुसरी लडाई लडनी होगी।
अंग्रेजोंका जुलुम, अन्याय, अत्याचार, सहन करने की देश के जनता की सहनशिलता खत्म होने के कारण जुलमी अंग्रेजों को इस देश से निकालने के लिए और जनता का, जनताने, जन सहभाग से चलाया तंत्र जनतंत्र (लोकतंत्र) देश में लाने के लिए देश की जनता ने 1857 से आजादी की लडाई शुरु की थी। इस लडाई में शहीद भगतसिंग, राजगुरु, सुखदेव जैसे लाखो शहीदोंने बलीदान किया। कई लोगों को सशक्त कारावास की सजा भुगतनी पडी। कई लोगों को भूमीगत रहकर अनंत हाल अपेष्ठा सहन करनी पडी। नब्बे साल की प्रदीर्घ लडाई के बाद अंग्रेज को इस देश से जाना पडा और हमारा देश आजाद हुआ।
      1947 साल में अंग्रेज देश से चला गया। हमे आजादी मिली लेकिन जनता का, जनताने, जन सहभाग से चलाया जनतंत्र (लोकतंत्र) देश में आया नही। पक्ष और पार्टीतंत्र ने जनतंत्र को देश में आने नही दिया। लोकतंत्र न आने के कारण आजादी के 68 साल में वही भ्रष्टाचार, वही गुंडागर्दी, वही लुट, वही दहशतावाद दिखाई दे रहा है। प्रश्न खडा है कि, अंग्रेज इस देश से जा कर क्या हुआ? सिर्फ गोरे लोग इस देश से गए और काले लोग आ गए।
      पक्ष और पार्टीतंत्र ने देश मे जनतंत्र को आने ही नही दिया। 1949 में भारतरत्न आदरणीय बाबासाहेब आंबेडकरजी ने हमारे देश का सुंदर संविधान बनाया। उस संविधान में पक्ष और पार्टी का नाम कही पर भी नही है। 26 जनवरी 1950 में हमारे देश में प्रजा की सत्ता आ गई। प्रजा इस देश की मालिक बन गई। जिस दिन जनता इस देश की मालिक बन गई उसी दिन सभी पक्ष और पार्टीयां बरखास्त होनी चाहिए थी। हमारा संविधान पक्ष और पार्टी को अनुमती नही देने के कारण सभी पक्ष पार्टीया बरखास्त होनी चाहिए थी। इसलिए महात्मा गांधीजीने कॉंग्रेसवालों को कहा था अब जनता देश की मालिक होने के कारण और संविधान में पक्ष और पार्टीतंत्र का नाम ना होने के कारण कॉँग्रेस पार्टी बरखास्त किजीए।
      हमारा संविधान यह कहता है कि भारत मे रहनेवाला, जो भारत का नागरिक है और जिसकी उम्र 25 साल हो गई है ऐसा वैयक्तिक चारित्र्यशिल पक्ष और पार्टी विरहीत नागरिक लोकसभा का चुनाव लड सकता है। और भारत में रहनेवाला भारत का नागरिक जिस की उम्र 30 साल कि हुई है ऐसी चारित्र्यशिल वैयक्तिक व्यक्ती जो पक्ष-पार्टी विरहीत राज्यसभा का चुनाव लड सकती है। संविधान में पक्ष और पार्टी का नाम ना होने के कारण पक्ष और पार्टीयों के समुह को चुनाव लडने की अनुमती नही है। आजादी के बाद देश में 1952 में पहिला चुनाव हो गया। इस चुनाव में संविधान के मुताबीक पक्ष और पार्टीयां बरखास्त हुई नही। संविधान ने पक्ष और पार्टीयों को चुनाव कि अनुमती ना देत हुए भी पक्ष और पार्टीयोंने घटनाबाह्य चुनाव लडे। 1952 में जब घटनाबाह्य चुनाव पक्ष और पार्टीया लड रही थी उस वक्त तत्कालीन चुनाव आयोग ने आपत्ती उठाना जरुरी था।
      चुनाव आयोग ने आपत्ती ना उठाने के कारण 1952 से ले कर आज तक पक्ष और पार्टीयां घटनाबाह्य चुनाव लड रही है। घटनाबाह्य चुनाव के कारण पक्ष-पार्टीयों में सत्ता स्पर्धा शुरु हो गई। हर पक्ष-पार्टी सोचने लगी की येन-केन प्रकार से कुछ भी करना पडे अपनी पार्टी चुनाव में चुन कर तो आना ही है और सत्ता काबीज करनी है। चुनाव लडने वाला उम्मीदवार गुंडा है, लुटारु है, भ्रष्टाचारी है, दहशतवादी है यह पार्टी के नेता को पता है लेकिन उनके पिछे वोटोंका गठ्ठा है इसलिए ऐसे दागी लोगों को भी पक्ष और पार्टीयों के तरफ से चुनाव का तिकीट देना शुरु हो गया और संसद जैसे लोकशाही के पवित्र मंदिर में गुंडा, भ्रष्टाचारी, लुटारु, व्यभिचारी उम्मीदवार की संख्या बढती गई। संसद जैसे लोकशाही के पवित्र मंदिर मे 170 से जादा दागी लोग गए है। यह इस देश के लोकतंत्र को खतरा हैऽ
      पक्ष और पार्टी विरहित जनता के चारित्र्यशिल उम्मीदवार संसद में जाने के बजाऐ घटनाबाह्य चुनाव के कारण जो पक्ष और पार्टीयों के लोग चुनाव लड कर संसद में गए उनका संसद में समुह बन गया और बाहर समाज में भी पक्ष और पार्टी के समुह बन गए। संविधान ऐसे पक्ष और पार्टी के समुह को अनुमती नही देता है। संविधान भारत का वैयक्तिक
चारित्र्यशिलनागरिक को सम्मती देता है। ऐसे पक्ष और पार्टी के समुह के कारण देश में दहशतवाद निर्माण हो गया, समुह के कारण गुंडागर्दी बढ गई है, समुह के कारण भ्रष्टाचार बढते गया है, समुह के कारण देश में हमारे देश मे जॉंती-पॉंती, धर्म, वंश के भेद निर्माण हो कर आपस में झगडे निर्माण हो गए है।
      महात्मा गांधीजी कहते थे कि, देश का सर्वांगिण विकास करना है तो गांव का सर्वांग़िण विकास होना जरुरी है। देश का हर गांव बदल गया तो देश अपने आप बदल जाएगा। लेकिन पक्ष और पार्टीयों के समुहने गांव-गांव में पक्ष और पार्टी के ग्रुप बना दिए उस कारण आज हर गांव में पक्ष और पार्टीयों के ग्रुप बन गए। झगडे तंटे बढ गए और गांव का विकास रुक गया।
      चुनाव में पैसे की जरुरत पडती है इसलिए पक्ष और पार्टीयोंने इकठ्ठा हो कर सुझाव लिया है कि अपने पार्टी को चुनाव के लिए कोई भी (20,000) बीस हजार रुपए तक डोनेशन देता है उसका हिसाब देने की जरुरत नही है। आज कई पक्ष और पार्टीयॉं लाखों रुपयों का डोनेशन लेते है उस के बीस हजार रुपयों के तुकडे करते है क्योंकी इसका हिसाब नही देना पडता। ऐसे तुकडो को बोगस नाम देते है और हमारे देश का करोडो रुपयों का कालाधान पक्ष और पार्टीयों के माध्यम से सफेद होता है। पक्ष और पार्टीयों को मिलनेवाले पैसों के एक-एक रुपयों का हिसाब देना जरुरी है। इनका स्पेशल ऑडिट होना जरुरी है। लेकिन ऑडिट होता नहीं। हमारे देश में टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, बोफोर्स घोटाला, हॅलिकॉप्टर घोटाला, कोयला घोटाला, व्यापम घोटाला जैसे करोडो रुपयों के घोटाले होते है। अधिकांश पक्ष और पार्टीयों के समुह के माध्यम से होते है।
      संविधान के मुताबीक पक्ष और पार्टी विरहीत भारत का वैयक्तिक चारित्र्यशिल जनता के चुने हुए उम्मीदवार संसद में जाते तो यह करोडो रुपयों के घोटाले नही होने थे। घटनाबाह्य समुह के कारण यह घोटाले हुए है।
      देश में जनता का जनताने जन सहभाग से चलाया जनतंत्र लाने के लिए 2011 से हम लोग लोकशिक्षा, लोकजागृती का काम कर रहे है। 2012-13 में पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश में पांच महिनों में तीन हजार किलोमीटर सफर कर के तिनसौ सभाऐं ली। चुनाव आयोग के साथ चार बार बैठक हुई। चुनाव आयोग से भी पुछा संविधान में पक्ष और पार्टी का नाम ना होते हुए आप पक्ष और पार्टीयों को चुनाव की अनुमती कैसे देते हो। संविधान के मुताबीक जनता का चारित्र्य्शिल उम्मीदवार अथवा वैयक्तिक चारित्र्यशिल उम्मीदवार को ही मान्यता होनी चाहिए।
      चुनाव आयोग नें हमारे उत्तरप्रदेश के लोकतंत्र मुक्ती आंदोलन के कार्यकर्ताओं को बुलाकर चर्चा की और देश में पहिली बार निर्णय लिया है कि चुनाव में उम्मीदवारों के फोटो होंगे। सिर्फ नाम और चिन्ह नहीं। लेकिन फोटो के सामने चुनाव आयोग ने पार्टी के चिन्ह भी रखे है इसलिए हमने 18 सितंबर 2015 को चुनाव आयोग से पत्र लिखा है कि संविधान के मुताबीक पक्ष और पार्टी के उम्मीदवारों के सामने पार्टी का चिन्ह है उनको निकालन जरुरी है। क्योंकि वह संविधान विरोधी है। पक्ष और पार्टी के चिन्ह निकालने से संविधान के मुताबीक सिर्फ जनता के उम्मीदवारोंके फोटो रहेंगे। और मतदाता उन फोटो को देखकर चारित्र्यशिल उम्मीदवार को ही अपना वोट देंगे (बटन दबायेंगे)।
      देश के जिन नागरिकों को लगता है की 1857 से 1947 तक इन नब्बे साल में अंग्रेज को देश से निकालने के लिए और जनताका जनताने जन सहभाग से चलनेवाला जनतंत्र देश में लाने के लिए लाखो लोगोंने बलिदान किया। उनका सपना पुरा करने के लिए देश में जनतंत्र लाना है। इन विचारों के समविचारी लोगोंने संगठित हो कर आजादी की दुसरी लडाई लडनी होगी। आजादी की पहली लडाई लडने के लिए नब्बे साल लगे। अब इतना समय नही लगेगा। पहले जो बलिदान हुआ वैसे बलिदान की जरुरत नहीं सिर्फ संगठित हो कर धरना, मोर्चा, अनशन, जेलभरो ऐसी लडाई लडनी होगी। देश में गांव-गांव के जनता को जगाना होगा। संगठित करना होगा। बडी संख्या में इस लडाई में शामिल होना है।
जय हिंद। भारत माता कि जय।
भवदीय,

कि. बा. तथा अण्णा हजारे

स्वातंत्र्याच्या दुसऱ्या लढाईची गरज...

लाखो लोकांच्या बलिदानानंतरही देशात खरे स्वातंत्र्य आले नाही. 
त्यासाठी स्वातंत्र्यासाठी दुसरी लढाई लढावी लागणार...

इंग्रजांचा जुलुम, अन्याय, अत्याचार सहन करण्याची देशातील जनतेची सहनशिलता संपल्यामुळे जुलमी इंग्रजांना देशातून घालविण्यासाठी आणि देशात लोकांची, लोकांनी, लोक सहभागातून चालविलेली लोकशाही येण्यासाठी 1857 पासून इंग्रजांना घालविण्यासाठी देशातील जनतेने स्वातंत्र्याचे युद्ध सुरु केले. नव्वद वर्षाच्या प्रदीर्घ लढाई नंतर 1947 साली इंग्रजांना आपल्या देशातून जाव लागल. त्यासाठी शहिद भगतसिंग, सुखदेव, राजगुरू सारख्या लाखो लोकांनी आपल्या प्राणाच बलिदान केले. अनेकांनी सशक्त कारावास भोगले, भूमीगत राहून अनंत हाल अपेष्ठा सहन केल्या. तेव्हा कुठे आपल्या देशाला स्वातंत्र्य मिळाले.
1947 साली इंग्रज या देशातून गेला मात्र लोकांची लोकांनी लोक सहभागातून चालविलेली लोकशाही यायला हवी होती ती लोकशाही मात्र स्वातंत्र्याच्या 68 वर्षानंतर ही देशात आली नाही. तोच भ्रष्टाचार, तिच लुट, तोच दहशतवाद, तिच गुंडगिरी घडल काय इंग्रज जाऊन? फक्त गोरे गेले आणि काळे आले एवढाच फरक दिसतो आहे. पक्ष आणि पार्टीशाहीनी लोकशाहीला देशात येऊच दिले नाही. 1949 साली भारतरत्न आदरणीय बाबासाहेब आंबेडकरांनी देशाची सुंदर घटना तयार केली. त्या घटनेमध्ये पक्ष आणि पार्ट्याचे नाव कुठेच नाही. 26 जानेवारी 1950 साली आमच्या देशात प्रजासत्ताक आले. प्रजा या देशाची मालक झाली . ज्या दिवशी जनता या देशाची मालक झाली त्याच दिवशी तत्कालीन चालत आलेल्या घटनाबाह्य पक्ष आणि पार्ट्या बरखास्त व्हायला हव्या होत्या. महात्मा गांधीजींनी कॉँग्रेस वाल्यांना सांगितले होते देशात प्रजासत्ताक आले, जनता देशाची मालक झाली. आता कॉंग्रेस पार्टी बरखास्त करा. कारण आमच्या घटनेमध्ये पक्ष आणि पार्ट्यांचे नाव कुठेही आलेले नाही.
आमची घटना असं म्हटते आहे कि भारतामध्ये राहणारा कोणीही भारताचा नागरिक ज्याचे वय 25 वर्षे आहे असा चारित्र्यशिल वैयक्तीक माणूस लोकसभेची निवडणूक लढवू शकेल आणि ज्यांच वय 30 वर्षे झाले आहे असा माणूस वैयक्तिक राज्यसभेची निवडणूक लढवू शकेल. घटनेमध्ये पक्ष आणि पार्ट्यांचे नाव नसल्याने पक्ष आणि पाट्यार्ंंच्या समुहाला घटनेप्रमाणे निवडणूक लढविता येत नाही.
स्वातंत्र्यानंतर देशात 1952 साली पहिलीच निवडणूक झाली त्या वेळी पक्ष आणि पार्ट्या बरखास्त झाल्याच नाहीत या उलट पक्ष आणि पाट्यार्ंनी पक्ष आणि पार्ट्यांना घटना मान्यता देत नसताना घटनाबाह्य निवडणूका लढविल्या. वास्तविक पाहता तत्कालीन निवडणूक आयोगाने या निवडणूकांवर आक्षेप घ्यायला हवे होते. ते त्यांनी न घेतल्यामूळे 1952 पासून आजतागायत पक्ष आणि पार्ट्यांंच्या घटनाबाह्य निवडणूका चालू आहेत.
      पक्ष आणि पार्ट्यांच्या निवडणुकामुळे पक्ष-पार्ट्यांमधे सत्ता स्पर्धा वाढत गेल्या. सत्तास्पर्धामुळे आपला पक्ष येन-केन प्रकारे निवडून यावा आणि सत्ता आपल्या हाती असावी यासाठी उमेदवार गुंड आहे, भ्रष्टाचारी आहे, लुटारु आहे, दहशतवादी आहे हे पार्टीच्या लोकांना माहित असतानाही त्यांच्या मागे फक्त मतांचा गठ्ठा आहे म्हणून त्यांना निवडणूकीचे तिकीट देणे सुरु झाले आणि संसदेसारख्या एका पवित्र मंदिरामध्ये हळुहळु गुंड, भ्रष्टाचारी, लुटारु, दहशतवादींची संख्या वाढत गेली. आज लोकसभेसारख्या पवित्र मंदीरामध्ये 170 पेक्षा अधिक लोक दागी गेले आहेत हा लोकशाहीला गंभीर धोका आहे.
      पक्ष आणि पार्टी विरहीत चारित्र्यशिल वैयक्तिक उमेदवार संसदेमध्ये जाण्याऐेवजी पक्ष आणि पार्ट्यांचे समुह संसदेसारख्या पवित्र मंदिरात गेल्याने पार्ट्यांचे संसदेत ही समुह झाले आणि बाहेर समाज्यामध्ये ही समुह तयार झाले. पक्ष-पार्टी विरहीत जनतेने आपले प्रतिनिधी निवडून लोकसभेत गेले असते तर ती खर्‍या अर्थाने लोकांची सभा झाली असती. मात्र पक्ष-पार्ट्यांचे लोक लोकसभेत गेल्यामूळे ती लोकसभा न रहाता पार्ट्यांची सभा झाली.
      स्वातंत्र्यानंतर अशा पक्ष आणि पार्ट्यांच्या समुहामुळे देशात भ्रष्टाचार वाढत गेला. पक्ष आणि पार्ट्यांच्या समुहामुळे देशात जाती-पाती, धर्म, वंशभेद निर्माण होऊन आप-आपसात भांडण-तंटे निर्माण झाले. महात्मा गांधीजीं म्हणत होते देशाचा खर्‍या अर्थाने सर्वांगिण विकास करण्यासाठी खेड्यांचा विकास होणे आवश्यक आहे. खेड्यांचा विकास झाल्याशिवाय देशाचा खर्‍या अर्थाने विकास होणार नाही. आज देशातील अधिकांश खेड्यांमध्ये पक्ष आणि पार्ट्यांच्या समुहाने आप- आपले गट-तट निर्माण केले त्यामुळे खेड्याच्या विकासाला खिळ बसली. पर्यायाने देशातील विकासाला खिळ बसली.
      आपल्या पक्षाला निवडणूकीमध्ये पैशांची गरज असते म्हणून पक्ष आणि पार्ट्यांनी एकत्र येऊन निर्णय घेतला आहे की विस हजार (20,000/-) रुपये पर्यंत ज्या देणग्या पार्टीला मिळतात त्याचा हिशेब देण्याची गरज नाही. आज लाखो रुपयांचे डोनेशन काही पार्ट्या घेतात त्याचे विस हजाराचे तुकडे करतात आणि बिगर हिशेबी मिळणारा देणग्यांचा काळा पैसा आपल्याच देशात काही पक्ष आणि पार्ट्या पांढरा करण्याचे काम करतात. पक्ष आणि पार्ट्यांना मिळणार्‍या देणगीच्या एक-एक रुपयाचा हिशेब पक्ष आणि पार्टींनी द्यायला हवा. त्यांचे स्पेशल ऑडिट व्हायला हवे मात्र ते होत नाही.
      आपल्या देशात टू जी स्पेक्ट्रम, बोफोर्स, हॅलिकॉप्टर, कोळसा, व्यापम सारखे कोट्यावधी रुपयांचे घोटाळे होतात हे पक्ष आणि पार्ट्यांच्या समुहामुळे होतात. घटनेप्रमाणे पक्ष आणि पार्टी विरहित वैयक्तिक जनतेचा उमेदवार निवडून गेला असता तर हे करोडो रुपयांचे घोटाळे झाले नसते. भ्रष्टाचार, गुंडगिरी, लुट वाटली नसती. त्यासाठी 2011 पासून आम्ही लोकशिक्षण लोकजागृती करण्याचा प्रयत्न करीत आहे. 2012, 2013 मध्ये पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश अशा सहा राज्यात पांच महिने दौरे केले. तीन हजार (3000) किलोमीटर प्रवास करुन पाच महिन्यात तिनशे सभा घेतल्या. या देशात लोकशाही आणायची असेल तर जो पर्यंत पक्ष आणि पार्टीतंत्र नेस्तनाबुत होणार नाही तो पर्यंत देशात लोकशाही येणार नाही. याचा प्रचार प्रसार केला. याला जनतेचा चांगला प्रतिसाद मिळाला. जनतेला ही बाब पटते आहे. देशाचे निवडणूक आयोगा बरोबर चार वेळेला बैठका झाल्या. निवडणूक आयोगाला आमचे म्हणणे हेच होते की घटनेमध्ये पक्ष आणि पार्टींचा उल्लेख नाही मग तुम्ही पक्ष आणि पार्ट्यांना मान्यता देता कशी? त्या  वेळी निवडणूक आयोगाने चांगला प्रतिसाद दिला.
घटनेप्रमाणे किंवा वैयक्तिक उभा असलेला चारित्र्यशिल उमेदवार अशा जनतेच्या चारित्र्यशिल उमेदवारालाच आयोगाने मान्यता द्यायला हवी. पक्ष आणि पार्टीच्या उमेदवाराला नव्हे. ही बाब निवडणूक आयोगाच्या निदर्शनाला आणून देण्याचा प्रयत्न केला. या लढाईसाठी उत्तर प्रदेश मध्ये लोकतंत्र मुक्ती आंदोलन नावाने एक आंदोलन उभे झाले आहे. मध्यप्रदेश, उत्तराखंड मध्ये मोठ्‌या प्रमाणावर कार्यकर्ते या आंदोलनात सहभागी झाले आहेत. गेल्या काही वर्षाच्या या आंदोलनाला आज पन्नास टक्के यश मिळाले आहे.
लोकतंत्र मुक्ती आंदोलनाच्या आमच्या कार्यकर्त्यांशी चर्चा करुन भारत सरकारच्या निवडणूक आयोगाने स्वातंत्र्यानंतर पहिल्यांदाच एक चांगाल निर्णय घेतला आहे. यापुढे निवडणूकांमध्ये फक्त पक्ष आणि पार्ट्यांचे चिन्ह न वापरता उमेदवारांचे फोटो वापरण्याचे आदेश निवडणूक आयोगाने दिले आहेत. म्हणजेच उमेदवाराचे फोटो हे जनतेचे उमेदवार आहेत. मात्र सदर फोटोच्या पुढे निवडणूक आयोगाने उमेदवाराचे चिन्ह ही दिले आहे. दिनांक 18 सप्टेंबर 2015 रोजी आम्ही निवडणूक आयोगाला पत्र दिले आहे कि घटना पक्ष आणि पार्टीला मानत नाही तर उमेदवाराच्या फोटोच्या समोर जे घटनाबाह्य पार्टीचे चिन्ह दिले आहे ते चिन्ह काढून टाका. उमेदवाराच्या फोटो समोरचे पक्ष आणि पार्ट्यांचे चिन्ह काढून टाकल्यास मतदारांच्या समोर जे उमेदवाराचे फोटो असेल ते सर्व घटनेप्रमाणे जनतेचे उमेदवाराचे फोटो असतील.
आता येणार्‍या निवडणूकामध्ये मतदार उमेदवारांच्या फोटो मधील फक्त चारित्र्यशिल माणसांच्या फोटोसमोरचे बटन दाबतील किंवा शिक्का मारतील. यामुळे घटनाबाह्य पक्ष आणि पार्ट्यांचे चिन्ह असणार नाही. त्यामुळे फोटो मधील दिसणार्‍या चारित्र्यशिल उमेदवाराला पाहून मतदार जनतेने उभा केलेला किंवा वैयक्तिक उभा असलेल्या उमेदवाराला मतदान करतील आणि जस-जसी लोकजागृती होईल तशी पक्ष आणि पार्टीतंत्र नेस्तनाबुत होत जाईल व एक दिवस मतदार आपल्या देशात घटनाबाह्य पक्ष आणि पार्टीतंत्र नेस्तनाबुत करुन लोकंाची, लोकांनी, लोकसहभागातुन चालविलेली लोकशाही आणू शकतील. घटनाबाह्य पक्ष आणि पार्ट्यांचे चिन्ह निवडणूक आयोगाने उमेदवारांच्या फोटो समोरुन न काढल्यास स्वातंत्र्याची दुसरी लढाई समजून जनतेला अहिंसेच्या मार्गाने लढाई लढावी लागणार आहे.
      ज्यांना वाटत कि 1857 ते 1947 या नव्वद वर्षात देशात लोकशाही यावी म्हणून लाखो शहिदांनी बलिदान केले त्या शहिदांचे स्वप्न पुर्ण करण्यासाठी आता फक्त गरज आहे या देशात लोकशाही यावी अशा समविचारी माणसांनी एकत्र येण्याची. स्वातंत्र्याच्या 68 वर्षात लोकशाहीला पक्ष आणि पार्टीतंत्रांनी आपल्या देशात येऊच दिले नाही. ती लोकशाही येण्याचा मार्ग आपल्या घटनेप्रमाणे निवडणूक आयोगाने जनतेच्या दबावामुळे काही प्रमाणात आपणाला मोकळा करुन दिला आहे. आता गरज आहे देशातील समविचारी माणसांनी एकत्र येण्याची. कारण ही स्वातंत्र्याची दुसरी लढाई आहे.
पहिल्या स्वातंत्र्याच्या लढाईला 1857 ते 1947 नव्वद वर्षे लागले. लाखो लोकांना बलिदान कराव लागले. या लढाईला एवढी वर्षे लागणार नाही पण किमान 10 ते 12 वर्षे लागतील. मात्र कोणालाही बलिदान करण्याची वेळ येणार नाही. मात्र धरणे, मोर्चे, उपोषण, जेलभरो अशी आंदोलने करावी लागतील. गावां-गावांत जनतेला जागृत करावे लागेल. स्वातंत्र्याच्या या दुसर्‍या लढाईमध्ये मोठ्या संख्येने सामील व्हायला हवे।
जय हिंद। भारत माता की जय।

आपला,


कि. बा. तथा अण्णा हजारे

Wednesday, 26 August 2015

Exclusion of political parties from ambits of Right To Information Act is murder of democracy...

It is irrefutable fact that the Centre, by filing an affidavit saying that the political parties should not be brought under the ambits of the Right To Information (RTI) Act, has shown its consent to laundering the black money in the country. Some political parties have already decided that the political parties need not provide accounts for donations of amounts up to Rs 20,000.
Presently many political parties have been accepting donations of lakhs of rupees from big businesses for election funds and dividing them into parts, each of Rs 20,000. Each of these parts are shown as donations by bogus people. Thus amounts of unaccounted amounts of lakhs of rupees are being laundered.
Presently the political parties are maintaining some restraint because they are afraid of the RTI Act. However, the possibility of political parties collecting donations of lakhs of rupees and laundering the money by showing it as amounts donated by bogus people cannot be ruled out if they are excluded from the ambit of the RTI Act.
During election campaign, Prime Minister Narendra Modi Ji had promised to bring the black money back from abroad in 100 days and deposit Rs 15 lakh in account of each citizen. The black money stashed abroad was not brought back. Moreover, it can be said that now attempts are on to allow some political parties to launder the black money in the country by excluding them from the ambit of the RTI Act.
Ever since our country became a republic, the citizens have become owners of the country. The citizenry owns the government treasury. Therefore, being owner of the country and its treasury, every citizen has the fundamental right to know where and how the money is being spent. This is why RTI Act has been enacted. Political parties get many concessions from the government. This means they get money from public funds. Therefore, the citizens must have the right to information about that money. A number of agitations pressing for the RTI Act were staged in Maharashtra from 1995 to 2002. Maharashtra was the first state to enact the legislation in 2002 and later in 2005 the law was made by the centre too.
Under such circumstances, why today, ten years after the RTI Act was enacted, the government has apprehension about the misuse of the act?
In fact, political parties not only collect donations of lakhs of rupees but also get concessions from the government. The pertinent question is as to why special audit of such political parties is not carried out by the election commission. Every paisa that a party has must be audited. If all organisations and institutions in this country are audited, why political parties should not be audited? The central government’s argument that the RTI Act will be misused for political one-upmanship is not justifiable. On the contrary, people are being mislead because of the fear that if political parties are brought under the ambit of the RTI Act, they will have to provide the accounts to the people and would not be able to launder the black money.
Nobody will be able to misuse the provisions of this Act if the political parties and government machinery upload on their websites the information on 17 points they need to disclose mandatory under section 4 of the RTI Act. These 17 points would contain so much of information that once it is disclosed, nobody would be required to seek any further information. Isn’t the government aware about these 17 points under section 4 of the Act? Is it misleading the citizenry intentionally?
Exclusion of political parties from ambit of Right To Information Act is murder of democracy. During the election campaign, this government had promised time and again that once it comes to the power, it would give priority to fight against corruption. Its election agenda too contained this promise. The RTI Act might not have ended the corruption. But the irrefutable fact it that it has curbed corruption to a large extent.
Exclusion of political parties from ambit of the RTI Act at a time when the political parties are infested with corruption is a pointer towards the government turning its back towards the promises it had made during the election campaign.
The difference between the earlier government and this government would have been clearly visible had it had the will to curb corruption. However, even today no work can be done without paying bribe. The corruption has not reduced even after the change in the rule. The fact is that the prices are increasing instead of decreasing because of the increasing corruption and life has become difficult for people. Under such circumstances, what is the difference between this government and the previous government? There was hope that concrete steps would be taken to address the problems faced by the people in their daily life and to curb corruption and price hike. However, it did not happen. The promises of implementing the One Rank One Pension scheme, providing one and a half times more value to agricultural produce compared to the production cost, curbing corruption to some extent by implementing Lokpal and Lokayukta Act have remained unfulfilled.
People agitated all over the country between August 16, 2011 and August 24, 2011 to press for the Lokpal and Lokayukta Act. Lakhs of people came on to the streets. Prime Minister Narendra Modi Ji is not unaware about it. Many ministers in the present government were then playing the role of the opposition party. The parliament passed the Lokpal and Lokayukta Act by overwhelming majority on December 17, 2013. The president too has given his consent to it. All that the government of Narendra Modi Ji was required to do was to implement that Act. However, the Lokpal and Lokayukta Act has not been implemented though one and a quarter year has passed since the change of the rule, Even appointment of Lokayukta in every state on the lines of Lokapal would have curbed the corruption in the country to a large extent. However, the government is not acting to curb the corruption.
The government insists on implementing the Land Acquisition Bill that is unjust to the farmers by issuing ordinance although the farmers from all over the country are opposing it. Ordinance in this regard has been issued on three occasions. However, unfortunately the Lokpal and Lokayukta Act is not implemented although it has been passes by the parliament. All political parties must be brought under the ambit of the RTI Act because the citizens have the right to get information all organisations, which receive money from government treasury. If this government plans to exclude political parties from the ambit of the RTI Act, people have no choice but to launch agitation on the streets.
In fact the peoples’ parliament is superior to the political parties, election commission and central government. Therefore, the opinion of the peoples’ parliament, which means view of every voter in the country, must be taken into consideration. The voter is the real owner of this country and the government treasury. He has fundamental right to know where his money is being spent. Therefore, exclusion of political parties from ambit of RTI Act is insult to democracy.
Under such circumstances, I will be launching hunger strike at Ram Leela Maidan, New Delhi on October 2, 2015 which marks the birth anniversaries of Mahatma Gandhi and Lal Bahadur Shastri. I appeal to the people who have same views to participate in this agitation.
Thanks.
Yours

K. B. alias Anna Hazare)

पक्ष-पार्टियों को सूचना का अधिकार (RTI) के दायरे के बाहर रखना जनतन्त्र का गला घोंटने समान है।


राजनैतिक दलों को सूचना का अधिकार कानून के दायरे के बाहर रखा जाए ऐसा प्रतिज्ञापत्र सर्वोच्च न्यायालय में दे कर केन्द्र सरकार ने मानो देश का काला धन सफेद करने को ही अनुमति दे दी है। कुछ पार्टियॉं तो पहले ही घोषित कर चुकी है कि राजनैतिक दलों को प्राप्त रु. 20,000 से कम दान राशि का हिसाब देना जरुरी नहीं है।
      फिलहाल कई दल चुनाव हेतु बडे उद्योजकों से लाखों की तादाद में दान राशि ले कर उसे 20,000 के कई हिस्सों में विभाजित कर देते हैं। उन टुकडों को फलाना, ढीकला, ऐसा, गैरा, नत्थू, खैरा जैसे कोई भी मनगढंत मान दे कर लाखों-करोडों की मात्रा में काला धन सफेद किया जाता रहा है।
      सूचना का अधिकार कानून के डर से फिलहाल राजनैतिक दल कुछ हद तक तो संयम बरतते है। सदि सूचना का अधिकार से उन्हें मुक्ति मिल गई तो राजनैतिक दल चुनाव के नाम पर लाखों-करोडों की दान राशि खुल्लम खुल्ला ले लिया करेंगे और बोगस नाम दे कर काले धन को सफेद करने में जुट जाएंगे इस सम्भावना को नहीं नकारा जा सकता।
      प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोजी जी ने संसद चुनाव के दौरान जनता से वादा किया  था कि विदेशों में रखा गया देश का काला धन सौ दिन की अवधि में वापिस ले आएंगे और हर नागरिक के बैंक खाते में उसके 15 लाख रुपए जमा करवाएंगे। वह काला धन तो वापिस आने से रहा, मगर अब तो देश में का काला धऩ सपेद कराने का राज  मार्ग राजनैतिक दलों को प्रशस्त करवाने का प्रयास किया जा रहा है ऐसा साफ दिखाई दे रहा है।
      जब से इस देश में गणतन्त्र कायद हुआ है, प्रजा का स्थान सर्वोपरि है। सरकार खजाना जनता का है। उसमें का धन कहॉं, कैसे खर्च किया जा रहा है यह जानने का हर नागरिक को मालिक की हैसियत से मूलभूत हक बनता है। इसी लिए आरटीआई कानून बना है। राजनैतिक दलों को सरकार की तरफ से कई रियायतें हासिल है। यानि की जनता का धन उन्हें मिल रहा है। ऐसे में उस धन क बारे में जानकारी लेने का अधिकार जनता के पास होना लाजिमी है। क्यों कि जनता मालिक है। सूचना का अधिकार कानून के लिए महाराष्ट्र राज्य में सन1995 से ले कर 2002 तक आन्दोलन होते रहे। सन 2002 में पहले महाराष्ट्र राज्य में यह कानून बना और फिर सन 2005 में केन्द्र में भी बना।
इस कानून के बनने के दस वर्ष पूरे हो जाने के बाद अब इस कानून का गैरफायदा लिया जाने का डर सरकार को क्यों लगने लगा है। क्या वजह है इस डर की?
एक तरफ राजनैतिक दल लाखों-करोडों की राशि चुनाव के नाम पर दान में लेते हैं। तो दूसरी तरफ सरकार से रियायतें भी पाते हैं। सवाल तो यह बनता है कि इन दलों का स्पेशल ऑडिट सरकार अथवा चुनाव क्यों नहीं करता है?
 इन दलों को प्राप्त हर रुपये का हिसाब लिया जाए।  देश की सभी संस्थाओं का ऑडिट अनिवार्यतः होता है फिर राजनैतिक दलों का का क्यों न हो? केन्द्र सरकार दलील दे रही है कि दलगत राजनीति में इसका गलत फायदा उठाया जाने की सम्भावना है। यह दलील सर्वथा अनिचित है. उल्टा तो सूनचा का अधिकार के दायरे में आ जाने पर जनता को पूरा ब्यौरा देना पडेगा और फिर दान में  मिला काला धन सफेद करना मुश्किल हो जाएगा, इसी डर से जनता को भ्रमित किया जा रहा है।
      सूचना का अधिकार कानून के तहत कानून के कलम 4 में 17 मुद्दे सभी राजनैतिक दल और सरकार का हर विभाग यदि इण्टरनेट पर अपलोड करें तो इस कानून का गलत फायदा उठाना किसी भी व्यक्ति के लिए असम्भव होगा। क्यों कि इन 17 मुद्दों में इतनी सारी जानकारी मिल पाएगी ेकि किसी भी नागरिक को और सूचना मॉंगने की शायद ही जरुरत पडे। क्या केन्द्र सरकार कानून के कलम 4 के 17 मुद्दों से अपरिचित है
? या जान बुझ कर देश वासियों को भ्रमित किया जा रहा है?
राजनैतिक दलों को आरटीआई कानून के बाहर करने का सीधा मतलब जनतन्त्र का गला घोंटना है। सरकार ने चुनाव प्रचार के दौरान बार बार आश्वासन दिया था तथा अपनी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में भी साफ कहा था कि सत्ता में आने पर हमारी सरकार की पहली प्राथमिकता भ्रष्टाचार मिटान की होगी। सूचना का अधिकार कानून के कारण यद्यपि भ्रष्टाचार का खात्मा भले ही न हो पाया हो पर इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि देश के भ्रष्टाचार पर काफि हद तक अंकुश लग चुका है।   
एक तो राजनैतिक दलों में भ्रष्टाचार अनाप शनाप पनप चुका है, ऐसे में उन दलों को आरटीआई में से मुक्त करने का सीधा मतलब चुनाव में दिये आश्वासन से साफ मुकर जाना है कि हम भ्रष्टाचार मिटा कर रहेंगे।
भ्रष्टाचार को रोकने की सरकार की यदि वास्तविक मंशा होती तो पिछली सरकार में और इस सरकार में कुछ तो फर्क दिखाई देता। कहीं भी जाइये आज भी बिना घूस दिए जनता का कोई काम ही नहीं हो पाता। नई सराकर के सत्ता में आने पर भ्रष्टाचार में कोई कम कसर नहीं हुई है। हकीकत तो यह है कि बढते जा रहे भ्रष्टाचार के नतीजतन महँगाई भी बजाय कम होने के बढती ही जा रही है। सामान्य आदमी का जीना दूभर हो गया है। फिर फर्क ही क्या रहा पिछली सरकार में और इस सरकार में? उम्मीद थी कि जन जीवन से सीधी जुडी समस्याएं भ्रष्टाचार और मँहगाई के विषय में ठोस कदम उठाये जाएंग। अफसोस कि ऐसा हो न सका। चुनाव के पूूर्व आश्वासन दिये गये थे कि सत्ता में आते ही वन रँक वन पेन्शन लागू करेंगे, खेती की पैदावार के लागत मूल्य का डेढ गुना बाजार मूल्य किसान को मिलेगा, लोकपाल व लोकायुक्त कानून के अमल द्वारा भ्रष्टाचार पर कारगर कदम उठाएंगे। पर सभी आश्वासन धरे के धरे रह गए।
16 से 24 अगस्त 2011 के दौरान लोकपाल और लोकायुक्त कानून की मॉंग को ले कर देश भर में जनता के आन्दोलन हुए थे। देश भर में लाखों की तादाद में लोग सडक पर उतर आए थे। इस हकीकत से प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी नावापिफ तो नहीं है। आज मन्त्री पद पर आसीन कई महानुभव उस वक्त विपक्ष में थे। संसद में लोकपाल व लोकायुक्त कानून 17 दिसम्बर 2013 को भारी मताधिक्य से पारित हुआ। राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर भी उस पर हो चुके है। नरेन्द्र मोदी सरकार को मात्र उस पर अमल करना भर तो था। सत्तासीन हो कर सवा साल हो चुका पर लोकपाल-लोकायुक्त कानून पर कोई पहल नहीं की गई। सभी राज्यों में लोकपाल कानून की तर्ज पर लोकायुक्त की नियुक्ती कर कानून लागू करते तो भी देश के भ्रष्टाचार पर रोक लगा पाना सम्भव था। पर सरकार भ्रष्टाचार के विषय में कुछ कर ही नहीं रही।
      किसानों पर घोर अन्याय करने वाले भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ देश भर के किसानों के विरोध के बावजूद बार बार अध्यादेश ला कर कानून करने की जिद पर सरकार अडी हुई है। तीन बार अद्यादेश निकल चुके हैं। लेकिन देश व जनता के दुर्भाग्यवश भ्रष्टाचार की रोकथाम करने वाला लोकपाल लोकायुक्त कानून बन जाने पर भी उस पर अमल नहीं किया जाता। सभी राजनैतिक दलों का आरटीआई के दायरे में रहना अनिवार्य होगा। जिन संस्थानों को सरकारी खजाने से लाभ मिलता हो उनके बारे में जानकारी लेने का नागरिकों का हक बनता है। यदि सरकार राजनैतिक दलों को आरटीआई के दायरे में से मुक्त करने पर तुली रहेगी तो जनता को फिर से सडक पर उतर कर आन्दोलन करना होगा।
राजनैतिक दल, चुनाव आयोग, केन्द्र सरकार इन सब से बढ कर यूं तो जनसंसद सर्वोच्च स्थान पर है। मसलन देश के हर मतदाता नागरिक के विचार को जानना जरुरी है। मतदार ही तो इस देश का मालिक है। सरकारी खजाना उनका अपना है। उसमें का पैसा जिस पर खर्च किया जाता हो उस बारे में जानकारी लेने का हर नागरिक को मूलभूत अधिकार बनता है। राजनैतिक दलों को सूचना अधिकार के दायरे के परे रखाना यानि जनतन्त्र को अपमानित करना है।
मजबूर हो कर 2 अक्टूबर 2015, महात्मा गांधी जयंती तथा लाल बहादुर शास्त्री जयंती के अवसर पर रामलीला मैदान, नई दिल्ली में अनशन करने जा रहा हूं। मेरे विचारों से सहमति रखने वाली समविचारी जनता से इस आन्दोलन में शामिल होने की अपील है।
धन्यवाद।

भवदीय,
कि. बा. तथा अण्णा हजारे.