Tuesday 31 March 2015

प्रधानमंत्री मा. नरेंद्र मोदीजी को भूमि अधिग्रहण बिल के बारे में चिठ्ठी...

      महोदय,
स्वतंत्रता के बाद हमभारतवासी बडे गर्व से कहते है कि, हमारा देश कृषिप्रधान देश है। फिर भी अफ़सोस की बात है कि, स्वतंत्रता के 68 साल बाद भी इस देश का किसान ख़ुदकुशी करने पर मजबूर है। इसका कारण है कि, किसानों की समस्याओं का निवारण करने हेतु कारगर क़दम उठाने के विशेष प्रयास नही किए गये। किसानों का एकही मूल आधार है, उसकी जमीन कई पीढियों से उनके परिवार के भरण-पोषण का मूलाधार रही है।
सन 1894 में अंग्रेज़ों ने भूमि अधिग्रहण कानून इस लिए बनाया था कि, उसके तहत किसानों की भूमि पर आसानी से क़ब्ज़ा किया जा सके। उस कानून को देश की स्वतंत्रता के बाद हटाया जाना चाहिये था, मगर ऐसा नहीं हुआ। इसके चलते यूं हुआ कि, 12 वीं पंचवार्षिक योजना के आँकडों के मुताबिक पिछले 68 वर्षों में विकास के नाम पर 6 करोड लोग अपनी भूमि से हाथ धो कर विस्थापित हो बैठे हैं। उनमें से 40 प्रतिशत आदिम जन जाति के हैं। दुर्भाग्य की बात है किेे, विकास के नाम पर किसानों की जमीन अधिग्रहित की जाती है, लेकिन विस्थापित किसानों के पुनर्वास के बारे में सही कदम नही उठाए जाते। इस के कारण किसान की हालत दिनबदिन जादा खराब होती जा रहीं है। 
आप तो जानते है कि, 2013 तक अंग्रेजोंने बनाया हुआ कानून चल रहा था। यह कानून देश के किसानों के लिए अन्यायकारक था। किसानों के बडे प्रदीर्घ संघर्ष के बाद 2013 में भारतीय संसद में सर्व सम्मती से भूमी अर्जन पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शकता अधिकार विधेयक 2013’ पारित किया। तब अंग्रेजों ने बनाया हुआ अन्यायकारक कानून में स्वतंत्रता के 68 साल बाद बदलाव किया गया और भारतीय किसानों को कुछ हद तक राहत मिल गई।
आप की सरकारने 2013 के भूमी अधिग्रहण कानून में बदलाव कर के 31 दिसंबर 2014 को देश की किसानों पर घोर अन्याय करनेवाला अध्यादेश जारी किया। और फिर सभी विपक्षी दलों का विरोध होते हुए भी आप की सरकार ने इस अध्यादेश को बहुमत के बल पर 10 मार्च 2015 को कुछ मामुली संशोधन लाते हुए लोकसभा मे पारित किया।
आप के इस किसान विरोधी निती के कारण देश मे चारों तरफ से किसानों की आवाज उठी। देश में जगह जगह किसान सडक पर उतर आए। सभी विपक्षी दलों के सांसदोंने भी महामहीम राष्ट्रपती जी के पास जा कर अपना विरोध जताया। देश की जनता का और सभी विपक्षी दलों का विरोध देखते हुए आप की सरकारने लोकसभा में पारित किए गए भूमि अधिग्रहण बील को राज्यसभा में पेश नही किया। 31 दिसंबर 2014 को जो अध्यादेश आपने निकाला था उसके अवधी की मर्यादा 5 अप्रील 2015 तक है। उसके पहले आप की सरकार भूमी अधिग्रहण कानून 2013 के बिल में फिर से संशोधऩ कर के दुसरा अध्यादेश निकाल रही है, ऐैसा हमे पता चला है। इसलिए 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव ना करें। अगर आप 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव करना चाहते है तो, किसानों के भलाई के लिए कुछ सुझाव आप के सरकार के विचारार्थ हम देश के किसानों की और से आपके सामने प्रस्तुत करते है।
1) सरकार यदि किसानों की भलाई की सोच रखती है तो, आज़ादी के बाद देश में ज़मीन का सर्वे (लैण्ड-मॅपींग) होना ज़रूरी है। ज़मीन के क्लास 1/2/3/4/5/6 ग्रेड बनाकर क्लास 1/2/3 ग्रेड की ज़मीनें जो उपजाऊ हैं, ऐसी ज़मीन औद्योगिक क्षेत्र के लिए संपादित नहीं की जायेगी, ऐैेसा कानून बनाना ज़रूरी है।ऐैेसा कानून होता तो आज भूमि अधिग्रहण मे कौनसी जमीन लेनी, कौनसी जमीन नहीं लेनी यह प्रश्न निर्माण नही होता।
2) संसद द्वारा पारित 2013 के कानून में यह प्रावधान था किगॉंव की ज़मीन अधिग्रहित करने से पहले निजी प्रोजेक्ट के लिए 80 फीसदी किसानों की सहमति और सार्वजनिक नीजी (पीपीपी) के लिए 70 प्रतिशत लोगों की सहमती अनिवार्य थी। यह प्रावधान कायम रखे ये हमारा सुझाव है।
3) भूमी अधिग्रहण करने से पहले सामाजिक प्रभाव के आकलन के लिए जनतांत्रिक तरीके से सुनवाई कर के सामाजिक एवं पर्यावरण परिणामोंके मुल्यांकन के बाद लोग सहमती जरुरी है। यह प्रावधान कायम रहे यह हमारा सुझाव है। क्यों कि, लोगोंका लोगोंने लोगसहभाग से चलाया तंत्र, वह लोगतंत्र हुआ।
4) प्रकल्प के लिए अधिग्रहित ज़मीन पॉंच वर्षों तक प्रस्तावित प्रकल्प के लिए उपयोग में न लाई जाने पर अथवा विकसित नहीं होने पर उक्त ज़मीन उसके मूल मालिक किसानों को लौटाने का प्रावधान जो कि सन 2013 के कानून में रखा गया था, उसे भी इस नए कानून के द्वारा आपकी सरकार ने हटाया है। पांच साल मे प्रकल्प खडा नही हुआ तो मूल मालिक की जमीन उनको वापिस करना जरुरी है। यह प्रावधान होना आवश्यक है।
5) सन 2013 के कानून में राष्ट्र के हितार्थ कुछ प्रकल्पों के लिए कुछ ख़ास रियायतें दे रखी थीं। अब इस नए कानून में जनहित के प्रकल्पों की सूचि का विस्तार कर के उसमें निजि क्षेत्र के अस्पताल, निजि शिक्षा संस्थानों के विद्यालयों का भी समावेश हुआ है। वास्तविकता यह है कि, कई अस्पताल मरीज़ों से अनाप-शनाप पैसा वसूलते हैं। वो ही बात निजि विद्यालयों की। फीस और बडी दानराशियॉं वसूलने में वे भी पीछे नहीं हैं। इस मुद्दे की सुची में निजी क्षेत्र का समावेश करना ठिक नही।
6) बढती आबादी को देखते हुए देश में पर्याप्त अनाज उत्पादन हो यह हमेशा हमारी मूलभूत राष्ट्रीय प्राथमिकता रही है। इसी कारण से खेती की ऊपजाऊ ज़मीन का अधिग्रहण रोकने हेतु 2013 के कानून में यह प्रावधान रखा गया था कि, प्रति वर्ष जिन ज़मीनों में दो या दो से अधिक फ़सलें ली जाती हों वे ज़मीनें उद्यम क्षेत्र के लिए अधिग्रहित नहीं की जाएं। इस प्रावधान को भी नए कानून में हटाया गया है। अब तो सिंचित ऊपजाऊ ज़मीन भी विकास के नाम पर उद्यम क्षेत्र को दी जाएगी। इससे किसानों की आत्महत्या और बढेगी। देश के अनाज उत्पादन पर इसका विपरीत परिनाम होगा।  इसलिए बहुफसली जमीन ग्रहण नही करनी चाहिए।
7) सन 2013 के कानून की धारा 87 के अनुसार ज़मीन अधिग्रहण में किसान के साथ यदि नाइन्साफ़ी हुई हो तो, उस अपराध में लिप्त अफसर या पदासीन व्यक्तियों पर कानूनी कार्रवाई का प्रावधान था। जो कि आप की सरकार के अध्यादेश में हटाया गया है। अब ऐसे स्थिती में उन अफसरों के विरोध में शिकायत एवं कानूनी कार्रवाई करने के लिए किसानों को सरकार की इजाज़त लेनी पडेगी। सरकार ने किसानों की हक की रक्षा करना जरुरी है। इस लिए इस में परिवर्तन करना जरुरी है।  किसानों को अपने न्याय हक के लिए रोकना ठिक नही है।
8) 2013 कानून के प्रावधान 24 जो की इस अध्यादेश के लागू होने से पहले भूमी अधिग्रहण के मुआवजे से सम्बंधित प्रावधान है। 2013 का कानून कहता है कि, अगर इस अध्यादेश के 5 साल पहले अधिग्रहित भूमि पर कब्जा नही लिया गया है, या मुआवजा नही दिया गया है तो, उसमें वापस शुरु से 2013 के कानून के अंतर्गत कार्यवाही की जायेगी इस प्रावधान में बदलाव ना करें।
9) भूमि अधिग्रहण के बाद विस्थापित किसानों के परिवार के एक सदस्य को सरकारी, गैरसरकारी और निजी उद्योमों के संस्था में नौकरी देने का प्रावधान नए कानून में रखना जरुरी है।
10) देश के नदियों के किनारों के दोनो तरफ दो किलोमीटर तक उद्यमों के लिए भूमी अधिग्रहण न किया जाए।
11) देश में सभी हायवेज और रेलमार्ग के दोनो तरफ उद्यम क्षेत्र के लिए एक किलोमीटर तक की भूमि अधिग्रहित करने का जो प्रावधान नये बील में रखा है, वह निकाल देना चाहिए।
विकास के मुद्दे को ले कर हमारा विरोध नहीं है। अगर भारत को गांधीजी के सपने का बलशाली भारत बनाना है, तो विकास की योजना तो अपनानीही पडेगी। लेकीन प्रकृति और मानवता का शोषण करते हुए जो विकास किया जाएगा वह सही शाश्वत विकास नहीं होगा। हायवेज बनेंगे, कॉरिडोर बनेंगे। इसका फायदा कुछ समित लोगों को मिलेगा। लेकिन आम आदमी और किसानों का क्या होगा? यह सोचने की बात है। क्यों कि, देश की जादा तर आबादी गांव में रहती है और खेती पर गुजारा करती है। ऐसे स्थिती में स्मार्ट सिटी के साथ साथ स्मार्ट व्हिलेज का निर्माण करना देश के हित मे होगा।
महात्मा गांधीजी के विचारों के मुताबिक गाव को मुख्य प्रशासनिक इकाई मानकर ग्रामसभा को विधायिका का अधिकार देना ज़रूरी है। क्यों कि ग्रामसभा तो स्वयंभू और सार्वभौम है। देश की ग्रामसभा, लोकसभा और विधानसभा को हर पांच साल में बदलती रहती है। लेकिन ग्रामसभा खुदकभी बदलती नहीं। हर व्यक्ति 18 साल की उमर होने पर ग्रामसभा का सदस्य बनता है, और ताउम्र ग्रामसभा का सदस्य बना रहता है। ग्रामसभा को चुना नहीं जाता, वह स्वयंभू है। इस लिए गांव की जल, जंगल, जमीन, पानी जो भी, जितनी भी गांव की साधनसंपत्ति है उसका मालिक तो गांव ही है। इसलिए भारत सरकार या राज्य सरकार को गांव की कोई भी साधनसंपत्ति यदि लेनी हो, तो ग्रामसभा की सम्मती होना ज़रूरी है। ऐसा कानून बनना चाहिये। इसी से सही लोकतंत्र संस्थापित होगा। आपकी सरकार ने भूमि अधिग्रहण बील में बदलाव करके ग्रामसभा के अधिकार को ही खत्म कर दिया है। यह लोकतंत्र के विरोधी है।
देश मे कई राज्यो में ऐसा भी हुआ है कि, किसी प्रकल्प के लिए किसानों की ज़मीन तो अधिग्रहण की गई है लेकिन 25/30/35 साल से किसानों को पुरा मुआवजा तक नहीं मिला और ना ही उनका पुनर्वास भी तो हुआ है। इस बात की अनदेखी सरकार क्यों कर रही है? कई किसान ऐसे हैं कि, जिनकी ज़मीन अधिग्रहण हुई, मकान चले गए लेकिन मुआवजा और पुनर्वास नहीं हुआ है। उन किसानों के दर्द को सरकार ने समझना ज़रूरी है। इन 68 वर्षों में सरकारों की संवेदनशीलता ही खत्म होते जा रही है। यह बात मानवता के लिए कलंक है।
भूमि अधिग्रहण बील के बारेमें हम कई लोग जो संघर्ष कर रहे है, उसके बारेमें हम पहले से कहते आए है कि, हमारा संघर्ष किसी व्यक्ती, पक्ष या पार्टी के विरोध में नही है। व्यवस्था के विरोध में संघर्ष है।
देश के सभी किसानों की ओर से आप को बिनती है कि, भूमि अधिग्रहण 2013 के कानून में बदलाव कर के आप की सरकार दुसरी बार जो अध्यादेश निकालने जा रही है, उसमें किसानों की ओर से उठाए गए मुद्दों को सम्मिलीत करना जरुरी है। यह देश के जनसंसद की इच्छा है। और आप तो जानते ही होंगे की, देश मे जनसंसद का स्थान सबसे ऊंचा है। हमे उम्मीद है कि, आप इन मुद्दोंपर गंभीरता से विचार करेंगे और भूमि अधिग्रहण बील में किसानों पर अन्याय होनेवाले मुद्दों को निकालकर किसानोंके हित में सही फैसला करेंगे।
आप ने लोकसभा चुनाव के दौरान और सत्ता में आने के बाद कई बार  गुड गव्हर्नन्स की बात की है। इसलिए अपेक्षा करते है कि, आप के कार्यालय से इस पत्र का सही जबाब मिलें।
धन्यवाद।

भवदीय,

कि. बा. तथा अण्णा हजारे

प्रति,
मा. नरेंद्र मोदीजी,
प्रधानमंत्री, भारत सरकार

राईसीना हिल, नई दिल्ली.

Friday 27 March 2015

भूमि अधिग्रहण के बारे में मा. नितीन गडकरी जी को चिठ्ठी...

प्रति,
मा. नितीन गडकरी जी,
सडक परिवहन राजमार्ग एवं पोत परिवहन मंत्री,
भारत सरकार, नई दिल्ली

महोदय,
आपका दि. 19 मार्च 2015 का पत्र मिला।
      मैने दि. 13 मार्च 2015 को ग्राम विकास मंत्री श्री. बिरेन्द्र सिंह चौधरी जी को पत्र लिखा था लेकिन, उन कि तरफ से अभी तक कोई जवाब नही आया है। पत्र को संलग्न भेज रहा हूँ।
      आपने अपने पत्र मे लिखा है की, नरेंद्र मोदी सरकार गावं, गरिब किसान और मजदुरों के हित मे काम करनेवाली सरकार है।
1 1) प्रश्न उपस्थित होता है की, सरकार किसान गावं, मजदुरों के हित मे काम करती है तो, भूमी अधिग्रहण बील कानून मे देश कि संपूर्ण भूमी का सर्वे किया जाएगा, उसमें क्लास 1/2/3/4/5/6 ग्रेड बनाए जाऐंगे। और क्लास 1/2/3/4 जमीन जो उपजाऊ है वह अधिग्रहण नही किया जाऐगा। एैसा कानून बनता तो किसानो कि उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण नही होता था। आज देश का किसान और सरकार मे जो मतभेद हुए है वह मतभेद नही होना था। एैसा कानून बनवाने में सरकार को क्या दिक्कत है? एैसा ना करने के कारण किसानों पर अन्याय करनेवाला बील बनाया गया। आपने पत्र मे लिखा है की, पुरे कानून में कोई भी ऐसी बात नही है जो किसानों के विरोध मे हो। नीचे लिखी कई बातें देखने से पता चलेगा की, इस कानून में कितनी बातें किसानों के विरोध में है।
  2)  2013 को संसद मे पारित हुआ कानून मे यह प्रावधान था की, गांव कि जमीन अधिग्रहित करने से पहले निजी प्रोजेक्ट के लिए 80 फिसदी किसानों की सहमती और सार्वजनिक निजी (पीपीपी) के लिए 70 फिसदी लोगों की सहमती अनिवार्य थी। लेकिन आपकी सरकार ने उसको हटाया है और कहा है की, सहमती कि जरुरत नही। क्या यह किसानों पर अन्याय नही है? लोकतंत्र मे जीनकी जमीन लेनी है, वह मालिक है। उनकी सम्मती के बिना उनकी जमीन जबरन लेना इस से अंग्रेजों की हुकुमशाही और इस सरकार मे फरक क्या रहा है ? यह किसानों पर अन्याय है।
26 जनवरी 1950 मे प्रजासत्ताक आ गया है। प्रजा इस देश कि मालिक बन गई है। सरकार चलाने वाले सभी जनता के सेवक है। जब जनता देश कि मालिक है और सरकार चलाने वाले जनता के सेवक है तो यह अन्याय नही है? सेवक मालिक कि जमिन उनकी बिना अनुमती से कैसे ले सकता है? अगर एैसा हुआ तो हमारा संविधान जो कह रहा है हम भारत के लोग भारत को एक सार्वभौम, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकशाही गणराज्य निर्माण करने का सपना पुरा करना है वह कैसे पूरा होगा? भूमी अधिग्रहण कानून में जिनकी जमीन है उनकी सम्मती के बिना जमिन लेना यह किसानों पर अन्याय है। और यह लोकतंत्र के विरोध में है। आपने अपने पत्र मे लिखा है की, कानून में कोई भी एैसी बात नही है जो, किसानों के विरोध मे हो। आपका वक्तव्य यह जनता की दिशाभूल करनेवाला महसुस हो रहा है।
3) 2013 के कानून में सामाजिक परिणाम मुल्यांकन अनिवार्य किया था। अब उसको शिथील किया है। 
4) प्रकल्प के लिए अधिग्रहित जमीन, पांच साल तक प्रस्तावित प्रकल्प के लिए उपयोग मे न लाई जाने पर अथवा विकसित ना होने पर, उस जमीन उसके मूल मालिक को लौटाने का प्रावधान 2013 के कानून मे रखा गया था। लेकिन आपकी सरकारने उसको हटा दिया है। अब यह जमीन मूल मालिक को वापीस नही दी जाएगी। यह किसानों पर अन्याय करनेवाला निर्णय है। अब एैसी तरतुद कि है की, 5 साल शब्द को हटाकर उस जगह पर प्रकल्प पुरा करने के लिए जो कालावधी विहित किया है वह अथवा पांच साल इसमे जो अधिक होगा वह कालावधी ऐसे निर्णय् से जमिन हमेशा उद्योग पतियोंके कब्जे मे रह सकती है ऐसा हुआ तो किसानों पर अन्याय होगा।
5) 2013 के कानून में यह लिखा है की, देश मे बढती हुई आबादी को देखते हुए देश मे पर्याप्त अनाज उत्पादन हो। यह हमेशा हमारी मुलभूत राष्ट्रीय प्राथमिकता रही है। इसी कारण जीस खेती मे किसान दो या तिन फसले उगाता है ऐसी जमीने उद्यम क्षेत्र के लिए अधिग्रहित नही कि जाऐगी। एैसे प्रावधान 2013 के कानून में था। इस प्रावधान को नरेंद्र मोदी सरकारने हटाया गया है। अब सिंचित क्षेत्र कि उपजाऊ जमीन भी उद्यम क्षेत्र के लिए दी जाऐगी। यह किसानों पर अन्याय है। बहुफसली जमीन जो राष्ट्रीय पैदावारी बढाती है उसका अधिग्रहण नही करना चाहिए।
6) 2013 के कानून मे धारा 87 के अनुसार जमीन अधिग्रहण मे किसानों के साथ नाइन्साफी हुई तो अपराध मे लिप्त ऑफिसर या पदासिन व्यक्तिंयो पर कानून कार्यवाही का प्रावधान था। अब मोदी सरकारने उसको हटाकर ऑफिसरों के विरोध मे शिकायत या कानूनी कार्यवाही करनी है तो सरकार कि इजाजत लेनी पडेगी। सरकारने किसानो कि न्याय हक कि रक्षा करनी है लेकिन सरकार किसानों के न्याय हक के लिए रोकती है। तो लोकतंत्र हि खतरे मे आऐगा। यह किसानों पर अन्याय है।
महात्मा गांधीजी के विचारों के मुताबिक गांव को प्रशासनिक इकाई मानकर ग्रामसभा को विधायिका का अधिकार देना जरुरी है। गांव मे जल, जंगल, जमीन जैसी जो भी साधन संपत्ती है उसका गांव मालिक है। भारत सरकार हो या राज्य सरकार हो किसी भी गांव कि संपत्ती लेनी है तो, ग्रामसभा कि अनुमती लेना जरुरी है। ऐसे प्रावधान कानून में होना जरुरी था। लेकिन भूमी अधिग्रहण बील कानून ने ग्रामसभा के अधिकार को ही खतम कर दिया है। यह लोकतंत्र विरोधी निर्णय् है। गांव, गरिब किसान के हित की सरकार कैसे हो सकती है?
      2013 के कानून में सभी जगह निजी कम्पनी शब्दों को निजी संस्था शब्दों से बदला जायेगा। निजी संस्था की परिभाषा अध्यादेश में नया प्रावधान जोडकर इस प्रकार दी गई है कि, सरकारी संस्था या सरकारी उपक्रम के अलावा कोई भी संस्था जो कि प्रोपराईटरशिप, साझा कम्पनी, निगम, लाभारहित संस्था या किसी भी कानून के द्वारा बनायी गयी कोई संस्था हो।
      इसका तात्पर्य यह हुआ कि, पहले निजी कम्पनी जो की कम्पनी कानून 2013 के तहत परिभाषित एवमं बाध्य थी कि, जगह अब किसी भी प्रकार की निजी संस्था अध्यादेश के विभिन प्रावधानो के द्वारा भूमी अधिग्रहण कर सकेगी।
      2013 कानून के प्रावधान 24 जो की इस अध्यादेश के लागू होने से पहले भूमी अधिग्रहण के मुआवजे से सम्बंधित प्रावधान है। एवमं कहता है कि, अगर इस अध्यादेश के 5 साल पहले अधिग्रहित भूमी पर कब्जा नही लिया गया है या मुआवजा नही दिया गया है तो, उसमें वापस शुरु से 2013 के कानून के अंतर्गत कार्यवाही की जायेगी।
      उपरोक्त प्रावधान में यह जोडा गया है कि, अगर कोई मुआवजा या भूमी का कब्जा कानूनी कार्यवाही के कारण नही हो पाया है तो कानूूनी कार्यवाही के कारण देरी की अवधी 5 साल की अवधी में शामिल नही की जायेगी। यह किसानों पर अन्याय है।
भूमी अधिग्रहण करने के बाद किसान के एक आदमी को नौकरी दी जाऐगा। ऐैसा आश्वासन दिया जाता है। उसकी  गॅरंटी क्या है ? पहले भी एैसे आश्वासन दिए गऐ थे। लेकिन आज तक जिनकी भूमी अधिग्रहित कि उनको 25-30 साल के बाद भी नौकरी नही मिली। आश्वासन यह आश्वासन ही रह गया है।
      इलेक्शन के समय मोदी सरकारने कहा था हम सत्ता में आने के बाद 100 दिन मे कालाधन लाऐंगे। हर आदमी के बँक अकाऊंट में 15 लाख रुपया जमा करेंगे। लेकिन 10 महिनों में 15 रुपया भी जमा नही हुआ। आश्वासन तो दिए थे लेकिन उनका पालन नही किया है।
      भ्रष्टाचार के विरोध कि लडाई को प्राथमिकता देंगे। लोकपाल लोकायुक्त कानून बना है लेकिन उसकी अंमलबजावणी नही हो रही है। घोषणा बहुत होती है, कार्यवाही नही होती।
      आपने खुली बहस कि चर्चा का आवाहन किया था। खुली बहस कि चर्चा को हम स्विकारते है। लेकिन आपसे बहस होकर ठोस निर्णय होने की संभावना बहुत कम है। श्री. नरेंद्र मोदीजी बहस में आते है और हम चार-पांच आंदोलनकारियों से चर्चा होती है तो कुछ निर्णय होने की संभावना है। हम अपेक्षा करते है कि, नरेंद्र मोदीजी ने इस खुली बहस के लिए दिन, समय, स्थल बतायें।

भवदीय,

कि. बा. तथा अण्णा हजारे


Thursday 26 March 2015

पुंजीपतियों से आर्थिक सहायता मिलने के आरोपोंं के बारे में...

अण्णा हजारे के आंदोलन को पुंजीपतीयों से आर्थिक सहायता मिलती है,
आंदोलन के लिए विदेश का पैसा आता है। एैसे झुठे आरोपों का खंडन...

इस देश के सर्वांगिण विकास के लिए ग्रामिण विकास और विकास में लगा भ्रष्टाचार का परक्युलेशन को रोकना एक ही सिक्के के दो पैलू है। यह दोनों बाते जब तक नही होंगी तब तक इस देश का शाश्वत विकास होना संभव नही है। स्वामी विवेकानंदजी के विचारों की प्रेरणा और महात्मा गांधीजी के विचारों के प्रभाव से मै ने जीवन के 25 साल की उम्र मे अपना जीवन समाज और देश की सेवा में देने का निश्चय किया। साथ-साथ अविवाहित रहने का भी निश्चय किया। आज मेरी उम्र 77 साल की हुई है। वही विचार कायम है।
रालेगणसिद्धी नाम के मेरे 2500 आबादी के गावं को आदर्श गावं (मॉडेल व्हिलेज) बनाने का प्रयास किया। पिछले 12 साल में आठ लाख देश-विदेश के लोगोंने इस गांव का निरिक्षण किया है। आज भी हर दिन लोग गांव देखने आते है। 1990 मे भ्रष्टाचार को रोकने की मुव्हमेंट शुरु की। उससे सूचना का अधिकार जैसे सात कानून महाराष्ट्र मे बनाए गये। छह कॅबिनेट मंत्री और लगभग 400 अधिकारीयों पर कार्रवाई हुई है। भारत सरकारने लोकपाल, लोकायुक्त कानून बनवाया है।
लेकिन आज तक इस काम के लिए कभी भी विदेश का पैसा नही लिया। एवं हमारे देश के उद्योगपतीयों का डोनेशन भी नही लिया है। जब मै दौरे करता हूँ, सभा लेता हूँ वहा झोला रखता हूँ और जनता से बिनती करता हूँ की 5/10/15 रुपया झोला में डालो। हर सभा मे 500/700/1000 रुपया जमा होता है। उसका एक-एक रुपया का हिसाब जनता को देता हूँ। आर्थिक व्यवहार कभी भी गोपनीय नही रखा है।
जो भी बँक व्यवहार किया है वह पारदर्शी किया है। गोपनीय कुछ भी नही रखा है। फौज कि पेन्शन बारह हजार रुपया महिना मिलती है। उस पर मेरा गुजारा होता है। उस मे से बची हुई कुछ रक्कम कई बार समाजसेवा के लिए खर्च करता हूँ। आज तक किसी के सामने पैसों के लिए हाथ नही फैलाया। आज भी जीवन में कही पर बँक बॅलन्स नही रखा है। लेकिन जब मै भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन चलाता हूँ तो, कई पक्ष और पार्टी के नेताओं को वह ठिक नही लगता। इस लिए कई लोग मेरी मानहानि करने की कोशिश करते है। कुछ दिन पहले अखबार मे पढने मे आया है कि, अण्णा हजारे के आंदोलन को पुंजीपतीयों का पैसा आता है। अण्णा हजारे के आंदोलन मे विदेशी पैसा आता है।  अगर किसी ने यह साबित किया कि, हमारे आंदोलन को बाहर का पैसा आता है तो, उसी दिन से मै अपने सामाजिक कार्य से संन्यास ले लुंगा।
       सतहत्तर साल की उम्र में अविवाहित रहते हुए बेदाग जीवन बिताना इतना आसान नही है। लेकिन भगवान की कृपा से जीवन में शुद्ध आचार, शुद्ध विचार, निष्कलंक जीवन, त्याग, अपमान पीने की शक्ती मिलने के कारण जीवन में छोटा सा भी दाग नही लगने दिया। मेरी मानहानि के साथ साथ कई लोग बार-बार तुम्हारा मर्डर करेंगे, तुम्हारा खुन करेंगे, नथुराम गोडसे ने जीस प्रकार महात्मा गांधीजी की हत्या की थी, उसी प्रकार की हत्या करने की तयारी में लगे है, अब तुम्हारी हत्या करनेवाले है, एैसी धमकीयां देते है। अभी अभी कॅनडा से भी धमकी आयी है।
लेकिन मैने जीवन में तय किया है कि, जब तक जिना है तब तक समाज और देश की सेवा करनी है और जीस दिन मरना है, समाज और देश की सेवा करते करते ही मरना है। अब मृत्यू का भय नही रहा है। मृत्यू पहले ही मर चुका है।
कई लोग मेरे उपर झुठे आरोप लगा कर जनता को गुमराह करने की कोशिश करते है। इसलिए सच क्या है, यह जनता को बताने का प्रयास किया है। अगर किसी भी व्यक्ती को यह लगता है कि, अण्णा हजारे का व्यक्तिगत बँक अकाऊंट या भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन न्यास इस संस्था का बँक अकाऊंट चेक करना है तो, वह कभी भी आ कर चेक कर सकते है। इतनी पारदर्शकता हमने अपने आर्थिक व्यवहार मे रखी है। हम कॅश व्यवहार कभी करते नही। जो भी व्यवहार करते है वो चेक और ड्राफ्ट के माध्यम से ही करते है। इस कारण गलत व्यवहार कभी होता नही। कुछ लोग 200/500 रुपये देते है वह भी चेक या ड्राफ्टसे लिया जाता है।
इस कारण गलत आरोप करनेवालों की कोशिश कभी कामयाब नही हुई।

भवदीय,

कि. बा. तथा अण्णा हजारे






Thursday 12 March 2015

लाखो शेतकऱ्यांनी संघटित होऊन आंदोलन करावे..

सरकारने शेतकरी विरोधी भूमि अधिग्रहण बिल परत घ्यावे
यासाठी लाखो शेतकऱ्यांनी संघटित होऊन आंदोलन करावे..

नरेंद्र मोदी सरकारने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लागू करून देशातील शेतकऱ्यांवर घोर अन्याय केला आहे. यामुळे देशात सर्व बाजूंनी हे सरकार शेतकरी विरोधी असल्याची भावना निर्माण झाली. ठिकठिकाणी शेतकरी रस्त्यावर उतरू लागले. कदाचित यामुळेच पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांना सांगावे लागले की, जर या विधेयकामुळे सरकारकडून शेतकऱ्यांवर अन्याय होत असेल तर शेतकऱ्यांच्या हिताच्या कही सूचना आल्या तर त्यावर आम्ही जरुर विचार करू. सरकारच्या या भूमिकेचे आम्ही स्वागत करतो आणि त्या संबंधाने काही मुद्दे सरकारच्या विचारार्थ देत आहोत...
1)                              जर सरकार शेतकऱ्यांच्या हिताचा विचार करीत असेल तर स्वातंत्र्यानंतर आजपर्यंत न झालेला देशातील संपूर्ण जमिनीचा सर्वे करणे आवश्यक आहे. त्यानुसार जमिनीचे 1, 2, 3, 4, 5, 6 श्रेणीत वर्गीकरण करण्यात यावे. त्यानुसार 1 ते 4 ग्रेडची जमीन (सिंचित बागाइत) कोणत्याही परिस्थितीत औद्योगिकरणासाठी अधिग्रहित करता येणार नाही अशी तरतूद कायद्यात करणे आवश्यक आहे. परंतू सध्या प्रस्तावित असलेल्या भूमि अधिग्रहण बिलात अशी तरतूद करण्यात आलेली नाही. सध्याच्या बिलात सिंचित व बागाइत जमीनअधिग्रहित करण्याचे प्रावधान आहे. हा तर शेतकऱ्यांवर उघड उघड अन्याय आहे. म्हणून ज्या जमिनीत वाढते उत्पन्न मिळत आहे अशी जमीन अधिग्रहित करण्यात येऊ नये.

2)                              स्वातंत्र्याच्या 68 वर्षानंतरही शेतकऱ्यांना आत्महत्या कराव्या लागत आहेत. कारण शेतीवर खर्च जास्त होतो आणि पिकाद्वारे मिळणारे उत्पन्न मात्र कमी असते. म्हणून शेतीमालाला उत्पादन खर्चावर आधारित बाजारभाव निश्चित करणे आवश्यक आहे. यात कठीण असे काय आहे? देशातील कोणतेही विद्यापीठ हे काम करण्यासाठी सक्षम आहे. शेतीमालाच्या उत्पादनावर होणारा खर्च जास्त आणि त्या तुलनेत मिळणारे उत्पन्न खूपच कमी असल्याने शेतकऱ्यांना वारंवार कर्ज घ्यावे लागते. त्याची वेळेवर परतफेड होत नसल्याने व्याज वाढत जाते व तो कर्जबाजारी होतो. अशा परिस्थितीत कर्जातून मुक्त होण्याचा कोणताही पर्याय


3)                              दिसत नसल्याने निराश होऊन शेवटी शेतकरी आत्महत्येस प्रवृत्त होतो. म्हणून शेतकरी तोट्यात जाणार नाही अशा पद्धतीने शेती मालाला उत्पादन खर्चावर आधारित बाजारभाव निर्धारित करण्यात यावेत.
4)                              केंद्र सरकार आणि सर्व राज्य सरकारांनी तातडीने कृषि आयोग स्थापन करावेत व या आयोगांनी शेतकऱ्यांचे हित आणि प्रगतीसाठी शेतीतील उत्पन्न वाढविण्यासाठी कार्यरत रहावे.

5)                              नद्यांच्या किनाऱ्यावरील जमीन अत्यंत सुपिक असते. त्यातून सर्वाधिक उत्पन्न मिळत असते. या उत्पन्नाचा देशाला फायदा होत असतो. म्हणून अशी जमीन अधिग्रहित करून उद्योग क्षेत्राला देणे ठीक नाही. असे केल्यामुळे सुपिक जमिनीचे अतोनात नुकसान होऊन औद्योगिक कारखान्याचे दुषीत पाणी, नद्यांमध्ये नद्याचे प्रदुषण होते. म्हणन एकिकडे गंगा सफाईचे काम सुरू असताना दुसरीकडे नद्यांचे प्रदुषण वाढेल असे निर्णय घेणे योग्य नाही.

6)                              विकासाच्या कामासाठी लागणारी जमीन अधिग्रहित करण्याऐवजी ग्रामसभेला विश्वासात घेऊन भाडेतत्वावर घेणे अधिक उचित राहील. ज्या शेतकऱ्यांची जमिन अशा प्रकारे भाडेतत्वावर घेतली जाईल त्यांना संबंधित उद्योगात भागीदार करून घेण्यात यावे. जेणेकरून शेतकऱ्यांना जमिनीच्या मोबदल्यात भक्कम आणि कायमस्वरुपी आर्थिक आधार मिळेल. मग त्यांच्यावर आत्महत्या करण्याची वेळ येणार नाही.

7)                              सध्याच्या परिस्थितीत सामान्य माणसाला न्यायासाठी वर्षानुवर्षे प्रतीक्षा करावी लागते. असा परिस्थितीत अन्याय कारक भूमी अधिग्रहण झाले म्हणून शेतकऱ्यांना न्यायासाठी सरकारची परवानगी घेण्याची तरतूद कायद्यात करण्यात येत आहे. म्हणजेच भूमि अधिग्रहण कायद्याद्वारे सरकार शेतकऱ्यांच्या न्याय्य हक्कांवर निर्बंध आणू पाहत आहे. हे निश्चितच लोकशाही विरोधी आहे.
8)                              देशात बेरोजगारीची मोठी समस्या आहे. पण केवळ विदेशी कंपन्यांना येथे बोलावणे हो बेरोजगारीवरील पर्याय ठरू शकत नाही. त्याऐवजी गावाला केंद्रस्थानी ठेवून शेतीतील उत्पन्न वाढविण्यावर भर देणे आवश्यक आहे. त्याच प्रमाणे शेती मालावर प्रक्रिया करुन मार्केट मिळविणे. ज्यामुळे गावातील प्रत्येकाच्या हाताला गावातच काम मिळेल आणि गावातून शहरांकडे जाणारा तरुणांचा ओढा गावातच थांबेल.

9)                              आज आमच्या देशात औद्योगिक क्षेत्र वेगाने विकसित होत आहे. विदेशी कंपन्या येत आहेत. त्यासाठी पेट्रोल, डिझल, रॉकेल, कोळसा अशा प्रकारचे इंधन बेसुमार वापरले जात आहे. हे इंधन अमर्याद जाळले जात असल्यामुळे प्रदुषण वाढत आहे. तसेच तापमानही वाढत आहे. हा मोठा धोका आहे. त्याचा विपरित परिणाम मानवी जीवनावर आणि निसर्गावर होत आहे. माणसांचे आजार वाढत आहेत. हॉस्पिटलची संख्या कितीही वाढली तरी ते कमी पडत आहेत. म्हणून गांधीजी म्हणत होते, असा विकास करा की, ज्यामुळे मानवता आणि निसर्गाचे शोषण होणार नाही. कारण शोषण करून केलेला विकास हा शाश्वत विकास नसतो. अशा विकासामुळे कधी ना कधी विनाश होऊ शकतो. गुजरात ही आदरणीय नरेंद्र मोदी यांची जन्मभूमि आहे. ते गुजरातमध्येच लहानचे मोठे झाले आहेत. चहा विक्रेत्यापासून तर थेट पंतप्रधान पदापर्यंत पोहोचले आहेत. मग असा प्रश्न पडतो की, तरीही त्यांना गांधीजींचे हे तत्वज्ञान का समजले नाही?  कृषी विकासाला प्राधान्य दिल्यास गावातील तरुणांना गावातच रोजगार मिळेल आणि पर्यावरणाचेही संतुलन राखले जाईल. हे आम्ही केवळ सांगत नाहीत तर आम्ही हे प्रयोगाद्वारे सिद्ध केलेले आहे.

10)                          महात्मा गांधीजी म्हणत होते कि, स्मार्ट व्हिलेज (स्वयंपूर्ण गाव) बनवा. सरकार मात्र स्मार्ट सिटी बनवण्याचा विचार करीत आहे. स्मार्ट व्हिलेज बनवलेत तर मानवता आणि निसर्गाचे शोषण होणार नाही. प्रदुषणाला आळा बसू शकेल.

महात्मा गांधीजींच्या विचारानुसार प्रत्येक खेड्याला केंद्रस्थानी मानून ग्रामसभेला जादा अधिकार देण्याची गरज आहे. कारण ग्रामसभा ही स्वयंभू व सार्वभौम आहे. लोकसभा व विधानसभेला पाच वर्षानंतर बदलण्याचे काम ग्रामसभा करीत असते. ग्रामसभा मात्र कधीही बदलत नाही. गावातील प्रत्येक व्यक्ती त्याला 18 वर्षे पूर्ण होऊन मतदानाचा अधिकार प्राप्त झाला की ग्रामसभेचा सदस्य होतो आणि तो मरेपर्यंत सदस्य राहतो. ग्रामसभेला निवडणूक नसते. ती स्वयंभू असते. म्हणून गावातील पाणी, वन, जमीन यासारखी जी काही साधनसंपत्ती आहे ती गावच्या म्हणजेच ग्रामसभेच्या मालकीची असते. अशा वेळी सरकार जर गावची संपत्ती घेऊ इच्छित असेल तर अगोदर ग्रामसभेची मंजुरी घेतली पाहिजे. असा कायदा सरकारने तयार करावा. यामुळे खरी लोकशाही येईल. मात्र स्वातंत्र्याच्या 68 वर्षात असा कायदा करण्यात आला नाही. याउलट मोदी सरकारने भूमि अधिग्रहण विधेयक आणून ग्रामसभेचे अधिकार संपुष्टात आणले आहेत. ही बाब लोकशाहीच्या विरुद्ध आहे.
कृषिप्रधान भारत देशात शेतकऱ्यांच्या हिताचा विचार करण्याऐवजी अन्यायकारक भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लागू करून शेतकऱ्यांवर अन्याय केला आहे. तसेच भांडवलदारांच्या हिताचा विचार केला आहे. लोकांची लोकांनी लोक सहभागातून चालविलेली शाही म्हणजे लोकशाही. भूमि अधिग्रहण अध्यादेशामुळे या लोकशाहीचा गळा घोटण्याचा प्रयत्न झाला आहे.
कोणत्याही खाजगी कंपनी आणि संस्थांसाठी जमीन अधिग्रहण करायची असल्यास त्यासाठी शेतकऱ्यांची परवानगी घेणे आवश्यक आहे. शेतकऱ्यांच्या पुर्व परवानगी शिवाय जमीन अधिग्रहण करु नये.
भूमि अधिग्रहणचा सन 1894 मध्ये इंग्रजांनी केलेला कायदा मुळातच अन्यायकारक होता. म्हणून 2013 मध्ये संसदेत सर्व पक्षांच्या सहमतीने नवीन कायदा तयार करण्यात आला. भाजपा त्यावेळी विरोधी पक्षाची भूमिका बजावत होती. त्यावेळी कोणीही 2013 च्या कायद्याला विरोध केला नाही. आता नरेंद्र मोदी सरकारला अशी कोणती परिस्थिती निर्माण झाली की ज्यामुळे तातडीने अध्यादेश आणावा लागला? आता त्या अध्यादेशाचे रुपांतर विधेयकात करण्यात आले असून कायदा करण्याची घाई सुरू आहे. जनतेच्या आग्रहाखातर करण्यात आलेल्या लोकपाल व लोकायुक्त कायद्याची अंमलबजावणी करण्यापेक्षा भूमि अधिग्रहण विधेयकाची सरकारला घाई का झाली आहे?

या कायद्यात सुधारणा करण्याची गरज होती तर मग संसदेत पुन्हा चर्चा करून सर्व सहमतीने बदल करता आला असता. मात्र तसे या सरकारने केले नाही. कित्येक राज्यात अनेक वर्षांत अनेक प्रकल्प उभे राहिले आहेत व त्यासाठी लाखो हेक्टर जमीन अधिग्रहित करण्यात आली आहे. पण अधिग्रहित करण्यात आलेल्या जमिनीपैकी अनेक जमिनींवर ना प्रकल्प उभे राहिले आहेत ना ती जमीन पुन्हा शेतकऱ्यांना देण्यात आली आहे. देशभरात अशी लाखो हेक्टर जमीन पडीक पडली आहे. अशा प्रकारे अधिग्रहित केलेली आणि किमान पाच वर्षानंतरही प्रकल्प उभे राहिलेले नाहीत अशा जमिनीची चौकशी करून ती जमीन मूळ शेतकऱ्यांना पुन्हा परत करण्यात यावी. जेणे करुन शेतकरी त्या जमीनीमध्ये उत्पादन वाढवू शकेल.

कित्येक ठिकाणी असेही झाले आहे कि, शेतकऱ्यांची जमीन तर घेतली गेली पण 25 ते 35 वर्षे उलटल्यानंतरही संबंधित शेतकऱ्यांना त्याचा मोबदला मिळालेला नाही. तसेच त्यांचे पुनर्वसनही करण्यात आलेले नाही. या महत्त्वपूर्ण बाबींकडे सरकार दुर्लक्ष का करीत आहे? आजही अनेक शेतकरी असे आहेत की, त्यांची जमिन अधिग्रहित करण्यात आली, त्यांची घरे गेली, जमीनी गेल्या मात्र आजपर्यंत त्यांना मोबदला मिळाला नाही किंवा त्यांचे पुनर्वसनही झालेले नाही. अशा शेतकऱ्यांचे दुःख सरकराने समजून घेणे गरजेचे आहे. यावरून असे दिसून येते की, गेल्या 68 वर्षात आलेल्या सर्वच सरकारांची संवेदनशीलता कमी होत गेली आहे. ही बाब मानवतेच्या दृष्टिने चिंताजनक बाब आहे.

नव्याने आणलेले भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभेत तर पास झाले आहे. पण आता राज्यसभेत काय होते ते पहावे लागेल. राज्यसभेत जर ते मंजूर झाले तर मग देशातील जनतेला गांभिर्याने विचार करावा लागेल. आम्हाला विश्वास वाटतो की विरोधी पक्ष संघटीतपणे संघर्ष करुन बील पास होऊ देणार नाहीत. कारण संसदेपेक्षा जनसंसदचे स्थान अधिक उच्च आहे. जनसंसदेने देशाच्या संसदेला निवडलेले आहे. अशा वेळी जनसंसदेच्या विरोधात निर्णय होणार असतील तर स्वातंत्र्याची दुसरी लढाई समजून जनतेला अहिंसेच्या मार्गाने देशभर आंदोलन करावे लागेल.


आपला,

कि. बा. तथा अण्णा हजारे