Friday 28 September 2012

  "भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण के लिये
 गांवस्तर तक जन संघटन होना जरुरी है"
          भ्रष्टाचार संपूर्ण रुख जायेगा ऐसे कहना अतिशोक्ती होगी, लेकीन कूछ  हद तक भ्रष्टाचार को रोख सकते है, इसमे दो राह होनेका कारण नही है। मै बीस (20) सालोंसे भ्रष्टाचार के विरोध में लड़ाई लढ़ रहा हूँ। जबतक व्यवस्था परिवर्तन नहीं होगा, तबतक भ्रष्टाचार को रोकथाम नहीं लगेगा। इसलिए  देशमे व्यवस्था परिवर्तन करनेका प्रयास करना है। महाराष्ट्रमे जनशक्ति का दबाव निर्माण करने से सरकारने सुचना का अधिकार, ग्रामसभा को जादा अधिकार, दफ्तर दिरंगाई जैसे सात  महत्वपूर्ण कानून बनवाये। ऐसे कानून बननेसे व्यवस्थामे परिवर्तन आ गया है और भ्रष्टाचार को कुछ हद तक रोकथाम लग गई।
          व्यवस्था परिवर्तन करके देश का भ्रष्टाचार कुछ हदतक कम हो जाए इसलिए सरकारने जनलोकपाल कानून बनाना चाहिए इसलिए दिल्लीमे कही बार आयएसी के माध्यमसे उपोषण आन्दोलन करना पड़ा। आज़ादीके 65 सालके बाद पहली बार इस आंदोलनसे देश जाग गया। देशका युवक जाग  गया। फिरभी रामलीला मैदान और जंतर मंतर के आन्दोलनसे जन लोकपाल कानून नहीं बना। क्योंकी  सरकारकी नियत साफ नहीं थी।  भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण की सरकारकी मंशा नहीं है। लेकिन देशका भ्रष्टाचार रोखनेके लिए जनता में जो जागृती आयी, करोडो रूपया खर्च करके भी जो जागृती नहीं आनी थी। वह जागृती  16 अगस्त 2011 के आंदोलन से पुरे देशमे आयी है।
          अब ऐसा विश्वास हो रहा है  की 2014 से पहले सरकार को कानून बनवाना ही पड़ेगा। कारण 16 अगस्त 2011 के वक्त कोई भी चुनाव नहीं था। अब 2014 में लोकसभा का चुनाव होनेवाला है। इस कारन सरकारको कानून बनवानाही पड़ेगा। लेकिन दुर्दैवसे कानून बननेसे पहलेही हमारे आंदोलन के दो हिस्से बन गए। एक चुनाव के रास्तेसे जानेवाला हिस्सा और दूसरा आंदोलन के रास्तेसे जानेवाला हिस्सा। सरकारके कही लोग चाहते थे की टिम अन्नाको कैसे तोड़े? सरकारने लगातार दो साल प्रयास करनेके बावजूद भी टिम नहीं टूटी थी।
          लेकिन इस वक्त सरकार की कोशिश ऩा रहते हुए भी सिर्फ राजनीती का रास्ता अपनानेसे टिम टूट गयी। यह इस देश की जनता के लिए दुर्भाग्य की बात है। शायद टिम  टूटने के कारन सरकारके कही लोगोने ख़ुशी मनाई होगी। राजनीती के रास्तेसे जानेवाला ग्रुप बार बार ये कहते रहा था की अन्ना कहे तो हम पक्ष और पार्टी नहीं बनायेंगे। लेकिन पार्टी नहीं बनानेके मेरे निर्णय के बावजूद पार्टी बनानेका फैसला लिया गया। कभी कभी मेरा नाम लेकर यह भी कहा गया की अन्ना के कहनेसे ही हमने  पार्टी बनाने का निर्णय लिया है, यह बात ठीक नहीं है।
          जनताको विकल्प देनाही पड़ेगा, लेकिन चुनावके लिए पैसा कहाँ से आएगा? पार्टी में आनेवाले लोग चरित्र्यशील होंगे इसलिए उनके चयन का तरीका क्या होगा? आज स्वार्थ के कारन दस लोग इकठ्ठा नहीं रह सकते, पुरे देशके कार्यकर्ताओंको इकठ्ठा कैसे रखेंगे? चुनावके बाद बुद्धिका पालट होता है, यह खुर्ची का गुणधर्म बन गया है। ऐसे स्थितिमे पर्याय क्या होगा ऐसे प्रश्नोंके जबाब मिलनेसे विकल्पकी बात सोच सकते है। लेकिन जबाब ही नहीं मिला।
          4 अगस्त 2012 को जंतर मंतर पर मैंने स्पष्ट किया था की मै  कोई पक्ष पार्टी नहीं बनाऊंगा। मै बीस साल  से आंदोलन के  रास्ते पर चलते आया हूँ। और आगे भी आंदोलन के रास्तेपरही चलते रहूँगा। हमारे रास्ते  अलग अलग हो गए है, लेकिन मंजिल एकही है। और वो है भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण। एक बात अच्छी हुई की देशके जम्मू-कश्मीर से लेके कन्याकुमारी तक हजारो कार्यकर्ता इस आन्दोलन से जुड़ने के लिए आगे आये है। विशेष तौरपर कही राज्योंसे निवृत्त डायरेक्टर जनरल ओफ पुलिस के सात  सदस्य आंदोलन से जुड़ रहे है। आयएएस के नौ सदस्य, फौज के ब्रिगेडीअर, कर्नल, जनरल इस पदोंसे पचास सदस्य और अलग अलग स्वयंसेवी संस्थांके अच्छे लोग आगे आये है। और   आंदोलन के साथ जुड़ रहे है। भ्रष्टाचार मुक्त भारत के आन्दोलन के लिए यह एक आशादायी  चित्र है।  आज हमारे पास कोई पैसा नहीं है। कारन जीवनमे  कही  बैंक बलेंस नहीं रखा। दिल्लीमें जनता के समन्वय के लिए आंदोलन का दफ्तर होना जरुरी है। लेकिन पैसे के कारन दफ्तर नहीं बनवा पाए। जंतर मंतर और रामलीला मैदान में जनताने जो आर्थिक मदद की थी उनमेसे मैंने पाँच रुपया भी अपने लिए नहीं रखा। सभी पैसा इंडिया अगेंस्ट करप्शन के पास रखा। कारन वह आन्दोलन के लियेही खर्च हो। लेकिन मुजे विश्वास हो रहा है की जनताने 5 रुपया, 10 रुपया दिया तो भी पैसोकी कमी नहीं पड़ेगी। 20 साल से आंदोलन  में मैंने यही रास्ता अपनाया है। कोई उद्योगपती या विदेशका पैसा नहीं लिया गया। और आगेभी मै नहीं लेना चाहता। जनता ने दिया हुआ 5 रुपया, 10 रुपया मुजे महत्वपूर्ण लगता है। जल्द ही आंदोलन  का दफ्तर दिल्लीमे शुरू करनेका मनोदय है। ताकि आंदोलन  से देशके विभिन्न भागोंसे जुडनेवाले कार्यकर्ताओंका समन्वय के लिए आसान  रहेगा। आगे आनेवाले कुछ दिनोमे कार्यकर्ताओंकी मद्तसे देश के हर राज्योमे और राज्योंके हर गाँव तक यह आंदोलन पहोंचाने का प्रयास करना है। टेक्नोलोजी बहुत विकसित हुई है। इस कारण ये असंभव नहीं है। जन संघटन के माध्यमसे सामाजिक दबाव बढ़ गया तो ना कहनेवाली सरकारको हां कहना पड़ेगा। अथवा सत्तासे जाना पड़ेगा। गाँव से दिल्ली तक जनशक्ति का संघटन बन गया तो आज संसद में दागी लोग जाने के कारन जन लोकपाल, राइट टू  रिजेक्ट, ग्रामसभा को जादा अधिकार, दफ्तर दिरंगाई, जनता की सनद ऐसे कानून नहीं बन रहे है, उस संसद में जनताने अपना चरित्र्यशील उम्मीदवार चुनकर भेजना है। उम्मीदवार सही है या गलत है इस बात को आंदोलन के लोग देखेंगे।
          देश के 6 लाख गाँव तक संघटन बन गया तो ये असंभव नहीं है। संसद लोकशाही का पवित्र मंदिर है। ऐसे पवित्र मंदिरमे जनताने  पवित्र लोगोंको भेजना है। ये लोकशिक्षा और लोक जागृती  काम आन्दोलन करेगा, बाकी  सबकुछ जनताने  करना है। जनतंत्र में जनता का तंत्र होना चाहिए। देश में जन संघटन बन गया तो भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए कही कानून बनवाने के साथ साथ किसानोंके प्रश्न है, मजदुरोंके प्रश्न है, शिक्षा क्षेत्र में जो अनागोंदी हो रही है उसमे सुधार  लाना है। ऐसे परिवर्तन का काम  आंदोलन  के माध्यमसे हो सकते है। परिवर्तन की प्रक्रिया जल्दबाजी में नहीं होगी। आंदोलन के माध्यमसे प्रदीर्घ निरंतर चलनेवाली ये प्रक्रिया है। संविधान और कानून का आधार लेकर हमें बहुत लम्बी लड़ाई लड़नी होगी। लेकिन जन लोकपाल कानून 2014 तक बन सकता है, ऐसा हमें विश्वास हो गया है। अक्तूबर-नवम्बर में देशकी यात्रा शुरू करनी है। बिहार में जेपीने जहासे आंदोलन शुरू किया था वही  गाँधी मैदानसे इस यात्राका प्रारंभ करने का मनोदय है। लोकशिक्षा और लोक जगृतिके लिए देश के हर राज्योमे यह यात्रा चलेगी। आंदोलन के दो हिस्से बन गए यह देश का दुर्भाग्य है। अभी भी कही  लोग इस आंदोलन  को तोड़फोड़ करनेकी कोशिश कर रहे है।
           मुझे  कही पक्ष, पार्टी, सांप्रदायिक संघटन के साथ जोडनेका प्रयास करते है। मेरे जीवन में मै किसी पक्ष-पार्टी या संघटन के साथ जुड़ने का प्रयास किया नही। और शरीर में प्राण है तब तक किसी पक्ष, पार्टी या सांप्रदायिक संघटन के साथ नहीं जाऊंगा। मैंने व्रत लिया है की जीवनमे सिर्फ देश और जनता की सेवा करनी है। और वह सेवा निष्काम भावसे करनी है। ऐसी सेवाही मेरी इश्वर की पूजा है। जनता से मेरी नम्र प्रार्थना है की राजनीती के कारन आंदोलन के दो हिस्से बन गए। अब जो आंदोलन बचा है उस आंदोलन को तोड़ने  के लिए उलट पुलट बाते आती है। तो जनताने ऐसी बातोंपर विश्वास नहीं करना है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते जायेगा, वैसेही कही पक्ष-पार्टी वोट मिलने के लिए मेरे नाम का दुरूपयोग करने की कोशिश करेंगे। मुझे किसी पक्ष-पार्टी के साथ जोड़ेंगे। आंदोलन  का नाम लेकर दुरूपयोग होगा। लेकिन उसपर किसीने विश्वास नहीं करना है। आंदोलन सिर्फ आंदोलन  ही रहेगा। क्यों की आंदोलन  एक पवित्र व्यवस्था है। पावित्र्य संभालते हुए आंदोलन चलाना है। देश की जनता गाँव से लेकर दिल्ली तक जितनी संघटित होगी उतनी ही भ्रष्टाचार को रोकनेमे सफलता मिलेगी।

                                                                                                          आपका 
कि. बा. तथा अन्ना हजारे.





                                                                               



राळेगणसिद्धी
दि. 28 सप्टेंबर 2012
(आंदोलन से जुडनेवाले कार्यकर्ताओने अपना बायोडाटा joinbvja@gmail.com इसपर भेजे)

Sunday 16 September 2012

" जागो मतदार राजा जागो" परिवर्तन का समय आ गया है।


 देश गंभीर संक्रमण काल से गुजर रहा है। कभी सोने की चिड़िया कहने वाला भारत आज हिमालय जैसे कर्ज के नीचे दब गया है। इस स्थिति की जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई पक्ष पार्टी तैयार नहीं है। कई पक्ष कह रहे हैं कि इस स्थिति के लिए सत्ताधारी पक्ष जिम्मेदार है। सत्ताधारी कह रहे हैं विपक्ष जिम्मेदार है। लेकिन इन सब को यह पता नहीं है  कि मैं और मेरी पार्टी जब दूसरे पक्ष की तरफ एक उंगली उठाकर वह जिम्मेदार है यह कहते हैं तब तीन उंगलियां मुझे पूछ रही हैं  कि अगर वह दोषी है तो तुम क्या हो?

आज देश की जो हालत बनी है उसके लिए संसद में बैठे हुए ज्यादातर पक्ष और पार्टियां जिम्मेदार हैं। इन बातों को वो भूल गए हैं, यूं कहना गलत नहीं होगा ऐसा लगता है।  सत्ताधारी जब कमजोर होता है तब विपक्ष की जिम्मेदारी बड़ी होती है। आज सत्ताधारी भी कमजोर हुआ है और  विपक्ष भी। आज भ्रष्टाचार इस देश की महत्वपूर्ण समस्या बन गई है। देश के सामान्य लोगों को जीवन जीना मुश्किल हो गया है। भ्रष्टाचार के कारण महंगाई बढ़ती जा रही है। विकास कार्य पर खर्च होने वाले एक रूपये में से 10 पैसा भी विकास कार्य पर नहीं लग रहा है। सरकारी तिजोरी में जमा होने वाले पैसे में से 70 %  से 75 % पैसा व्यवस्थापन, गाड़ी, बंगला, एयर कंडीशनिंग, तनखा, और कई सुख-सुविधाओं पर खर्च हो रहा है। बचे 25% पैसों में से 15 % का भ्रष्टाचार हो रहा है। सिर्फ 10% में देश का कैसा विकास होगा। ये तो सत्ताधारियों को भी पता है और विपक्ष को भी पता है। ऐसी स्थिति में देश के उज्जवल भविष्य के लिए देश में बढ़ते हुए भ्रष्टाचार को रोकना यही एक मात्र पर्याय (विकल्प) है। लेकिन सत्ताधारी हो अथवा विरोधी हों भ्रष्टाचार रोकने के मुद्दे पर गंभीर नहीं हैं।

जन लोकपाल बनने से देश का 60% से 65 % भ्रष्टाचार रुक सकता है। यह इन सबको पता है। लेकिन संसद में जन लोकपाल कानून नहीं बनाना है इस मुद्दे पर संसद में अधिकांश सांसदों का मानो एकमत हो गया था। साथ ही साथ अपनी तनखा बढ़ाना और कई अन्य सुविधाएँ बढाने के लिए अधिकांश सांसदों का एकमत हो गया था। जन लोकपाल के लिए आन्दोलन करने वाले लोगों को  संसद में बैठे हुए कई सांसद कहते थे कि चुनाव लड़ कर संसद में आओ और कानून बनाओ। कानून संसद में बनते हैं, सड़क पर नहीं बनते। और आज कोयला घोटाला, एफ डी आई के प्रश्न पर अब कई पक्ष और पार्टी - सबको यह पता चला कि दिल्ली की संसद से जन संसद बड़ी है। इसलिए अब ये लोग संसद से निकल कर जन संसद के सामने आ कर कह रहे हैं कि हम दोषी नहीं, सामने वाले दोषी हैं।  संसद से उतर कर रस्ते पर आ कर संघर्ष करना है।  इससे इनका असली मुखड़ा  दिखाई देता है।

संविधान के मुताबिक सामाजिक और आर्थिक विषमता का फासला कम करना होगा। संसद में बैठे हुए सांसदों की यह जिम्मेदारी होती है। लेकिन अपनी इस जिम्मेदारी को बहुत से सांसद भूल गए हैं। इस कारण देश और देश की जनता की यह हालत बन गई है। विषमता बढ़ती ही जा रही है।  अगर देश में जन लोकपाल, राईट टू रिकाल, दफ्तर दिरंगाई जैसे कानून बनाते तो भ्रष्टाचार को किसी हद तक रोकने का काम होता। विकास कार्य को गति मिलती और देश की अर्थनीति बदलने का काम होता। एफ डी आई से सही मायने में अर्थनीति नहीं बदलेगी। जब तक भ्रष्टाचार को रोकने के  सख्त कानून नहीं बनते तब तक देश की अर्थनीति नहीं बदलेगी। साथ ही साथ महात्मा गांधीजी का कहा भी याद करना होगा कि देश की अर्थनीति बदलना है तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था बदलनी होगी।

एफ डी आई आ गया तो देश की अर्थनीति बदलेगी ऐसे सत्ताधारी और कई पक्ष कह रहे हैं। विरोधी कह रहे हैं कि देश के लिए खतरा है। सभी 2014 का चुनाव को सामने रख कर एक दूसरों के मत काटने की कोशिश कर रहे हैं। मेरे जैसे पक्ष और पार्टी से बाहर रहने वाले लोगों को लगता है कि एफ डी आई  के बहाने विदेश से आने वाला पैसा हमारे ही देश का (काला) पैसा नहीं होगा ऐसे कैसे कह सकते हैं। हमारे देश का पैसा घूम फिर कर रूप बदल कर हमारे ही देश में फिर से आता होगा ऐसे अगर जनता में  संदेह हो तो क्या गलत है?

ऐसे लगता है कि कोई पक्ष और पार्टी जो सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता इसी संकुचित विचार से एक दूसरों पर आरोप प्रत्यारोप कर रहे हैं। जिन के सामने देश और देश की जनता का उज्जवल भविष्य नहीं है ऐसे लोग इस देश को नहीं संवार सकते हैं। कई प्रादेशिक पक्ष हैं उनके  सिर्फ 8 से ले कर 20-25  सांसद संसद में हैं। सरकार पर दबाव निर्माण कर के पैकेज की मांग कर रहे हैं। ऐसे लोग समाज और देश को कैसे सुधार सकते हैं। कई पक्ष और पार्टियों ने संघटित हो कर एक कानून बनवाया है कि पार्टी को जो डोनेशन मिलाता है उस में से 20 हजार रुपये तक के डोनेशन का हिसाब जनता को देना जरूरी नहीं, सिर्फ उसके उपर का ही हिसाब देना है। आज कई उद्योगपति करोडों रुपयों का डोनेशन पक्ष और पार्टी को देते हैं। ऐसे डोनेशन देनेवालों के नाम भी समाज के सामने आये हैं। ऐसे  करोडों रुपयों के  डोनेशन के कई पक्ष और पार्टियां 20 हजार रुपयों के टुकडे कर के बोगस नाम से जमा कराते हैं और काला धन सफ़ेद करने की यही से कई पक्ष और पार्टी की शुरुआत होती है। काला पैसा इस रास्ते से सफ़ेद करते हैं। राजनीति में कई लोगों का भ्रष्टाचार यहीं से शुरू होता है। ऐसे लोग देश का भ्रष्टाचार कैसे मिटा सकते हैं।

अगर पक्ष और पार्टियां ईमानदार हैं तो एक रूपये से ले कर जो भी डोनेशन मिलता है उनका हिसाब जनता को देने में क्या गलत है?  क्यों नहीं ऐसा कानून बनता? हम अपनी संस्था का पूरा हिसाब नेट पर रखते हैं। संस्था का जमा और खर्च का हिसाब चेक या ड्राफ्ट से ही होता है। पक्ष और पार्टियों में  पारदर्शिता ना रखने का कारण क्या है?

सभी पक्ष और  पार्टियां यह मानती हैं कि युवाशक्ति एक राष्ट्रशक्ति है। बहुत से उम्मीदवार चुनाव  प्रचार में ऐसे युवकों को शराब पिला पिला कर शराब पीने की आदत डालते हैं। क्या देश के लिए यह खतरा नहीं है?  युवाशक्ति इस देश का आधार है, लेकिन उन्हीं को व्यसनाधीन बनाना कहाँ तक ठीक है?

इन सब बातों को देखते हुए ऐसे लगता है कि अब देश को राजनीति से उज्वल भविष्य नहीं दिखाई दे रहा है। अब देश जाग गया है। जन लोकपाल के लिए देश की जनता ने रास्ते पर उतर कर आज तक करोडों लोगों ने आन्दोलन किया। अब देशवासियों को, युवकों को आन्दोलन की दिशा बदलनी होगी। भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए आज तक सरकार के विरोध में आन्दोलन चला था, अब सरकार के विरोध में आन्दोलन ना चलाते हुए संसद में जो सांसद बैठे हैं उनको बदलने का जनआन्दोलन चलाना होगा। जिन लोगों ने जन लोकपाल को विरोध किया था ऐसे लोगों को 2014 के चुनाव में अपना मत नहीं देना है। जनता उनको अपना मत  नहीं दे इसलिए जनता को जगाना है।  जनता ने ही अपना उम्मीदवार चुनना है। उनकी जानकारी आन्दोलन को देनी है फिर आन्दोलन की तरफ से उनकी जांच होगी, उनका चारित्र्य, सेवाभाव, राष्ट्रप्रेम इन सब बातों को देख कर चयन होगा। ऐसे उम्मीदवारों को ही मतदान करना है। अगर चुन कर आने के बाद जनता का विश्वास खो दिया तो उनको जनता कैसे रिकाल कर सकत़ी है, इसका निर्णय संविधान, कानून सब देख कर लिया जायेगा। मैं ना चुनाव लडूंगा, ना पक्ष या पार्टी निकालूँगा, लेकिन जनता को विकल्प देने का प्रयास करूँगा।

देश के हर राज्य से हर दिन जो मेरे पास रालेगनसिद्धि में बड़े पैमाने पर जनता आ रही है, कह रही है कि देश वासियों को विकल्प दो, उस पर से मुझे विश्वास होने लगा है कि आजादी के 65 साल के बाद अब परिवर्तन का समय आ चुका है। जरूरत है तो सिर्फ लोकशिक्षा और लोकजागृति की। उसके लिए आन्दोलन में जुड़ कर गाँव गाँव में जा कर युवकों ने जनता को जगाना है।

हमें कई सांसद कह रहे थे कि चुनाव लड़ कर संसद में आओ अब उनका सपना भी तो जनता ने पूरा करना है। देश के चारित्र्यशील उम्मीदवारों को जनता ने संसद में भेजना है और दिखाना है कि जन लोकपाल, राईट टू रिजेक्ट, जनता की सनद, ग्रामसभा जैसे कानून कैसे बनाते हैं और भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण कैसे हो सकता है।




( कि. बा. तथा अन्ना हजारे )

आन्दोलन से जुड़ने के लिए नीचे दिए पते पर संपर्क करें।

भ्रष्टाचार विरोधी जन आन्दोलन,
रालेगनसिद्धि, तहसील: पारनेर, जिल्हा: अहमदनगर
महाराष्ट्र - पिन 414302
फोन नं 02488-240401, 240010
email:  joinbvja@gmail.com