Monday 6 July 2015

'वन रँक वन पेन्शन' के विषय पर प्रधानमंत्री जी को चिट्ठी..

प्रति,
मा. नरेंद्र मोदीजी,
प्रधानमंत्री, भारत सरकार,
साउथ ब्लॉक, राईसीना हिल, नई दिल्ली.

विषय- शहीदों की विधवा एवम् सैनिकों के लिए ‘वन रँक वन पेन्शन’ योजना कार्यान्वित करने हेतु..

महोदय,
चुनाव के दौरान प्रचार करते हुए आपने देश के सभी जवानों और शहीद जवानों की विधवा, माता, बहनों को और जनता को सभा में आश्वासन दिया था कि, चुनाव में चुनकर आने के बाद हम जल्दी से जल्दी वन रँक वन पेन्शन योजना लागू करेंगे। आप की पार्टी ने भी चुनाव अजेंडा में वन रँक वन पेन्शन का जिक्र किया था। आप की सरकार को सत्ता में आ कर एक साल से ज्यादा समय हो गया है लेकिन वन रँक वन पेन्शन की कार्यवाही नहीं हुई है।

 26.02.2014 को भारत सरकार रक्षा मंत्रालय के पूर्व सैनिक कल्याण विभाग की तरफ से रक्षा मंत्रीजी की अध्यक्षता में साउथ ब्लॉक, रुम नं. 103, नई दिल्ली में वन रँक वन पेन्शन के बारे में मीटींग बुलाई गई थी। इस मीटींग में रक्षा सचिव, तीनों सैन्य विभाग के उपमुख्य, सैनिक विभाग के प्रमुख अधिकारी, संबंधीत मंत्रालय के संयुक्त सचिव उपस्थित थे। इस मीटींग में वन रँक वन पेन्शन संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लिए गये थे। रक्षा मंत्रीजी की तरफ से निग्रहपूर्वक वन रँक वन पेन्शन का उच्चार किया था और कहा था कि, इस योजना के लिए आवश्यक निधि समय पर उपलब्ध कराई जायेगी। वित्त मंत्रालय से 500 करोड निधि उपलब्ध कराई जायेगी और ज्यादा निधि की जरुरत पडी तो ज्यादा निधि उपलब्ध कराई जायेगी। लेकिन अभी तक उस पर अमल नहीं हुआ है। वन रँक वन पेन्शन के मुद्दे को लेकर कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 16/02/2015 को सरकार से कहा था कि, तीन माह के अंदर वन रँक वन पेन्शन योजना को लागू करने के बारे में निर्णय लेना है। अब ज्यादा समय नहीं दिया जायेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को तीन माह की अवधि दी थी। तीन माह बीतने के बाद भी सरकार ने निर्णय नहीं लिया।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सरकार पालन नहीं करती है। सरकार के लिए यह बात ठीक नहीं है। वन रँक वन पेन्शन योजना लागू ना करने के कारण आज कई निवृत्त सैनिकों को बहुत कम पेन्शन मिलती है। उस कारण देश की सेवा करने वाला जवान समाज में सम्मान के साथ जीवन नहीं व्यतीत कर पाता। देश के लिए जो जवान शहीद हुए हैं उनकी विधवा पत्नी, उन के एक या दो बच्चे हैं। ऐसी विधवा पत्नी को आज चार हजार, पाँच हजार पेन्शन मिलती है। इतनी कम पेन्शन में इस महंगाई मैं कैसे गुजारा कर सकती है? अपने बच्चों को कैसे पढा सकती है? सरकार इस बारे में गम्भीरता पूर्वक सोचें।

 देश के जवान 47 डिग्री तापमान वाला रेगिस्तान, हिमाचल जैसी पहाडी, जंगल में रहकर, बर्फ में रहकर जहाँ न्यूनतम तापमान रात दिन देश की सेवा करते हैं। लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद कम पेन्शन के कारण आज वो सम्मान से नहीं जी पाते है। मैं खुद एक जवान होते हुए सात साल बर्फ में रहा था। बर्फ में रहते हुए कितनी कठिनाई सहन करनी पडती इस का अनुभव मैंने किया है। वह अनुभव एअरकंडीशन में बैठनेवालों को नहीं आएगा। सरकार में उस कठिनाई के बारे में संवेदनशीलता ना होने के कारण आज उन जवानों को और उनकी विधवा पत्नी, माता, बहनों को कम पेन्शन के कारण कई समस्याएँ झेलते हुए जीवन बिताना पड रहा है।

 संसद में गए हुए आप के और अन्य पार्टी के सांसदों को रेल्वे, बिजली, पानी, आवास के मकान, हवाई जहाज ऐसी कई सुविधाएँ प्राप्त होते हुए भी उनको अभी जो पचास हजार रुपये तनखा मिलती है, वह कहते हैं, ‘पचास हजार तनखा कम पडती है। एक लाख रुपया करनी चाहिए।‘ एक तरफ जवान और शहीद जवानों की विधवायें, इन्हें सिर्फ चार से पांच हजार रुपये या पांच से सात हजार रुपये पेन्शन मिलती है। दूसरी तरफ पचास हजार रुपये तनखा लेने वालों को तनखा कम पडती है। एक लाख रुपये तनखा की मांग करनेवाले देश के सेवक हैं। क्या यह सामाजिक विषमता बढानेवाली बात नहीं है? संविधान कह रहा है देश में विषमता नहीं बढनी चाहिए। भूमि अधिग्रहण बिल अध्यादेश राज्यसभा में और देश के कई हिस्सों में किसान विरोध करते हुए भी तीन बार लोकसभा में पारित होता है लेकिन वन रँक वन पेन्शन का निर्णय नहीं होता यह दुर्भाग्य की बात है।

एक लाख रुपया तनखा बढाना देश के लिए ठीक नहीं है। ऐसा सुझाव आपने संसद में लाया तो संसद में पारित हो सकता है। आपका बहुमत है लेकिन यह इच्छा शक्ति का अभाव है। आपने लोकशाही के पवित्र मंदिर मे प्रथम प्रवेश करते समय संसद के दरवाजे पर माथा टेका था तब हम देशवासियों को लगता था कि, अब इस मंदिर की पवित्रता बढेगी। लेकिन आप का बहुमत होते हुए जब सभी मिलकर संसद में कहते हैं एक लाख तनखा होनी है तब लगता है कि, क्या यही पवित्र मंदिर के पवित्र विचार हैं? जिस लोकपाल और लोकायुक्त कानून बनाने के लिए देश की जनता काँग्रेस सरकार के विरोध में रास्ते पर उतर आई थी और जनशक्ति के दबाव के कारण सरकार ने कानून बनाया था। उस कानून पर राष्ट्रपतिजी ने हस्ताक्षर किये थे। मैंने एक साल में लोकपाल, लोकायुक्त का अमल करने के लिए और भूमि अधिग्रहण बिल के बारे में कई बार आप को पत्र दिए हैं कि, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त कानून लागू करो लेकिन आप की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। ना ही लोकपाल, लोकायुक्त नियुक्त हुआ है।

काँग्रेस सरकार में लोकपाल, लोकायुक्त के लिए कई बार सरकार को पत्र दे कर कानून बनाने का प्रयास किया था। लेकिन उस सरकार नें कानून ना बनवाने के कारण मजबूर होकर लोकपाल, लोकायुक्त बील के लिए दिल्ली और देश में जनता को आंदोलन करना पडा था और देश की जनता करोडों की संख्या में आंदोलन में शामिल हुई थी। मजबूर हो कर फिर एक बार देश के जवान और किसानों की भलाई के लिए वन रँक वन पेन्शन और भूमि अधिग्रहण बिल इन दो मुद्दों को लेकर दिल्ली और देश में आंदोलन करने के लिए सोचा है।

मुझे विश्वास होता है, फिर से जनता इस आंदोलन में उतरेगी। मैंने बार-बार कहा है कि, हमारा आंदोलन कोई पक्ष, पार्टी व्यक्ति के विरोध में नहीं है। सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण रख कर समाज और देश की भलाई के लिए तीस साल से आंदोलन करते आया हूँ। इस बार भी उसी प्रकार का निःस्वार्थ वृत्ति से और अहिंसा के मार्ग से आंदोलन होगा। आंदोलन में कोई पक्ष पार्टी के लोग नहीं होंगे। लेकिन आंदोलन के समय पब्लिक में कोई आते हैं तो हम उनको रोक नहीं सकते। मात्र आंदोलन के मंच पर पक्ष और पार्टी के लोग नहीं होंगे। एक तरफ हमारे देश के एक प्रधानमंत्रीजी ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देते हैं और दूसरी तरफ आज देश के जवान और किसान की उपेक्षा होती है। यह बात ठीक नहीं है।

मै फिर से बिनती करता हूँ कि, लोकतंत्र में जो-जो जनता का हक बनता है। वह उनको मिलना जरुरी है। वह हक देना सरकार की जिम्मेदारी है। अपने हक के लिए जनता को रास्ते पर उतरना पडे और आंदोलन करना पडे यह बात ठीक नहीं है। उनका जो हक बनता है वह हक उनको मिले यह सरकार का कर्तव्य है। उस कर्तव्य को सरकारने निभाना चाहिए। अगले पत्र में दिल्ली और देश मे होनेवाले आंदोलन की तारीख निश्चित कर के भेज रहा हूँ। धन्यवाद।

 भवदीय

 कि. बा. तथा अण्णा हजारे

1 comment: