Sunday, 7 October 2012

पार्टियों द्वारा जनता से वसूला चंदा जप्त करें,
चुनाव का संपूर्ण खर्च सरकार वहन करे
इस हेतु एक नया कानून बनाया जाए...
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शक्त कानून बनाने और उनके कारगर कार्यान्वयन से बढते भ्रष्टाचार पर काबू पाने और आम आदमी को राहत दिलवाने के लिए पिछले बीस वर्षों से आंदोलन के माध्यम से लगातार कोशिश किए जा रहा हूं।

सूचना का अधिकार जनता का मौलिक अधिकार है। लगातार दस वर्ष तक धरना, मोर्चा, अनशन आदि से जनशक्ती का दबाव बन पाया। फलस्वरूप महाराष्ट्र में सन 2002 तथा केंद्र में सन 2005 में सूचना का अधिकार कानून बन गया। इस उपलब्धी के नतीजे अब दृष्यमान हो रहे है।

टीम अण्णा द्वारा बनाये गए मसौदे के अनुसार यदि जनलोकपाल कानून बन जाए तो भ्रष्टाचार को रोकना संभव होगा। इस कानून के बनाने के लिए पिछले दो वर्षों में बारम्बार अनशन हुए, करोडों की तादाद में जनता सडकपर उतर आई, पर... ? सरकार की तो नीयत ही नही है कि देश भ्रष्टाचार मुक्त बने। कैसे बनेगा जनलोकपाल कानून ?

विधानसभा और लोकसभा विधी विधान बनाने के लिए ही बनी है। हर सांसद और विधायक का कर्तव्य बनता है कि समाज व राष्ट्र के हित में अच्छे कानून बनायें। जनता ने उन्हे इसलिए तो चुना हैं और अपने सेवक के रूप में संसद भेजा है। किन्तु धन व सत्ता के मद में चूर यह सरकार अपना दायित्व ही भूल चुकी हैं। और इसी कारण भ्रष्ट व्यक्तियोंके सहारे, उन्ही को साथ ले कर सरकार टिक पाई हैं। न उन्हे अहसास हैं, न फिक्र कि अपने कारण देश व समाज को अधोगति की खाई में धकेला जा रहा हैं।

ऐसी सत्ता किस काम की... कि जिस सत्ता से न तो समाज का, न ही राज्य या राष्ट्र का भला हो पाए ? अब जनता ही को सोचना होगा। जनलोकपाल की मॉंग में करोडो की तादाद में इस देश की जनता सडक पर उतर आई, तेरह दिन अनशन हुआ, फिर भी सरकार मुकर गई। अगले चुनाओमें ऐसे सांसदों को अपना मत नही दे कर उन्हे संसद में प्रवेश करने से जनता को रोकना होगा। यदि वे फिर से सांसद बन जाएंगे तो भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल, राईट टू रिजेक्ट, ग्रामसभा, जनता की सनद जैसे कानून कभी नही बन पाएंगे। वे नही चाहते कि अपना भारत देश कभी भ्रष्टाचार मुक्त बने।

दुर्भाग्य की बात हैं कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सशक्त जनलोकपाल कानून बनाने के बजाय सरकार जनता को अनशन करने को मजबूर करें। उस से भी बढ कर दुर्भाग्य हैं, सरकार का आंदोलन कारियों पर  किचड उछालना। मुझे तिहाड जेल में भेजा गया। किस अपराध में ? क्या इसी को हम प्रजातन्त्र कहेंगे ? फिर हमारी सरकार और अँग्रेजों की हकूमत में फर्क ही क्या रहा ? क्या ऐसी तानाशाही प्रवृत्ति के लोगों को हम फिर से सांसद बनाएंगे ? जनता ही को सोचना हैं। क्यों की ये भ्रष्ट तानाशाह. ये गुण्डे संसद में खुद चलके नही गए, हमीं ने तो उन्हे चुन कर भेजा हैं - अपना सेवक बनाकर, देश के उज्वल भविष्य बनाने के लिए!

लोकशाही के लिए सबसे बडा खतरा अगर है तो वह हैं लालच के वशीभूत मत देने की प्रवृत्ति। जब तक मतदाता प्रलोभन की लालच में मत देते रहेंगे तब तक इस देश में से भ्रष्टाचार का हटना असम्भव है। भ्रष्टाचार को हटाने शुरुआत खुद अपने से करनी होगी। न मैं खुद भ्रष्टाचार करुंगा, न ही किसी और को करने दुंगा। ऐसा निर्धार - ऐसी प्रतिज्ञा से यदि हर कोई डट कर प्रयास करे तभी कुछ आशा बन पाएगी। लालच के वशीभूत हो कर प्रलोभन स्वीकारना और बदले में भ्रष्टाचारी गुण्डे, लुटेरों को मत देना तो खुद ही रिश्वत ले कर भ्रष्टाचार करना है। आगे चल कर उन्हे और भ्रष्टाचार करने के मौका मुहैय्या करवाना हैं। यही हमारी भेडचाल रही तो कैसे मिटेगा इस देश का भ्रष्टाचार ?

जनतंत्र का मूलाधार - जागृत मतदाता
इस देश में बदलाव लाने के लिए जरुरी हैं कि कोई भी मतदाता अपना मत अपराधी-भ्रष्टाचारी प्रत्याशी को कतई न दे, केवल चरित्र्यवान उम्मीदवार को ही अपना मत दें। कोई भी इन्सान जन्म से बुरा नही होता हैं। कुछ परिस्थितीयॉं उसे वैसा बनाती हैं। आज की राजनीति के ये मोहरे जन्म से ही बुरे नही पैदा हुए। चुनाव तंत्र ही कुछ ऐसा बनाया गया हैं कि इन्सान को वह भ्रष्ट बना देता हैं। सभी पार्टियों ने आपसी मिलीभगत से एक कानून बनाया हैं कि जनता द्वारा दी गई दान राशि में से बीस हजार रुपयों से कम रकम का हिसाब रखना जरुरी नहीं हैं। कई पार्टियॉं करोडो रुपया जमा करती हैं और उन्हे बीस हजार के टुकडों में बॉंटकर हिसाब के चंगूल से बच जाती हैं। फर्जी नामों के जरिये यह काला धन सफेद बन जाता हैं। यही से शुरू होता हैं राजनैतिक पार्टियों का भ्रष्टाचार। आरम्भ ही भ्रष्टाचार करनेवाले नेता गण देश की जनता को क्या नीति का, चरित्र का पाठ देंगे ? ऐसी राजनैतिक पार्टियों से भ्रष्टाचार मुक्त भारत की उम्मीद करना फिजूल हैं।

तगडे धन संग्रह के बल पर मतदाताओं को आकृष्ट करने हेतू कई प्रलोभन दिये जाते हैं। और वही लोग जब चुने जाते हैं तब सत्ता हासिल कर शासकीय यंत्रणा में से भी जनता का पैसा हडपते हैं। कुछ भले लोग भी ऐसे में गलत रास्ता अपना लेते हैं। धन सत्ता और बाहूबल के जरिये आज की कुछेक पार्टियॉं इतनी ताकदवर बन बैठी हैं कि कोई अकेला व्यक्ति न ही उनके खिलाफ चुनाव लड सकता हैं, जीत पाना तो दूर की बात। गलत तरिकों से बनी विना परिश्रम की अपार संपत्ती के धनी ये बाहुबली मुंह मॉंगी किंमत चुका कर राजनैतिक पार्टियों से उमीदवार हसिल करते हैं। और चुने जाने पर घूस भी मॉंगते हैं। और जनता की तिजोरी में सेंध भी लगाते रहते हैं। तनिक भी अहसास नहीं हैं उन्हे कि एक न एक दिन उन्हे भी मौत आनी हैं और सब कुछ यही पर छोड जाना पडेगा। न ही उन्हे उन लाखों शहीदोंकी कुरबानी याद हैं जिन्हो ने इस देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण निछावर कर दिए।

पार्टियों का मकसद हैं मताधिक्य प्राप्त करना और सत्ता हासिल करना। तो बजाय प्रत्याशी के चरित्र का, प्रामाणिकता का, योग्यता का विचार किये, मात्र यह देखा जाता है कि क्या वह प्रत्याशी पर्याप्त धनराशि खर्च कर चुनाव जीतने की काबिलियत रखता है ? अपराध जगत के इन बाहुबलियों की धन शक्ती व बल के आगे कई अच्छे चरित्रवान कार्यकुशल उम्मीदवार हार जाते हैं। सुनने में तो यों भी आया है कि सत्ता स्थानो पर विराजित कुछेक लोगों के अपराध जगत के गैंगस्टरों के साथ सीधे संबंध हैं। और उसिके बल बुते पर राजनिती में उनका प्रवेश और अस्तित्व बना रहता हैं। आज की राजनिती के इस परिदृष्य को देखते हुए देश के उज्वल भविष्य की उम्मीद नही के बराबर हैं। राजनैतिक पार्टियॉं जब तक चरित्रवान प्रत्याशियों को टिकट दे कर उनको चुन कर नही लाती तब तक कोई उम्मीद नही हैं। अब तो यह भी बात आम हो गई हैं कि कोई नेता या मंत्री यदि भ्रष्टाचार के कारण किसी पार्टी से निकाला जाता है तो दुसरी पार्टी उनका अपनी पार्टी में स्वागत करने को पलक पॉंवडे बिछा कर तैयार बैठी होती हैं।

चुनाव जीत कर करीबन डेढ सौ से जादा दागी सांसद आज की संसद में बैठे हैं। कई संगीन अपराधों के इल्जाम में उन पर मुकदमे दायर हो चुके हैं। मंत्री मंडल के 15 मंत्रीयों पर संगीन आरोप हैं। यह भी स्पष्ट होने लगा हैं कि ये आरोप तथ्यहिन नही हैं। आज की राजनीति में राष्ट्र की अपेक्षा पक्ष को.... और पक्ष की अपेक्षा व्यक्ति को अहमियत दी जा रही हैं। प्रजातंत्र के लिए यह गंभीर खतरा हैं। पक्ष नेतृत्व की अपेक्षा व्यक्ती का माहात्म्य बढ चला हैं।

भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाए गये मंत्री या नेता से पल्ला झाडने के बजाय समुची पार्टी उसके व पार्टी के बचाव में हर संभव प्रयास करती दिखती हैं। हमारे देश में कानून आधारीत व्यवस्था हैं। न्याय पालिका का स्थान सर्वोपरि हैं। कानून अपराधी तो निश्चित कर देता है लेकिन कमजोर कानून के कारण रिश्वत लेने और देने का दरवाजा खुल जाता हैं। कई बेशरम सरकारी मुलाजिम खुले आम... आम आदमी से घूस मॉंगते हैं। सरकार में जहॉं देखो वहॉं सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार पनम रहा हैं। सशक्त कठोर कानून बनाकर सख्ती से कार्यान्वयन के बगैर भ्रष्टाचार को रोकना संभव नहीं हैं।

समय आया है कि इस देश की मालिक जनता अब जाग जाए, संगठित हो जाए और पक्ष-पार्टी और पक्षाधारित सरकार की संकल्पना को ही नकार दे। इसके लिए जरुरी है कानून में संशोधन और उन पर सख्ती से अमल। अब हमारे देश की गणना दुनिया के समृद्ध देशों में होती हैं। मगर यह भी वास्तविकता हैं कि इस देश का देशवासी दुनिया के गरीबों में भी गरीब है। यह चित्र भ्रष्टाचार से भी भयावह हैं। फलस्वरूप स्वाधीनता के 65 वर्षों बाद भी हमारे देश का किसान खुदकुशी करने को मजबूर हैं। 

अब यदि परिवर्तन लाना हो तो हर मतदाता को जागना चाहिए। केवल चरित्रवान व्यक्ती को ही अपना मत दें। गुण्डे, लुटेरे, व्यभिचारी, भ्रष्टाचारी प्रत्याशी को अपना मत कदापि न दे। देश की जनता को जगाने के लिए जन आंदोलन, लोकशिक्षण - लोक जागृति करना जरुरी हैं। मिसाल के तौर पर महाराष्ट्र, हरियाना, उत्तर प्रदेश के क्षेत्रो में जहॉं आंदोलन द्वारा लोक शिक्षण हो पाया, वहॉं अच्छे परिणाम नजर आते हैं। जरुरी है कि जनता राष्ट्रीय स्तर पर संगठित हो जाए और चुनाव पद्धती को बदलने के लिए सरकार पर दबाव बनाये। चुनाव का पुरा खर्चा सरकार द्वारा ही किया जाए तथा पार्टियों द्वारा वसुला गया चंदा जनता का पैसा हैं, उसे जब्त कर सरकारी तिजोरी में जमा कर दें। इस मॉंग के लिए देश भर में एक विशाल आंदोलन खडा करने की अतिव आवश्यकता हैं। यदि ऐसा हो पाए तो पार्टियों की संपत्ती पर नियंत्रण आयेगा। बदचलन भ्रष्टाचारी का प्रभाव मिट जाएगा। गुणी जनों को चुनाव लडना संभव हो पाएगा। चरित्रवान प्रत्याशी के सामने भ्रष्टाचारीयोंकी तुती नही बजेगी। यदि चरित्रवान प्रत्याशी चुनकर विधान सभा और संसद में पहुंच पाएं तो लोकतंत्र के पवित्र मंदिरों को फिर से पवित्रता बहाल होगी। कुछ आशा बन पाएगी।


यदि राजनीतिक पार्टियों को अर्थ बल हिन किया जाता हैं तो उनके द्वारा खडे किये गये भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जनता आवाज उठाएगी और उन्हे चुनाव जितने ही नही देगी। इस कदर भ्रष्टाचार पर काबू पाना और भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण हो पाना संभव हैं। न ही किसी को उस हेतू धरना देना पडे, न ही मोर्चे निकालने पडे और न ही अनशन करना पडे। देश में सही मायने में प्रजा तंत्र बहाल होगा। चरित्रवान लोग ही इस देश की कमान संभालेंगे। जनलोकपाल, राईट टू रिजेक्ट, राईट टू रिकॉल, ग्रामसभा जैसे कानून बन पाएंगे। किसानों की मजदूरों की समस्याएं हल होगी। देश भर में इस हेतू लोकशिक्षण व जन जागरण करना जरुरी हैं।


अगले डेढ साल में इस काम के लिए देश भर में घूम कर लोकशिक्षण व जन जागरण करना चाहता हूं। लेकिन गॉंव-गॉंव, बाडी-बस्तियों में जा कर लोकशिक्षण व जन जागरण का कार्य करने के लिए मैं युवा शक्ती पर उम्मीद लगाए बैठा हूं। युवा शक्ती आगे बढे, स्वयंसेवी संघटन व जनता अपनी ओर से पहल करे। जो भी कार्यकर्ता अपना समय इस कार्य के लिए दे सकते है. देना चाहते है, वे निम्नलिखित नंबर पर अपना मोबाईल नंबर, ई-मेल आदि सहित अपना नाम पता दर्ज करें ताकि आपके साथ इंटरनेट, फेसबुक, ई-मेल द्वारा संपर्क बना रहेगा।

निरंतर संपर्क बनाए रखने से आगामी कार्यक्रमों की जानकारी मिलती रहेगी, साथ ही दो से तीन दिन का प्रशिक्षण भी देना संभव होगा। परिवर्तन लाने के लिए राज शक्ती पर जन शक्ती का अंकुश कैसे बनाये रखें इसका विचार होना जरुरी है। राज शक्ती की अपेक्षा जन शक्ती का स्थान बहुत उंचा है, लेकिन जनता उसे भूल चुकी है।

हो सकता है कि जनशक्ती के दबाव के कारण सन 2014 के पहले ही जनलोकपाल कानून बन भी जाए, लेकिन संपूर्ण परिवर्तन की लडाई बहुत लंबी लडाई है। उसके लिए कई सालों तक प्रयास करने होंगे। इसके लिए युवकोने आगे आने की तैयारी रखनी होगी।


कि. बा. उपनाम अण्णा हजारे.
रालेगणसिद्धी,
8 अक्तुबर 2012

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2 comments:

  1. Anna Ji,

    Indians are not different from Europeans in their moral standards. The difference is in the system. It is not important for individuals to change, it is only important for the system to change.

    The system can change only when the leaders change. Even common Europeans have done big crimes when their leaders like Hitler, Mussolini and Stalin were evil. The same Europeans today live honestly under good systems.

    When you say that individuals must become honest, you are only distracting from the real problem. Today the top leaders in power are bad. They belong to the congress dynasty. If India has to change quickly, only the dynasty needs to be changed and the system will automatically improve.

    Your movement failed because your team targeted everyone. They should have only targeted the dynasty in the congress. Other people in the congress are like ordinary politicians. Kapil Sibal will become a very good man if he changes his party and works under Nitish Kumar for example. Kapil Sibal does bad things today because he works for the dynasty.

    So Kapil Sibal does not need to change, only the dynasty needs to be removed.

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  2. Shri Sanjay Negi Ji,

    I read the above article from Anna Hazaare Ji and also your comment on the same. I have few things to add from my side as a response to your comment. I truly honour your point of view about the situation, however just wanted to share my "point of view" as well, so that a more elaborate decision making can take place.

    First of all, Indians are way different from the moral standards of what European follow. No other country has such a deep history of civilization as India does. The history of a country is the root of it and India's roots are very very strong as far as morality is concerned. The testimony of the fact is that most of the highly qualified and successful people do come to India to understand the higher moral ground and to learn the complete system of Yoga, which is nothing but the systematic way to develop consciousness and wisdom. Secondly, I do not agree that individuals need not change. The situation that we are into today, changing just few politicians won't bring the lasting effectiveness in the governance system unless the human education system itself is changed. The entire chaos and corruption is the result of fault in today's education system of the world including India. Hence, every individual need to learn about high moral principles and also to realize that knowledge so that right actions can be taken by everyone. Each citizen of this country must learn their Rashtradharm under the proper guidance of elightened Yogis.

    The dynasty that you are talking about is anyway back counting their remaining days in Indian politics. They will be out of the system for ever. We need to think about the days that we will witness post removal of the current set of corrupt politicians. We need to ensure that the morality standards of each individual whether he is a leader or an ordinary citizen; must be raised to a level where people will follow self policing rather than the system needing enforcement. The time has come not only for "Satta Parivartan" or the "Vyavastha Parivartan"; this is the time for "Yug Parivartan". Unless the business systems of the country are cleaned up, there is high chances that corruption will start mushrooming again. I have started the "Project YugParivartan" to clean up the education system so that we can have lasting solution to the corruption of human mind. Please read my following article to know what is in the making and if you also want the country and the world to have a better place to live and work for each of the citizen. Jai Hind.

    http://hiteshchandel.blogspot.in/2012/08/making-of-chiefmentor-welcome-to.html

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