“देश मे जनता का जनता ने जन सहभाग
से चलाया जा रहा तंत्र,
जनतंत्र के लिए आजादी की दुसरी लडाई...”
स्वाधीनता के 66 वर्षों में देश में पनप रहे भ्रष्टाचार, गुण्डागर्दी, लूट, आतंकवाद,
व्यभिचार को बढावा देने की ज़िम्मेदार कई पक्ष-पार्टियॉं
ही हैं।
भारत के संविधान में कहीं पर भी पक्ष-पार्टी का नामोल्लेख नहीं है। जैसा कि संविधान में बताया
गया है, उस अनुसार भारत का वासी हर कोई नागरिक अठरा साल के बाद
चुनाव लडने के काबिल है। संविधान में कहीं पर भी समूह का ज़िक्र नहीं किया गया है। अठरा
साल के बाद हर नागरिक वैयक्तीक चुनाव लड सकता है, एैसा संविधान
कह रहा है।
सन् 1857 से ले कर सन् 1947 तक के नब्बे वर्षों के संघर्ष भरे
कालखंड में शहीद भगसिंग , सुखदेव, राजगुरु
जैसे अनगिनत देश भक्तों ने ज़ुल्मी अंग्रेज़ों को इस देश से खदेड कर स्वाधीनता लाने हेतू
तथा इस देश में लोगों का, लोगों द्वारा, लोग सहभाग से चलाया हुआ लोकतन्त्र क़ायमकरने हेतु अपने प्राणों का बलिदान किया।
अंग्रेज़ तो सन् 1947 में यहॉं से चले गये मगर देश मे लोक तन्त्र नहीं आ पाया। बल्कि यूं कहिये कि
पक्ष-पार्टी तन्त्र ने लोक तन्त्र को इस देश में आने ही नहीं
दिया। लोक तन्त्र यहॉं पर नहीं आ पावे इस लिये क्या क्या हुआ?
सन् 1947 में अंग्रेज़ गये और स्वाधीनता मिली, देश आज़ाद हुआ। सन्
1949 में हमारा संविधान बन गया। उस संविधान में कहीं पर भी पक्ष-पार्टी के बारे में उल्लेख नहीं है। चुनाव के लिए जो उम्मीदवार खडा है उनमें
से चरित्रवान प्रत्याशी को चुन कर जनता उसे संसद में भेजें ऐसा हमारे संविधान का प्रावधान
है। 26 जनवरी 1950को देश में प्रजासत्ताक
दिन मनाया गया देश मेे प्रजा की सत्ता कायमहुई। जनता इस देश की मालिक बनी। उसी दिन
देश के सभी पक्ष-पार्टियों को बर्खास्त हो जाना चाहिए था। महात्मा
गांधी जी ने कॉंग्रेस जनों से अपील भी की थी कि, कॉंग्रेस पार्टी
को बर्खास्त कर देना चाहिये। संविधान के मुताबिक चरित्रवान् नागरिकों को चुनावी मैदान के रास्ते से चुन कर संसद में भेजने का दायित्व जनता
का था। सन् 1952 में देश में पहली बार चुनाव हुए। पक्ष और पार्टियों
का बर्खास्त होना तो दूर, उलटे पक्ष-पार्टियों
ने गैर संवैधानिक तरीके से चुनाव लडे और गैर संवैधानिक पद्धति से पक्ष-पार्टियों के समूह संसद में जा बैठे। संसद के भीतर और बाहर भी पक्ष-पार्टियों के ताक़तवर समूह बनते रहे। सत्ता और सम्पत्ति की लालसा में एक दूजे
पर आरोप प्रत्यारोप करने का सिलसिला कायमहुआ। पक्ष-पार्टियों
के इन ताक़तवर समूहों ने लोगों के, लोगों द्वारा, लोक सहभाग से चलाये हुए लोक तन्त्र को देश में पनपने ही नहीं दिया। न केवल
पनपने ही नहीं दिया बल्कि पक्ष-पार्टियों के इन समूहों ने लोक
तन्त्र को नेस्तो नाबूद कर दिया। सर्वत्र आज पक्ष और पार्टी शाही का बोल बाला है। लोगों
के, लोगों द्वारा, लोक सहभाग से चलाये हुए
लोक तन्त्र का देश मे अस्तित्व ही नहीं रहा। लोक सभा वास्तव में देखा जाय तो लोगों
की होनी चाहिए। संविधान में बताये गये तरीके से कोई भी भारत वासी व्यक्ति अपने निजी
तौर पर यदि चुनाव लडता और यदि जनता ऐसे चरित्रवान् प्रत्याशी
को चुन कर संसद में भेजती और ऐसे व्यक्तिगत तौर पर चुने गये प्रतिनिधि संसद में होते
तो सम्भवत: वह सभा लोक सभा कहलाने के लायक हुई होती। वहीं पर
आज की लोक सभा बजाय लोगों के, पक्ष-पार्टियों
की सभा बन कर रह गई है। अधिकांश सांसद लोगों का नहीं बल्कि पक्ष और पार्टी का प्रतिनिधित्व
करते हैं। इसे जनतंत्र कैसे कह सकते है।
गैर संवैधानिक तरीक़े से पक्ष-पार्टियों ने चुनाव लडने के कारण संसद के भीतर और बाहर
भी कई सारे समूह बन गये जिसके फलस्वरूप देश में भ्रष्टाचार, गुण्डागर्दी,
लूटख़सोट, आतंक वाद को बढावा मिला। संवैधानिक तरीक़े
से यदि चरित्रवान् व्यक्ति अगर चुन कर गये होते तो जिस क़दर आज
सर्वव्यापी बन गया है, यक़ीनन भ्रष्टाचार नहीं बढ पाता। जनताने
चुनकर भेजा व्यक्ती का समुह नही बनता संसद मे और संसद के बाहर समुह बन गया इस कारण
भ्रष्टाचार बढ गया। केवल सत्ता की अभिलाषा के कारण इन समूहों में संसद में और संसद
के बाहर भी भिडन्त होती दिखती है। ऐसे दृष्य लोक शाही की गरिमा को कलंकितकरते हैं।
येन केन प्रकारेण सत्ता को हासिल करने के लिए पक्ष-पार्टियों
के समुह में होड सी लग गई है। पक्ष-पार्टियों के कई सारे समूह
कई भ्रष्टाचारी, गुण्डे, लुटारू,
व्यभिचारियों को टिकट देते हैं क्यों कि गुण्डागर्दी के कारण उनका अपना
वोट बैंक बना होता है। ऐसे दाग़ियों को समूह की ताक़त और धन शक्ति के बल पर कई पक्ष-पार्टियॉं चुनाव जितवाती हैं और इन भ्रष्टाचारियों का, गुण्डों का, लुटारुओं का लोक शाही के पवित्र पावन मन्दिर
में जाने का मार्ग प्रशस्त कराती हैं। यही वजह है कि देश में सत्ता पा कर पैसा बनाना
और धन के बल पर सत्ता पाने का दुष्ट चक्र स्थापित हो बैठा और देश का विकास ठप हो गया।
मतदाताओं में जागृति न होने से या तो शराब की बोतल अथवा दो-पॉंच सौ रुपयों के एवज में ऐसे गुण्डे भ्रष्टाचारियों को विधान सभा या लोक
सभा में जाने का रास्ता मतदाता स्वयं ही बना देते हैं। मतदाताओं को भारत माता की सौगन्ध
खा कर, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे लाखों करोडों शहीदों की क़ुर्बानी का स्मरण कर प्रतिज्ञा करनी
चाहिए कि पक्ष-पार्टियों ने इन भ्रष्टाचारी, गुण्डों, लुटेरों को चुनावी टिकट भले ही दिया हो,
हमतो इन्हें हरगिज़ अपना वोट नहीं देंगे। अपना वोट तो केवल चरित्रवान्
व्यक्ति को ही देंगे। मतदाता यदि ऐसा पक्का निर्धार कर लेंगे तो लोक
शाही के पवित्र मन्दिर में केवल पवित्र जन ही जा पाएंगे, भ्रष्टाचारी,
गुण्डे, लुटारू के जाने पर रोक लग जाएगी। महात्मा
गांधी कहा करते थे कि यदि देश को बदलना है तो गॉंव को बदलना होगा। और बिना गॉंव की
अर्थ व्यवस्था को बदले देश की अर्थव्यवस्था नहीं बदल सकती। पक्ष-पार्टी के समूहों ने गॉंव-गॉंव में अपने समर्थकों के
दल बना कर लोगों के बीच झगडों के बीज बो दिये हैं। इन्हीं झगडों की वजह से गॉंवों की
विकास प्रक्रिया ही रुक गई। कुछ अपवाद ज़रूर हैं मगर आमतौर पर ऐसा कोई भी गॉंव नहीं
दिखाई देता जहॉं पक्ष-पार्टी की गुटबन्दी न हों और गाव मे पक्ष
और पार्टी के झगडे नही है। इस कारण देश में हर गांव का विकास रुक गया है।
इस देश की युवशक्ति राष्ट्रशक्ति है। युवा
शक्ति यदि जागृत हो जाए तो समाज व देश का भविष्य उज्वल बनने में देर नहीं लगेगी। लेकिन
हर महाविद्यालय के छात्रों में घुसपैठ कर अपने अपने गुट बना कर उन में भी इन पक्ष-पार्टियों ने इसी युवाशक्ती के बीच झगडे लगा दिये हैं।
युवा शक्ति का रुख़ जो कि राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होना था उसे झगडों में उलझा कर
रख दिया गया है।
अपनी पार्टी को चुनावी लाभ दिलाने हेतु पक्ष-पार्टी समूहों
ने देश में जात-पॉंत और धर्म के नामपर ज़हर बोया है। नतीजतन लोग
उन्हीं झगडों में उलझ कर रह गये। हॉं यदि संविधान के अनुसार लोगों का प्रत्याशी निजी
तौर पर चुना जाता तो जात-पॉंत के झगडे होते ही क्यों?
यों भी देखा जाता है कि एंजीनियरींग, मेडीकल,
डेंटल आदि कॉलेजेस कई सारे पक्ष-पार्टी समूह ने
आपस में मिल बॉंट लिये हैं। धन दौलत कमाने की ये दूकानें बन बैठी हैं। उच्च शिक्षा
पाना ग़रीबों के लिए दुष्कर हो गया है। जनता के प्रत्याशी यदि चुन कर गये होते तो हरगिज़
ऐसा तो नहीं हो सकता था। बोफोर्स, टू जी स्पैक्ट्रम, आदर्श सोसाइटी, हैलीकॉप्टर, कोयला
घोटालों जैसे करोडों के घपले केवल पक्ष-पार्टी समूह के कारण ही
हो पाए हैं। जो विकास कामे करनी है, जैसे रो बनवाना है,
ब्रिज बनवाना है। ऐसे करोडो रुपयों के कामयह पक्ष और पार्टी के समुह
में बटवारा होता है।
यह सब बदल सकता है और उस बदलाव की चाभी सिर्फ
और सिर्फ मतदाताओं के हाथ में है। ज़रूरी है कि हर मतदाता अपना मतदान का अधिकार अवश्य
निभाएं, साथ ही सौगन्ध खा कर निर्धार
करें कि किसी भी प्रलोभन को वश न होते हुए मैं मेरा मत केवल और केवल चरित्रवान्
व्यक्ति को ही दूंगा, भ्रष्टाचारी, गुण्डे, लुटारू को हरगिज़ नहीं दूंगा, भले ही वह किसी भी पार्टी विशेष का क्यों न हो। केवल निजि तौर पर चुनाव लड
रहे जनता के प्रत्याशी को ही मैं अपना वोट दूंगा।
ऐसी प्रतिज्ञा पर हर कोई मत दाता यदि मत दान
करेगा तो आगामी पॉंच या दस वर्षों में एक दिन ऐसा भी आएगा कि पक्ष-पार्टी तन्त्र इस देश में से नष्ट हो जाएगा और लोगों का,
लोगों द्वारा, लोक सहभाग से चलाया गया लोक तन्त्र
देश में क़ायमहोगा, बलशाली भारत का सपना साकार होगा। यह कामसन्
2014 के चुनावों में शायद न भी हो पाएगा, क्यों
कि हर मत दाता के दिमाग में पक्ष-पार्टी गहरे में जा बैठी है।
इतनी जल्द उसको निकाल पाना मुश्किल है। घरों में भाई भाई अलग-अलग पार्टियों में बँट कर रह गये हैं। ऐसी स्थिति में पक्ष-पार्टी तन्त्र को हटा पाना आसान नहीं है। लेकिन पॉंच दस वर्षों के अथक प्रयास
करने पर यदि मत दाता जागृत हो पाये तो यक़ीनन वे ही पक्ष-पार्टी
तन्त्र को नकार देंगे। कुछ लोग यूं भी सोचते हैं कि यदि पक्ष-पार्टियॉं नहीं होंगी तो देश का कारोबार कैसे चल पाएगा? ऐसा लगना भी स्वाभाविक ही है क्यों कि 66 वर्षों की आदत
जो पडी है। वे लोग जान लें कि जैसे आज की स्थिति में पक्ष-पार्टी
के प्रतिनिधि चुन कर संसद में जाते हैं, और जो कुछ क्रिया कलाप
संसद में चलता है, ठीक वैसे ही क्रिया कलाप जनता द्वारा निर्वाचित
पक्ष-पार्टी विरहित जन प्रतिनिधियों के द्वारा भी सम्पन्न होंगे।
वे ही सभापति चुनेंगे, वे ही प्रधान मन्त्री तय करेंगे। यदि सर्वानुमति
नहीं बन पाई तो लोकतान्त्रिक तरीक़े से मत दान द्वारा बहुमत का फैसला होगा और सही मायने
में वही सच्चा लोक तन्त्र होगा। देश के हर हिस्सो मे लोकशिक्षा, लोकजागृती और लोकसंघटन बनाने के लिए राष्ट्रीय स्थर पर एक संघटन खडा हो रहा
है। 2014 के चुनाव के बाद संघटन के नामजाहीर किये जाऐंगे। हर
राज्यों में जिला स्तर, पर तहसिल स्तर पर चारित्र्यशिल लोगोंका
संघटन करके उन्होंने जनता में जागृती लानी है। 2019 तक कितनी
सफलता मिलती है इसका अंदाज आ जाएगा। अन्यथा 2024 में दस साल के
बाद कुछ हद तक पक्ष और पार्टीतंत्र को नेस्तनाबूत करने में और सफलता मिल सकती है। अन्यथा
आगे भी देश में जनतंत्र लाने में लगातार प्रयास करना होगा। 1947 के आजादी के लिए शहीद भगतसिंग, राजगुरु, सुखदेव जैसे लाखो शहीदोंने कुर्बानी दि थी। अब बलिदान की जरुरत नही पडेगी लेकिन
लोकतंत्र आने केलिए समय जरुर लगेगा। इस में आजादी की दुसरी लडाई समझकर बडी संख्या
में शामिल हो जाऐ। भवदीय।
कि. बा. तथा अण्णा हजारे
संपर्क के लिए पताः
भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन न्यास
मु.पो.राळेगण सिद्धी, ता. पारनेर,
जि. अहमदनगर, महाराष्ट्र 414302
फोन.
02488-240401, 240581.
२०१९-२०१२४ का विचार उत्तम है । हमारी अगली पीढ़ी अवश्य उस क्रान्ति में शामिल होगी ।
ReplyDeleteप्रश्न है, २०१४ में देश के चारित्र्यशील लोग क्या करें ?